दिल्ली सहर से पति खद्दर मंगा द्यो जी

दिल्ली सहर से पति खद्दर मंगा द्यो जी

दिल्ली सहर से पति खद्दर मंगा द्यो जी
हिन्दी लीलगर पै पीला रंग द्यो जी
अल्यां तै पल्यां मोर पपीहे
घूंघट पै ओउम सान्ती लिखा द्यो जी
पति प्यारे जी
जुग जुग जीओ सास ससुर जी
जिनने अमर बेल फेलाई जी 
 
नणन्द भावज का था प्यार दोनों रल कातती
काढो नणन्द लाम्बे लाम्बे तार दोनों रल बतलावती
जै नणन्दल हो जायगी धी दयांगे गल का झालरा
जै नणदल हो ज्यागा पूत दयांगे री जगमोतियां
दर्द ऊठे आधी रात सुरत सुरत गई नणन्द मैं
नाई बेटा बेग बला ल्यादे रे मेरी नणन्द नै
कै रै नेाई के बात क्या मिस आ गया
थारे जीजी होया सै भतीजा तनै लेण आ गया
उठी नणन्द आधी रात ने दिन लिकाड्या आपणे देस मैं
देख नणन्द जी का रूप भावज मेरी हंस पड़ी
आरी नणन्द मेरी बैठ मूढ़ा री घालूं बैठण नै
मुड़ तुड़ लागूं तेरे पाएं भतीजा तेरी गोद मैं
ले ल्यो नणन्द गल का झालरा लिखो कोले साथियां
झालरे ने पहरै मेरी भावज ल्यांगे री जगमोतियां
लै ल्या नणन्द हार सिंगार लिखो री कोले साथियां
सिंगार करैगी मेरी भावज ल्यांगें री जगमोतियां
ले ल्यो नणन्द रूंढी भैंस लिखो कोले साथियां
रूंढी ने दुवै मेरा भाई ल्यांगे री जगमोतियां
ले ल्यो नणन्दल ठाडी घोड़ी लिखो कोले साथियां
घोड़ी पै चढ़ैगा मेरा बाबल ल्यांगे री जगमोतियां
ले ल्यो नणन्दल धौले नारे लिखो कोले साथियां
नार्यां ने जोड़े मेरा बीर ल्यांगे री जगमोतियां
जलाओ हठीली का बीर, हठीली हठ कर रही
तड़क धड़क बोल्या सै बीर दे दे नै जगमोतियां
जीओ मेरी मां का जाया बीर मेरा री मन राखियां
बीरा मेरा री घर का सेर, भावज घर की कूतरी
बीरा मेरा सिर का मोड़, भावज मेरी पांयां खौंसड़ी
 



सास मेरी जुग-जुग जियो मरदी की जान बचाई || हरियाणवी सांस्कृति ग्रामीण आँचल सभ्य लोकगीत

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Saroj Jangir Author Admin - Saroj Jangir

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