शिव रुद्राष्टक लिरिक्स Shiv Rudrashtakama Lyrics

शिव रुद्राष्टक लिरिक्स Shiv Rudrashtakama Lyrics

ॐ नमः शिवाय ॐ नमः शिवाय,
ॐ नमः शिवाय ॐ नमः शिवाय,
ॐ नमः शिवाय ॐ नमः शिवाय,
ॐ नमः शिवाय ॐ नमः शिवाय।

नमामीशमीशान,
निर्वाणरूपं रूपम,
विभुं विभूम व्यापकं,
ब्रह्म वेदश्वरूपम,
ब्रह्मवेदस्वरूपम्।

निजं निर्गुणं निर्विकल्पं निरीहं,
चिदाकाशमाकाशवासं,
भाषम भजेहं भजेऽहम्।

व्याख्या:
हे मोक्षस्वरूप विभु ब्रह्म,
व वेदस्वरूप,
ईशान दिशा के ईश्वर,
सबके स्वामी शिवजी को नमन।
निजस्वरूप में स्थित अर्थात,
माया, गुणों, भेदों व इच्छाओं रहित,
आकाशरूप,
आकाश को वस्त्र रूप में,
धारण करने वाले,
दिगम्बर को भजता हूं।

निराकारमोंकारमूलं तुरीयं,
गिरा ज्ञान गोतीतमीशं गिरीशम्,
करालं महाकाल कालं कृपालं,
गुणागार संसारपारं नतोऽहम्।

व्याख्या:
निराकार, ओंकार के मूल,
तुरीय अर्थात तीनों गुणों से,
अतीत, वाणी,
ज्ञान व इंद्रियों से परे,
कैलाशपति, विकराल,
महाकाल के भी काल,
कृपालु, गुणों के धाम,
संसार के परे आप,
परमेश्वर को,
मैं नमस्कार करता हूँ।

तुषाराद्रि संकाश गौरं गभीरं,
मनोभूत कोटिप्रभा श्री शरीरम्,
स्फुरन्मौलि कल्लोलिनी चारु गङ्गा,
लसद्भालबालेन्दु कण्ठे भुजङ्गा।

व्याख्या:
जो हिमाचल समान,
गौरवर्ण व गम्भीर हैं,
जिनके शरीर में करोड़ों,
कामदेवों की ज्योति एवं शोभा है,
जिनके सर पर,
सुंदर नदी गंगा जी विराजमान हैं,
जिनके ललाट पर,
द्वितीय का चंद्रमा और,
गले में सर्प सुशोभित है।

चलत्कुण्डलं भ्रू सुनेत्रं विशालं,
प्रसन्नाननं नीलकण्ठं दयालम्,
मृगाधीशचर्माम्बरं मुण्डमालं,
प्रियं शंकरं सर्वनाथं भजामि।
व्याख्या:
जिनके कानों में कुण्डल हिल रहे हैं,
सुंदर भृकुटि व विशाल नेत्र हैं,
जो प्रसन्नमुख, नीलकंठ व दयालु हैं,
सिंहचर्म धारण किये,
व मुंडमाल पहने हैं,
उनके सबके प्यारे,
उन सब के नाथ,
श्री शंकर को मैं भजता हूँ।

प्रचण्डं प्रकृष्टं प्रगल्भं परेशं,
अखण्डं अजं भानुकोटिप्रकाशम्,
त्रयः शूल निर्मूलनं शूलपाणिं,
भजेऽहं भवानीपतिं भावगम्यम्।
व्याख्या:
प्रचण्ड रुद्र रूप, श्रेष्ठ, तेजस्वी,
परमेश्वर, अखण्ड, अजन्मा,
करोड़ों सूर्यों के प्रकाश वाले,
३ प्रकार के शूलों को,
निर्मूल करने वाले,
त्रिशूल धारक,
प्रेम द्वारा प्राप्त होने वाले,
भवानी के पति,
श्री शंकर को मैं भजता हूँ।

कलातीत कल्याण कल्पान्तकारी,
सदा सज्जनानन्ददाता पुरारी,
चिदानन्द संदोह मोहापहारी,
प्रसीद प्रसीद प्रभो मन्मथारी।

व्याख्या:
कलाओं से परे, कल्याणस्वरूप,
कल्प का अंत, प्रलय करने वाले,
सज्जनों को सदा आनन्द देने वाले,
त्रिपुर के शत्रु सच्चिनानंदमन,
मोह को हरने वाले,
प्रसन्न हों, प्रसन्न हों।

न यावद् उमानाथपादारविन्दं,
भजन्तीह लोके परे वा नराणाम्,
न तावत्सुखं शान्ति सन्तापनाशं,
प्रसीद प्रभो सर्वभूताधिवासम्।

व्याख्या:
हे पार्वती पति, जब तक मनुष्य,
आपके चरण कमलों को,
नहीं भजते, तब तक उन्हें,
न इस लोक में न परलोक में,
सुख शान्ति मिलती है,
और न ही पापों का नाश होता है,
अत: हे समस्त जीवों के अंदर,
निवास करने वाले प्रभो, प्रसन्न होइये।

न जानामि योगं जपं नैव पूजां,
नतोऽहं सदा सर्वदा शम्भु तुभ्यम्,
जरा जन्म दुःखौघ तातप्यमानं,
प्रभो पाहि आपन्नमामीश शम्भो।

व्याख्या:
मैं न जप, न तप और,
न पूजा जानता हूँ,
हे प्रभो, मैं तो सदा सर्वदा,
आपको ही नमन करता हूँ।
बुढ़ापा व जन्म, मृत्यु,
दु:खों से जलाये हुए,
मुझ दुखी की दुखों से रक्षा करें।
हे ईश्वर, मैं आपको,
नमस्कार करता हूँ।

श्लोक
रुद्राष्टकमिदं प्रोक्तं,
विप्रेण हरतोषये,
ये पठन्ति नरा भक्त्या,
तेषां शम्भुः प्रसीदति।

व्याख्या:
भगवान रुद्र का यह अष्टक,
उन शंकर जी की स्तुति के लिये है,
जो मनुष्य इसे प्रेमस्वरूप पढ़ते हैं,
श्रीशंकर उन से प्रसन्न होते हैं।

ॐ नमः शिवाय ॐ नमः शिवाय,
ॐ नमः शिवाय ॐ नमः शिवाय,
ॐ नमः शिवाय ॐ नमः शिवाय,
ॐ नमः शिवाय ॐ नमः शिवाय,
ॐ नमः शिवाय ॐ नमः शिवाय,
ॐ नमः शिवाय ॐ नमः शिवाय,
ॐ नमः शिवाय ॐ नमः शिवाय,
ॐ नमः शिवाय ॐ नमः शिवाय।
 



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