जय भगवति देवि नमो वरदे

जय भगवति देवि नमो वरदे


जय भगवति देवि नमो वरदे,
जय पापविनाशिनि बहुफलदे,
जय शुम्भनिशुम्भकपालधरे,
प्रणमामि तु देवि नरार्तिहरे।

जय चन्द्रदिवाकरनेत्रधरे,
जय पावकभूषितवक्त्रवरे,
जय भैरवदेहनिलीनपरे,
जय अन्धकदैत्यविशोषकरे।

जय महिषविमर्दिनि शूलकरे,
जय लोकसमस्तकपापहरे,
जय देवि पितामहविष्णुनते,
जय भास्करशक्रशिरोऽवनते।

जय षण्मुखसायुधईशनुते,
जय सागरगामिनि शम्भुनुते,
जय दुःखदरिद्रविनाशकरे,
जय पुत्रकलत्रविवृद्धिकरे।

जय देवि समस्तशरीरधरे,
जय नाकविदर्शिनि दुखहरे,
जय व्याधिविनाशिनि मोक्षकरे,
जय वांछितदायिनि सिद्धिवरे।

एतद्व्यासकृतं स्तोत्रं,
य: पठेन्नियतः शुचिः,
गृहे वा शुद्धभावेन,
प्रीता भगवती सदा।

JAI BHAGWATI DEVI NAMO VARDE | BHAGWATI STOTRAM | VIDHI SHARMA| DEVOTIONAL 

Singer: Vidhi Sharma
Composition and Music: Pt. Ajay Prasanna
Lyrics: Maharshi Ved Vyas
Programmed, Audio Mix, Master : Mridul Nath, R Stringz Studio
Vidhi Sharma Photo credit : Innee Singh
Vidhi Sharma Make up artist : Geetanjali

जय भगवति देवि नमो वरदे, जय पापविनाशिनि बहुफलदे,
अर्थ: माँ भगवती की जय हो, जो वरदान देने वाली और पापों का नाश करने वाली हैं। वे अनेक फल (सुख, समृद्धि) प्रदान करती हैं।

जय शुम्भनिशुम्भकपालधरे, प्रणमामि तु देवि नरार्तिहरे।
अर्थ: माँ भगवती की जय हो, जो शुम्भ और निशुम्भ जैसे असुरों का कपाल धारण करने वाली और मनुष्यों के दुखों को हरने वाली हैं। शुम्भ-निशुम्भ का वध देवीमाहात्म्यम् के अध्याय 5-9 में वर्णित है। 

जय चन्द्रदिवाकरनेत्रधरे, जय पावकभूषितवक्त्रवरे,
अर्थ: माँ भगवती की जय हो, जिनके नेत्र चंद्रमा और सूर्य जैसे हैं और जिनका सुंदर मुख अग्नि की तरह देदीप्यमान है। यह उनकी सौम्य और तेजस्वी प्रकृति को दर्शाता है, जैसा कि ललिता सहस्रनाम में वर्णित है।

जय भैरवदेहनिलीनपरे, जय अन्धकदैत्यविशोषकरे।
अर्थ: माँ भगवती की जय हो, जो भैरव के साथ एकरूप हैं और अंधक दैत्य का विशेष रूप से नाश करने वाली हैं। अंधकासुर का वध देवी भागवत पुराण और अन्य पुराणों में वर्णित है। देवी भागवत पुराण

जय महिषविमर्दिनि शूलकरे, जय लोकसमस्तकपापहरे,
अर्थ: माँ भगवती की जय हो, जो महिषासुर का संहार करने वाली और त्रिशूल धारण करने वाली हैं। वे सारे विश्व के पापों को हर लेती हैं।

जय देवि पितामहविष्णुनते, जय भास्करशक्रशिरोऽवनते।
अर्थ: माँ भगवती की जय हो, जिन्हें ब्रह्मा और विष्णु नमन करते हैं, और जिनके सामने सूर्य (भास्कर) और इंद्र (शक्र) सिर झुकाते हैं।

जय षण्मुखसायुधईशनुते, जय सागरगामिनि शम्भुनुते,
अर्थ: माँ भगवती की जय हो, जिनकी स्तुति कार्तिकेय (षण्मुख) और शिव (ईश) करते हैं। वे सागर को पार करने वाली और शिव द्वारा पूजित हैं।

जय दुःखदरिद्रविनाशकरे, जय पुत्रकलत्रविवृद्धिकरे।
अर्थ: माँ भगवती की जय हो, जो दुख और दरिद्रता का नाश करती हैं और पुत्र एवं परिवार की वृद्धि करने वाली हैं।

जय देवि समस्तशरीरधरे, जय नाकविदर्शिनि दुखहरे,
अर्थ: माँ भगवती की जय हो, जो समस्त प्राणियों के शरीर में निवास करती हैं और स्वर्ग को दिखाने वाली, दुखों को हरने वाली हैं।

जय व्याधिविनाशिनि मोक्षकरे, जय वांछितदायिनि सिद्धिवरे।
अर्थ: माँ भगवती की जय हो, जो रोगों का नाश करती हैं, मोक्ष प्रदान करती हैं, और मनवांछित सिद्धियाँ देने वाली हैं।

एतद्व्यासकृतं स्तोत्रं, य: पठेन्नियतः शुचिः,
अर्थ: यह स्तोत्र वेदव्यास द्वारा रचित है, जिसे नियमित और पवित्र मन से पढ़ने वाला लाभ प्राप्त करता है।

गृहे वा शुद्धभावेन, प्रीता भगवती सदा।
अर्थ: शुद्ध भाव से घर में इस स्तोत्र का पाठ करने से माँ भगवती सदा प्रसन्न रहती हैं। यह पाठ की शक्ति को दर्शाता है, जैसा कि देवीमाहात्म्यम् में बताया गया है। देवीमाहात्म्यम्

मां भगवती की उपासना में असीम श्रद्धा, भय और विश्वास का अद्भुत संगम दिखाई देता है। दानवों, पाप और अज्ञान का नाश करने वाली शक्ति अपने विविध रूपों में विश्व के कल्याण के लिए अनगिनत उपाय रचती है। देवताओं की रक्षा और मानवता के कल्याण के निमित्त वह शुम्भ-निशुम्भ जैसे बलशाली असुरों का अंत करती है, अपने तेज, सौंदर्य और संहार शक्ति से संसार को अंधकार से उजियारा देती है। चंद्र-सूर्य जैसे नेत्रों और अग्नि-दीप्त मुख के माध्यम से देवी की सौम्यता और महाशक्ति का दिव्य मिश्रण प्रकट होता है। वह न केवल पापों को हरने वाली हैं, अपितु समस्त लोक की रक्षक, दुख और दरिद्रता के विनाश की कारणी हैं—जिनके सामने ब्रह्मा, विष्णु, इंद्र, शिव और कार्तिकेय जैसे देवताओं तक शीश नवाते हैं. 

यह भजन भी देखिये
Next Post Previous Post