सत्य नारायण की कहानी (व्रत कथा ) Satya Narayan Ki Vrat Katha

सत्य नारायण की कहानी एक प्रसिद्ध व्रत कथा है जो भारतीय संस्कृति में गहरी परंपरा से जुड़ी हुई है। इस कथा के अनुसार, भगवान विष्णु ने अपने अवतार में सत्य नारायण के रूप में मनुष्यों के बीच आकर विविध लीलाएं कीं। यह व्रत कथा हर महीने के पूर्णिमा तिथि को पढ़ी जाती है और इसे सुनकर श्रद्धालुओं को बहुत पुण्य मिलता है। इस कथा को सुनने से न केवल शुभ कार्यों की सिद्धि होती है, बल्कि इससे भक्तों के जीवन में हर प्रकार से समृद्धि है। बहुत से लोग भाद्रपद की पूर्णिमा तिथि के रोज पूर्णिमा का व्रत करके भगवान सत्यनारायण की पूजा करते हैं। मान्यता कि व्रत करने से मोक्ष की प्राप्ति होती है। लेकिन जो लोग व्रत नहीं कर पाते वह कथा पढ़कर या सुनकर ही अपनी मनोकामना को पूरा करना चाहिए।

सत्य नारायण की कहानी (व्रत कथा ) Satya Narayan Ki Vrat Katha

सत्य नारायण की कहानी (व्रत कथा ) Satya Narayan Ki Vrat Katha

एक समय की बात है। एक घर में दादी और पोती रहती थी। वे दोनों नियम से सत्य नारायण की कहानी सुनती थी। दादी पोती हमेशा एक कलश में जल भरकर और फूल रखकर कहानी सुना करती थी। सत्य नारायण का नाम लेकर अर्ग दिया करती थी अर्थात सूर्य देवता को जल चढ़ाती थी। जब पोती की शादी हुई और वह अपने ससुराल जाने लगी तो उसकी दादी ने उसको एक कलश में जल भरकर और फूल रखकर दे दिए।

दादी ने अपनी पोती को इसके अलावा कुछ भी नहीं दिया और कहा कि सत्य नारायण की कहानी के जो नियम होते हैं वह कभी भी मत छोड़ना। जब पोती ससुराल के लिए विदा होती है तब वह पूरे रास्ते पछताती है कि ससुराल में जब कोई उसे पूछेगा कि वह क्या लाई तो वह क्या बताएगी।

तब सत्य नारायण सोचते हैं कि इस लड़की के संकट मिटाना चाहिए। जब लड़की रास्ते में कहानी सुनकर अरग देने लगी तो हीरे मोतियों के गहनों का ढेर लग गया।

वहां से वह गहने पहनकर ससुराल पहुंची। ससुराल में सास ने कहा कि बहू तो बहुत बड़े घर की है। बहुत धन लेकर आई है। और उसने पड़ोस के यहां से मुंग और चावल लाकर बहू के लिए खाना बनाया। बहू अपनी सास से कहती है कि कलश में जो जल है उसी से खाना बनाना। जैसे ही पतीले में कलश का जल डाला तो पतीला तरह तरह की मिठाइयों से भर गया।

सास ने कहा बहू खाना खा लो। तब बहू बोली कि ससुर जी ने भी खाना नहीं खाया, आपने भी खाना नहीं खाया। आप सबसे पहले मैं कैसे खा लूं। और मैं सत्य नारायण की कहानी भी सुनती हूं उसी के बाद खाना खाती हूं। फिर बहू ने सत्य नारायण की कहानी कही और सभी लोगों ने सत्य नारायण की कहानी सुनी। उनके घर में धन के ढेर हो गए। हीरे,
जवाहरात, मोती और मणियों से घर भर गया।

कहानी सुनने के पश्चात सास को संग ले कर बहू सत्य नारायण का प्रसाद पड़ोस में बांटने जाती है। तो पड़ोसन बोलती है कि अभी तो आप मूंग और चावल उधार लेकर गए थे और इतनी ही देर में इतना धन आपके पास कहां से आ गया। सास बोली कि मेरी बहू सत्य नारायण की कहानी सुनती हैं। और सत्य नारायण ने ही उनको इतना धन दिया है। हे सत्य नारायण जैसा साहूकार की बहू को दिया वैसे ही सभी को देना, कहने वाले को, सुनने वाले को सभी के परिवार को धन देना। जय सत्य नारायण की
 

सत्यनारायण की कहानी का महत्त्व

सत्यनारायण भगवान की कथा हिंदू धर्म में अत्यंत महत्वपूर्ण और पवित्र मानी जाती है। इस व्रत कथा के श्रवण से भगवान श्री सत्यनारायण की कृपा प्राप्त होती है और जीवन में समृद्धि एवं शांति का अनुभव होता है। कुछ लोग इस कथा का आयोजन मनौती मांगने के अवसरों पर, शुभ मुहूर्त, उत्सव आदि पर करते हैं जबकि कुछ अन्य नियमित रूप से इसे सुनते हैं, कथा सुनाते हैं। सत्यनारायण व्रत कथा के दो भाग होते हैं, एक व्रत-पूजा और दूसरा कथा, जो स्कन्दपुराण के रेवाखण्ड से संकलित की गई है। यह कथा भगवान विष्णु के सत्य स्वरूप की महिमा का वर्णन करती है जो उनके भक्तों को जीवन के समस्याओं से मुक्ति प्रदान करते हैं।
 
सत्यनारायण भगवान की पूजा का अर्थ यह है कि हमें सत्य को भगवान के रूप में पूजना चाहिए। इस पूजा में भगवान के सत्यनारायण स्वरूप को मान्यता दी जाती है जो संसार की सत्यता है। इसके अलावा, सत्यनारायण व्रत कथा की महत्वपूर्ण विषय हैं जो हमें अपने जीवन में ध्यान देने के लिए प्रेरित करते हैं। इसके अंतर्गत संकल्प का महत्व बताया गया है, जो हमें अपने विचारों के समर्थन में संकल्प लेने के लिए उत्साहित करता है। दूसरी बात, प्रसाद का अपमान करने से बचने का उपयोगी संदेश दिया गया है जो हमें समझाता है कि प्रसाद को उचित सम्मान देना चाहिए।
 
सत्यनारायण व्रत कथा एक प्रसिद्ध हिंदू धार्मिक कथा है, जो भगवान विष्णु की महिमा और सत्य के महत्व को समझाती है। इस कथा में सत्य का पालन करने के महत्व को बताया गया है और उसके ना करने के परिणामों का भी वर्णन किया गया है।

इस कथा के मुख्य पाठ में भगवान विष्णु का ध्यान किया जाता है और वह सत्यनारायण व्रत का विवरण देते हैं। व्रत के पाठ में कुछ महत्वपूर्ण संस्कृत श्लोक भी हैं, जो व्रत के विवरण के साथ-साथ धार्मिक संदेश भी देते हैं।

इस कथा के अलग-अलग अध्यायों में छोटी कहानियों के माध्यम से सत्य का महत्व दिखाया गया है। ये कहानियां संग्रह रूप में दर्शाती हैं कि सत्य का पालन नहीं करने से कितनी मुश्किलें उत्पन्न हो सकती हैं। इन कहानियों में एक व्यक्ति की ज़िन्दगी को कैसे सत्य का पालन करने से सुधारा जा सकता है, यह भी दिखाया जाता है। सत्यनारायण व्रत कथा को पूर्णमासी के दिन पढ़ा जाता है। 

सत्यनारायण कथा वेदों में उल्लिखित है और इसके अनुसार इसे सुनने और पाठ करने से अद्भुत फल मिलता है। यह कथा एक पौराणिक कथा है जो हमें श्री हरि विष्णु के रूप में सत्यनारायण भगवान का वर्णन करती है। यह कथा सभी लोगों के जीवन में खुशी और शांति लाती है।

सत्यनारायण कथा को सुनने वाले को उपवास अवश्य करना चाहिए, जो इसके अनुसार सभी दुःखों को दूर करता है। इसे करने से हमें सौभाग्य की प्राप्ति होती है और इससे हजारों वर्षों के यज्ञ के बराबर फल मिलता है।

सत्यनारायण कथा को सुनने से न केवल अच्छे फल मिलते हैं, बल्कि इससे हमारा मन भी शुद्ध होता है और हमें दैनिक जीवन में ध्यान और शांति मिलती है। इसलिए, सत्यनारायण कथा को सुनना और पाठ करना हमारे जीवन में बहुत महत्वपूर्ण होता है।

भगवान सत्यनारायण की पूजा कैसे करें

सत्य नारायण व्रत करके हम भगवान के प्रति आदर और श्रद्धा को दर्शाते हैं। इस व्रत भक्तों को सम्पूर्ण सुख समृद्धि और श्री विष्णु जी का आशीर्वाद प्राप्त होता है। इस व्रत की पूजा में भगवान सत्यनारायण की मूर्ति के सामने केले के पत्ते, फल, पंचामृत, पंचगव्य, सुपारी, पान, तिल, मोली, रोली, कुमकुम, दूर्वा आदि को रखकर पूजा की जाती है।

इस व्रत के लिए भगवान को प्रिय होने वाले पंचामृत को बनाया जाता है। दूध, मधु, केला, गंगाजल, तुलसी पत्ता, और मेवे आदि से पंचामृत बनाया जाता है। दूध और मधु का मिश्रण भगवान का प्रिय भोजन होता है।

पूजा के अंत में, आप प्रसाद के रूप में पंचामृत, फल, मिष्टान्न, और पँजीरी को भोग लगा सकते हैं। यह सभी भोजन भगवान की प्रसन्नता और आशीर्वाद के लिए बहुत ही आवश्यक होते हैं।
 
 

सत्यनारायण कथा एवं आरती । Full Shri Satya Narayan Katha With Aarti | Satyanarayan Katha

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सत्य को नारायण के रूप में पूजना ही सत्यनारायण की पूजा है। इस विचार के अनुसार, सत्यनारायण की पूजा से भक्त का संबंध सत्य से होता है, जो कि नारायण के स्वरूप में है। यह एक संदेहरहित तथ्य है कि सत्यनारायण की पूजा में सत्यता और नारायण के प्रति श्रद्धा का समावेश होता है।

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