शिवाष्टकम जानिये महत्त्व लाभ और लिरिक्स

शिवाष्टकम जानिये महत्त्व लाभ और लिरिक्स

शिवाष्टकम् एक प्राचीन संस्कृत स्तोत्र है, जो की भगवान शिव की महिमा हैं। इस स्तोत्र का नियमित पाठ भक्तों को भगवान शिव की कृपा प्राप्त होती है। शिवाष्टकम् का पाठ करने से मन को शांति मिलती है, आत्मविश्वास बढ़ता है और जीवन की कठिनाइयों का सामना करने की शक्ति प्राप्त होती है। यह स्तोत्र भक्तों को आध्यात्मिक उन्नति की ओर प्रेरित करता है और मोक्ष प्राप्ति होती है।
 
शिवाष्टकम लिरिक्स हिंदी Shivashtakam Lyrics Shiv Bhajan

प्रभुं प्राणनाथं विभुं विश्वनाथं,
जगन्नाथनाथं सदानन्दभाजम्,
भवद्भव्यभूतेश्वरं भूतनाथं,
शिवं शङ्करं शम्भुमीशानमीडे।

गले रुण्डमालं तनौ सर्पजालं,
महाकालकालं गणेशाधिपालम्,
जटाजूटगंगोत्तरंगैर्विशालं
शिवं शङ्करं शम्भुमीशानमीडे।

मुदामाकरं मण्डनं मण्डयन्तं,
महामण्डलं भस्मभूषाधरं तम्,
अनादिह्यपारं महामोहहारं,
शिवं शङ्करं शम्भुमीशानमीडे।

वटाधोनिवासं महाट्टाट्टहासं,
महापापनाशं सदासुप्रकाशम्,
गिरीशं गणेशं महेशं सुरेशं,
शिवं शङ्करं शम्भुमीशानमीडे।

गिरिन्द्रात्मजा संग्रहीतार्धदेहं,
गिरौ संस्थितं सर्वदा सन्नगेहम्,
परब्रह्मब्रह्मादिभिर्वन्ध्यमानं,
शिवं शङ्करं शम्भुमीशानमीडे।

कपालं त्रिशूलं कराभ्यां दधानं,
पदाम्भोजनम्राय कामं ददानम्,
बलीवर्दयानं सुराणां प्रधानं,
शिवं शङ्करं शम्भुमीशानमीडे।

शरच्चन्द्रगात्रं गुणानन्द पात्रं,
त्रिनेत्रं पवित्रं धनेशस्य मित्रम्,
अपर्णाकलत्रं चरित्रं विचित्रं,
शिवं शङ्करं शम्भुमीशानमीडे।

हरं सर्पहारं चिता भूविहारं,
भवं वेदसारं सदा निर्विकारम्,
श्मशाने वसन्तं मनोजं दहन्तं,
शिवं शङ्करं शम्भुमीशानमीडे।

स्तवं यः प्रभाते नरः शूलपाणे,
पठेत् सर्वदा भर्गभावानुरक्तः,
स पुत्रं धनं धान्यमित्रं कलत्रं,
विचित्रं समासाद्य मोक्षं प्रयाति।
शिवाष्टक स्तोत्र - गुरुवष्टकम
शरीरं सुरूपं तथा वा कलत्रं यशश्र्चारु चित्रं धनं मेरुतुल्यं
मनश्र्चेन लग्नं गुरोरङ्घ्रिपद्मे ततः किं ततः किं ततः किं ततः किं ||1

कलत्रं धनं पुत्रपौत्रादि सर्वं गृहं बान्धवाः सर्वमेतद्धि जातम्
मनश्र्चेन लग्नं गुरोरङ्घ्रिपद्मे ततः किं ततः किं ततः किं ततः किं ||2

षडङ्गादिवेदो मुखे शास्त्रविद्या कवित्वादि गद्यं सुपद्यं करोति
मनश्र्चेन लग्नं गुरोरङ्घ्रिपद्मे ततः किं ततः किं ततः किं ततः किं || 3

विदेशेषु मान्यः स्वदेशेषु धन्यः सदाचारवृत्तेषु मत्तो न चान्यः
मनश्र्चेन लग्नं गुरोरङ्घ्रिपद्मे ततः किं ततः किं ततः किं ततः किं ||4

क्षमामण्डले भूपभूपालवृन्दैः सदासेवितं यस्य पादारविन्दं
मनश्र्चेन लग्नं गुरोरङ्घ्रिपद्मे ततः किं ततः किं ततः किं ततः किं ||5

यशो मे गतं दिक्षु दानप्रतापा जगद्वस्तु सर्वं करे यत्प्रसादात्
मनश्र्चेन लग्नं गुरोरङ्घ्रिपद्मे ततः किं ततः किं ततः किं ततः किं || 6

न भोगे न योगे न वा वाजिराजौ न कान्तामुखे नैव वित्तेषु चित्तं
मनश्र्चेन लग्नं गुरोरङ्घ्रिपद्मे ततः किं ततः किं ततः किं ततः किं ||7

अरण्ये न वा स्वस्य गेहे न कार्ये न देहे मनो वर्तते मे त्वनर्घ्ये
मनश्र्चेन लग्नं गुरोरङ्घ्रिपद्मे ततः किं ततः किं ततः किं ततः किं ||8

गुरोरष्टकं यः पठेत्पुण्यदेही यतिर्भूपतिर्ब्रह्मचारी च गेही
लभेद्धाञ्छितार्थं पदं ब्रह्मसंज्ञं गुरोरुक्तवाक्ये मनो यस्य लग्नं |

गुरुवाष्टकम अर्थ

यदि शरीर सुंदर हो, पत्नी रूपवती हो, यश चारों दिशाओं में फैला हो, और मेरु पर्वत के समान धन हो, लेकिन मन गुरु के चरण कमलों में न लगा हो, तो इन सबका क्या लाभ?

पत्नी, धन, पुत्र, पौत्र, घर, और संबंधी सभी प्रारब्ध से मिल सकते हैं, लेकिन यदि मन गुरु के चरणों में नहीं लगा, तो इन सबका क्या लाभ?

यदि वेदों और शास्त्रों का ज्ञान हो, सुंदर काव्य रचना की क्षमता हो, लेकिन मन गुरु के चरणों में न लगा हो, तो इस ज्ञान और प्रतिभा का क्या लाभ?

यदि विदेशों में सम्मान मिले, अपने देश में प्रशंसा हो, और सदाचार में श्रेष्ठ माने जाएं, लेकिन मन गुरु के चरणों में न लगा हो, तो इस प्रतिष्ठा का क्या लाभ?

यदि महान राजा जिनके चरणों की सेवा करते हों, लेकिन मन गुरु के चरणों में न लगा हो, तो इस सेवा का क्या लाभ?

यदि दान और पराक्रम से यश फैल गया हो, और गुरु की कृपा से संसार के सभी सुख-संपत्ति मिल गए हों, लेकिन मन गुरु के चरणों में न लगा हो, तो इन ऐश्वर्यों का क्या लाभ?

यदि मन भोग, योग, राज्य, स्त्री-सुख, और धन से विचलित न हो, लेकिन गुरु के चरणों में न लगा हो, तो इस स्थिरता का क्या लाभ?

यदि मन वन में, घर में, कार्यों में, शरीर में, या अमूल्य वस्तुओं में आसक्त न हो, लेकिन गुरु के चरणों में भी न लगा हो, तो इस अनासक्ति का क्या लाभ?


 

Shivashtakam With Lyrics | Lord Shiva Song | Popular Devotional Song |Shravan Special | Rajshri Soul

कालभैरव अष्टकम्

देवराज सेव्यमान पावनाङ्घ्रि पङ्कजं
व्यालयज्ञ सूत्रमिन्दु शेखरं कृपाकरम् ।
नारदादि योगिबृन्द वन्दितं दिगम्बरं
काशिकापुराधिनाथ कालभैरवं भजे ॥ 1 ॥

भानुकोटि भास्वरं भवब्धितारकं परं
नीलकण्ठ मीप्सितार्ध दायकं त्रिलोचनम् ।
कालकाल मम्बुजाक्ष मस्तशून्य मक्षरं
काशिकापुराधिनाथ कालभैरवं भजे ॥ 2 ॥

शूलटङ्क पाशदण्ड पाणिमादि कारणं
श्यामकाय मादिदेव मक्षरं निरामयम् ।
भीमविक्रमं प्रभुं विचित्र ताण्डव प्रियं
काशिकापुराधिनाथ कालभैरवं भजे ॥ 3 ॥

भुक्ति मुक्ति दायकं प्रशस्तचारु विग्रहं
भक्तवत्सलं स्थितं समस्तलोक विग्रहम् ।
निक्वणन्-मनोज्ञ हेम किङ्किणी लसत्कटिं
काशिकापुराधिनाथ कालभैरवं भजे ॥ 4 ॥

धर्मसेतु पालकं त्वधर्ममार्ग नाशकं
कर्मपाश मोचकं सुशर्म दायकं विभुम् ।
स्वर्णवर्ण केशपाश शोभिताङ्ग निर्मलं
काशिकापुराधिनाथ कालभैरवं भजे ॥ 5 ॥

रत्न पादुका प्रभाभिराम पादयुग्मकं
नित्य मद्वितीय मिष्ट दैवतं निरञ्जनम् ।
मृत्युदर्प नाशनं करालदंष्ट्र भूषणं
काशिकापुराधिनाथ कालभैरवं भजे ॥ 6 ॥

अट्टहास भिन्न पद्मजाण्डकोश सन्ततिं
दृष्टिपात नष्टपाप जालमुग्र शासनम् ।
अष्टसिद्धि दायकं कपालमालिका धरं
काशिकापुराधिनाथ कालभैरवं भजे ॥ 7 ॥

भूतसङ्घ नायकं विशालकीर्ति दायकं
काशिवासि लोक पुण्यपाप शोधकं विभुम् ।
नीतिमार्ग कोविदं पुरातनं जगत्पतिं
काशिकापुराधिनाथ कालभैरवं भजे ॥ 8 ॥
 
कालभैरव अष्टकम् आदि शंकराचार्य द्वारा रचित एक प्रसिद्ध स्तोत्र है, जो भगवान शिव के उग्र रूप कालभैरव की स्तुति करता है। यह स्तोत्र भक्तों को भय, पाप और दुखों से मुक्ति दिलाने में सहायक माना जाता है।
इस स्तोत्र के नियमित पाठ से भक्तों को भौतिक सुख (भुक्ति) और मोक्ष (मुक्ति) दोनों की प्राप्ति होती है। यह जीवन में धर्म की रक्षा करता है और अधर्म के मार्गों का नाश करता है। कालभैरव अष्टकम् का पाठ करने से भक्तों को भगवान कालभैरव की कृपा प्राप्त होती है, जो उन्हें सभी प्रकार के कष्टों से मुक्त करती है और जीवन में सुख, शांति और समृद्धि लाती है।
 
इस भजन से सबंधित अन्य भजन निचे दिए गए हैं जो आपको अवश्य ही पसंद आयेगे, कृपया करके इन भजनों (Bhajan With Lyrics in Text) को भी देखें.
Language : Sanskrit
Composer : Tushar Pargaonkar
Artist : Ketan Patwardhan
Saroj Jangir Author Author - Saroj Jangir

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