कब है अधिकमास अमावस्या जानें दिन शुभ मुहूर्त और पूजन विधि

कब है अधिकमास अमावस्या जानें दिन शुभ मुहूर्त और पूजन विधि Adhikmas Avavasya Date Shubh Muhurt, Pujan Vidhi

पुरुषोत्तम मास की अमावस्या पितृ शांति के लिए एक महत्वपूर्ण दिन है. यह 3 साल में एक बार आता है. इस दिन पितृ पृथ्वी पर आते हैं और अपने वंशजों का आशीर्वाद देते हैं. इस दिन पितरों के लिए पूजा करने, दान करने और स्नान-दान करने से पुण्य फल मिलता है. 

कब है अधिकमास अमावस्या जानें दिन शुभ मुहूर्त और पूजन विधि Adhikmas Avavasya Date Shubh Muhurt, Pujan Vidhi


कई लोग अमावस्या को अमावस भी कहते हैं. अमावस्या को अमावस कहने के पीछे एक मान्यता यह है कि इस दिन चंद्रमा अस्त हो जाता है और आसमान में दिखाई नहीं देता है. अमावस्या के दिन पितरों की शांति के लिए पूजा-पाठ और श्राद्ध कर्म करवाना बेहद फलदायी माना जाता है. इस दिन पितरों को भोग लगाने, तर्पण करने और दान करने से वे प्रसन्न होते हैं और अपने वंशजों को आशीर्वाद देते हैं.

अमावस्या के दिन पूजा-पाठ और श्राद्ध कर्म करवाने के कुछ लाभ हैं-
  • पितरों की शांति होती है.
  • वंशजों को आशीर्वाद मिलता है.
  • धन, समृद्धि और यश प्राप्त होता है.
  • पापों से मुक्ति मिलती है.
  • मोक्ष मिलता है.

अमावस्या के दिन पूजा-पाठ और श्राद्ध कर्म करवाने के लिए कुछ जरूरी बातें इस प्रकार हैं:
  • पूजा-पाठ को सुबह जल्दी करना चाहिए.
  • पूजा-पाठ के लिए एक साफ स्थान का चयन करना चाहिए.
  • पूजा-पाठ में पितरों के लिए भोग लगाना चाहिए.
  • पितरों को तर्पण करना चाहिए.
  • दान करना चाहिए.

अमावस्या का दिन पितरों के लिए एक विशेष दिन है. इस दिन पूजा-पाठ और श्राद्ध कर्म करवाकर आप अपने पितरों को प्रसन्न कर सकते हैं और उनके आशीर्वाद प्राप्त कर सकते हैं.
 

अधिकमास अमावस्या पूजन विधि (Adhik Maas Pujan Vidhi)

  • ब्रह्म मुहूर्त में उठें और सभी कामों से निवृत्त हो जाएं.
  • स्नान करें और साफ कपड़े पहनें.
  • गंगा स्नान करें, अगर आप गंगा नदी के पास नहीं हैं तो घर में ही नहाने के पानी में थोड़ा सा गंगाजल डालकर नहा लें.
  • भगवान सूर्य को अर्घ्य दें.
  • भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा करें.
  • अपनी योग्यता के अनुसार दान करें.
  • पितरों की शांति के लिए तर्पण, श्राद्ध आदि करें.
आषाढ़ अमावस्या एक महत्वपूर्ण दिन है और इस दिन पूजा करने से पितरों की शांति होती है और वंशजों को आशीर्वाद मिलता है.
 

अधिकमास अमावस्या में विशेष ध्यान रखें

  • गायत्री मंत्र का 108 बार जप करें.
  • सूर्य और तुलसी को जल अर्पित करें.
  • शिवलिंग पर जल चढ़ाएं.
  • गाय को चावल अर्पित करें.
  • तुलसी को पीपल के पेड़ पर रखें.
  • दही, दूध, चंदन, काले अलसी, हल्दी, और चावल का भोग अर्पित करें.
  • पेड़ के चारों ओर 108 बार धागा बांधकर परिक्रमा करें.
  • विवाहित महिलाएं चाहें तो इस दिन परिक्रमा करते समय बिंदी, मेहंदी, चूड़ियां, आदि भी रख सकती हैं.
  • पितरों के लिए अपने घर में भोजन बनाएं और उन्हें भोजन अर्पित करें.
  • गरीबों को वस्त्र, भोजन, और मिठाई का दान करें.
  • गायों को चावल खिलाएं.

अधिकमास अमावस्या उपाय Adhik Maas Amavasya Upay

अमावस्या के दिन किसी पवित्र नदी में जा कर स्नान करना शुभ माना जाता है. ऐसा इसलिए है क्योंकि इस दिन चंद्रमा अस्त हो जाता है और आसमान में दिखाई नहीं देता है. इस दिन स्नान करने से शरीर और मन शुद्ध होता है और व्यक्ति को पुण्य प्राप्त होता है.

अमावस्या के दिन हनुमान जी का पाठ करना भी शुभ माना जाता है. ऐसा इसलिए है क्योंकि हनुमान जी को भगवान शिव का अवतार माना जाता है और वे सभी प्रकार के कष्टों से मुक्ति दिलाने में सक्षम हैं. अमावस्या के दिन हनुमान जी का पाठ करने से व्यक्ति को सभी प्रकार के भय, रोग और दुख से मुक्ति मिलती है.

अमावस्या के दिन अन्न का दान करना भी शुभ माना जाता है. ऐसा इसलिए है क्योंकि अन्न को जीवन का आधार माना जाता है और अन्न दान करने से व्यक्ति को पुण्य प्राप्त होता है. अमावस्या के दिन अन्न दान करने से व्यक्ति को धन, समृद्धि और यश प्राप्त होता है.

अमावस्या के दिन शनि देव को तेल का दान करना भी शुभ माना जाता है. ऐसा इसलिए है क्योंकि शनि देव को न्याय का देवता माना जाता है और वे सभी प्रकार के पापों से मुक्ति दिलाने में सक्षम हैं. अमावस्या के दिन शनि देव को तेल का दान करने से व्यक्ति को सभी प्रकार के कष्टों से मुक्ति मिलती है.

अमावस्या के दिन काली उड़द और लोहा का दान करना भी शुभ माना जाता है. ऐसा इसलिए है क्योंकि काली उड़द को शनि देव का प्रतीक माना जाता है और लोहे को शनि देव का प्रिय धातु माना जाता है. अमावस्या के दिन काली उड़द और लोहा का दान करने से व्यक्ति को शनि देव की कृपा प्राप्त होती है और वह सभी प्रकार के कष्टों से मुक्ति पाता है.
Saroj Jangir Author Author - Saroj Jangir

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