कजरी तीज व्रत, पूजा विधि, महत्त्व, क्या करें Kajari Teej Puja, Dos and Donts

कजरी तीज व्रत, पूजा विधि, महत्त्व, क्या करें Kajari Teej Puja, Dos and Donts

कजरी तीज क्या है, कैसे मनाते है?

कजरी तीज को सातुड़ी तीज भी कहा जाता है। यह त्योहार मुख्य रूप से भारत के उत्तरी राज्यों, जैसे कि बिहार, उत्तर प्रदेश, हरियाणा, राजस्थान, मध्य प्रदेश, और झारखंड में मनाया जाता है। यह त्योहार सावन मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को मनाया जाता है। कजरी तीज के दिन, सुहागिनें अपनी पति की लंबी उम्र के लिए निर्जला व्रत रखती हैं। वे सुबह जल्दी उठकर स्नान करती हैं और सोलह श्रृंगार करती हैं। इसके बाद, वे माता पार्वती और भगवान शिव की पूजा करती हैं। पूजा में, वे मिट्टी से शिव-पार्वती की प्रतिमा बनाकर उनका सोलह श्रृंगार करती हैं। इसके साथ ही, वे मेवा वाली खीर, पूड़ी, पुए, और अन्य पकवानों का भोग भी चढ़ाती हैं। पूजा के बाद, वे तीज की कथा सुनती हैं।
 
कजरी तीज व्रत, पूजा विधि, महत्त्व, क्या करें Kajari Teej Puja, Dos and Donts
 

कजरी तीज का एक अन्य महत्वपूर्ण पहलू है झूला झूलना। महिलाएं शाम को झूला झूलती हैं और तीज के गीत गाती हैं। इस दिन, महिलाएं एक-दूसरे के घर जाती हैं और मिठाई, फल, और अन्य उपहारों का आदान-प्रदान करती हैं। कजरी तीज का त्योहार प्रकृति की सुंदरता और प्रेम का प्रतीक है। यह त्योहार महिलाओं के लिए विशेष रूप से महत्वपूर्ण है, क्योंकि यह उन्हें अपने पति के प्रति अपनी भक्ति और प्रेम को व्यक्त करने का अवसर प्रदान करता है।

यहाँ कजरी तीज मनाने की कुछ विशिष्ट परंपराएं और रीति-रिवाज-
  • तीज की कथा सुनना: कजरी तीज के दिन, महिलाएं तीज की कथा सुनती हैं। यह कथा भगवान शिव और माता पार्वती के विवाह की कथा है।
  • झूला झूलना: कजरी तीज का एक महत्वपूर्ण पहलू है झूला झूलना। महिलाएं शाम को झूला झूलती हैं और तीज के गीत गाती हैं।
  • महिलाओं का एक-दूसरे के घर जाना: कजरी तीज के दिन, महिलाएं एक-दूसरे के घर जाती हैं और मिठाई, फल, और अन्य उपहारों का आदान-प्रदान करती हैं।

कब है कजरी तीज

कजरी तीज, जिसे कजली तीज या बूढ़ी तीज के नाम से भी जाना जाता है, हिंदू धर्म में एक महत्वपूर्ण त्योहार है। यह त्योहार भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की तृतीया तिथि को मनाया जाता है। कजरी तीज का त्योहार 2 सितंबर 2020 को मनाया जाएगा।
 

कजरी तीज की पूजा विधि

कजरी तीज व्रत में स्त्रियां सूर्योदय से चंद्रोदय तक निराहार व्रत रखती हैं। चंद्रोदय के बाद, वे चंद्रमा को अर्घ्य देती हैं और फिर ही व्रत का पारण करती हैं। चांद पूजा के बिना कजरी तीज व्रत का फल नहीं मिलता। कजरी तीज व्रत एक बहुत ही महत्वपूर्ण व्रत है। यह व्रत सुहागिनों द्वारा अपने पति की लंबी उम्र और खुशहाली के लिए रखा जाता है। व्रत के दिन, सुहागिनें माता पार्वती और भगवान शिव की पूजा करती हैं और उनसे पति की लंबी उम्र और सुख-समृद्धि की कामना करती हैं।

कजरी तीज व्रत की एक और महत्वपूर्ण विशेषता है झूला झूलना। कजरी तीज के दिन, सुहागिनें झूला झूलती हैं और तीज के गीत गाती हैं। यह झूला झूलना सुहागिनों के लिए एक खुशी और उत्सव का अवसर होता है।

कजरी तीज व्रत का पारण करने में रखें विशेष ध्यान-
  • चंद्रोदय के बाद, ही चंद्रमा को अर्घ्य देना है.
  • माता पार्वती और भगवान शिव की पूजा करें.
  • पूजा के बाद, प्रसाद ग्रहण करें और व्रत का पारण करें.
  • इस दिन सुहागिनें स्त्रियों को काले या सफेद रंग के वस्त्र, चूड़ियां आदि नहीं पहननी चाहिए। इन रंगों के वस्त्र पहनने से पति की लंबी उम्र और सुख-समृद्धि में बाधा आ सकती है।
  • कजरी तीज के दिन, वाद-विवाद से बचना चाहिए और क्रोध नहीं करना चाहिए। इससे उनके पति के साथ उनके रिश्ते में तनाव पैदा हो सकता है। इसके अलावा, वे घर के बड़े-बुजुर्गों का सम्मान करना चाहिए. 
  • इस दिन पूजा में चने की दाल के सत्तू का उपयोग करना शुभ माना जाता है। 
  • पूजा के बाद, सुहागिनें आटे की सात लोइयां बनाकर उन पर घी, गुड़ रखकर गाय को खिलाती हैं। यह गाय को अर्घ्य देने का एक तरीका है। गाय को अर्घ्य देने से भगवान शिव और माता पार्वती प्रसन्न होते हैं।
  • सातुड़ी तीज पर सवाया, जैसे सवा किलो या सवा पाव के सत्तू बनाना शुभ होता है।

कजली तीज पूजन विधि

तीज पूजन सामग्री में निम्नलिखित चीजें शामिल हैं:
  • एक छोटा सातू का लड्डू
  • नीमड़ी
  • दीपक
  • केला
  • अमरुद या सेब
  • ककड़ी
  • दूध मिश्रित जल
  • कच्चा दूध
  • नीबू
  • मोती की लड़/नथ के मोती
  • पूजा की थाली
  • जल कलश
पूजन की तैयारी -

  • मिट्‍टी व गोबर से दीवार के सहारे एक छोटा-सा तालाब बनाकर (घी, गुड़ से पाल बांध कर) नीम वृक्ष की टहनी को रोप दे।
  • तालाब में कच्चा दूध मिश्रित जल भर देते हैं और किनारे पर एक दिया जला कर रख दे।
  • नीबू, ककड़ी, केला, सेब, सातु, रोली, मौली, अक्षत आदि थाली में रख लें।
  • एक छोटे लोटे में कच्चा दूध लें।
तीज पूजन विधि-
  • सुबह सूर्य उदय से पहले धमोली करें (सुबह मिठाई, फल आदि का नाश्ता), पुरे दिन पानी ही पीयें, अन्न ग्रहण ना करें.
  • सुबह नहा धोकर सोलह बार झूला झूलें और इसके बाद ही पानी पीयें.

तीज का व्रत पारण करने की विधि:
  • चंद्रमा को जल के छींटे देकर रोली, मौली, अक्षत चढ़ाएं।
  • चांद को भोग अर्पित करें।
  • चांदी की अंगूठी और आखा (गेंहू) हाथ में लेकर जल से अर्घ्य दें।
  • अर्घ्य देते समय थोड़ा-थोड़ा जल चंद्रमा की मुख की और करके गिराते रहें।
  • चार बार एक ही जगह खड़े हुए घूमें। परिक्रमा लगाएं।
  • अर्घ्य देते समय बोलें, 'सोने की सांकली, मोतियों का हार, चांद ने अरग देता, जीवो वीर भरतार'
  • सत्तू के पिंडे पर तिलक करें व भाई / पति, पुत्र को तिलक करें।
  • पिंडा पति / पुत्र से चांदी के सिक्के से बड़ा करवाएं।
  • सत्तू पर ब्लाउज, रुपए रखकर बयाना निकाल कर सासुजी के चरण स्पर्श कर कर उन्हें देना चाहिए।
  • आंकड़े के पत्ते पर सातु खाएं।
  • आंकड़े के पत्ते के दोने में सात बार कच्चा दूध लेकर पिएं।
  • आंकड़े के पत्ते के दोने में सात बार पानी लेकर पिएं।
  • दूध पीकर बोलें, 'दूध से धायी, सुहाग से कोनी धायी'
  • पानी पीकर बोलें, 'पानी से धायी, सुहाग से कोनी धायी'
  • दोने के चार टुकड़े करके चारों दिशाओं में फेंक दें।
ऐसा क्यों करते हैं ?
  • चंद्रमा को जल के छींटे देकर रोली, मौली, अक्षत चढ़ाने से चंद्रमा प्रसन्न होते हैं और व्रती की मनोकामनाएं पूरी करते हैं।
  • चांद को भोग अर्पित करने से चंद्रमा को भी व्रती का भोग मिलता है।
  • चांदी की अंगूठी और आखा (गेंहू) हाथ में लेकर जल से अर्घ्य देने से चंद्रमा का आशीर्वाद प्राप्त होता है।
  • अर्घ्य देते समय थोड़ा-थोड़ा जल चंद्रमा की मुख की और करके गिराते रहने से चंद्रमा की ओर से आने वाली बुरी शक्तियां दूर होती हैं।
  • चार बार एक ही जगह खड़े हुए घूमने से व्रती की सारी मनोकामनाएं पूरी होती हैं।
  • अर्घ्य देते समय बोले जाने वाले मंत्र का अर्थ है कि चंद्रमा वीर भरतार को जीवन देता है।
  • सत्तू के पिंडे पर तिलक करने से सत्तू पवित्र हो जाता है।
  • भाई / पति, पुत्र को तिलक करने से उनकी लंबी आयु और सुख-समृद्धि की कामना की जाती है।
  • पिंडा पति / पुत्र से चांदी के सिक्के से बड़ा करवाने से व्रती की मनोकामनाएं पूरी होती हैं।
  • सत्तू पर ब्लाउज, रुपए रखकर बयाना निकाल कर सासुजी को देने से सास-बहू का प्रेम बढ़ता है।
  • आंकड़े के पत्ते पर सातु खाने से व्रती को आरोग्य और सुख-समृद्धि की प्राप्ति होती है।
  • आंकड़े के पत्ते के दोने में सात बार कच्चा दूध लेकर पीने से व्रती की मनोकामनाएं पूरी होती हैं।
  • आंकड़े के पत्ते के दोने में सात बार पानी लेकर पीने से व्रती की प्यास बुझती है और उसे आरोग्य प्राप्त होता है।
  • दूध पीकर बोले जाने वाले मंत्र का अर्थ है कि दूध की तरह व्रती का सुहाग भी कभी न टूटे।
  • पानी पीकर बोले जाने वाले मंत्र का अर्थ भी दूध पीकर बोले जाने वाले मंत्र के समान है।
  • दोने के चार टुकड़े करके चारों दिशाओं में फेंक देने से व्रती की सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं।

कजरी तीज का महत्त्व

कजरी तीज, हरियाली तीज के बाद मनाया जाने वाला एक महत्वपूर्ण हिंदू त्योहार है। यह श्रावण मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को मनाया जाता है। कजरी तीज को कजली तीज के नाम से भी जाना जाता है। कजरी तीज का महत्व मुख्य रूप से महिलाओं के लिए है। इस दिन, महिलाएं अपने पति की लंबी आयु और अच्छे स्वास्थ्य के लिए निर्जला व्रत रखती हैं। वे देवी पार्वती की पूजा करती हैं, जो भगवान शिव की पत्नी हैं।


कजरी तीज की कथा के अनुसार, देवी पार्वती ने 108 जन्म लिए थे ताकि वे भगवान शिव को अपना पति बना सकें। उनकी कड़ी मेहनत और निस्वार्थ भक्ति के कारण, अंततः भगवान शिव ने उन्हें अपनी पत्नी के रूप में स्वीकार किया। कजरी तीज के दिन, महिलाएं हरी चूड़ियां, हरी साड़ी और हरी चुनरी पहनती हैं। वे अपने घरों को हरे रंग के फूलों और पत्तियों से सजाती हैं। वे देवी पार्वती की पूजा करती हैं और उनके भजन गाती हैं। कजरी तीज का त्योहार भारत के कई राज्यों में मनाया जाता है। यह त्योहार महिलाओं के लिए एक महत्वपूर्ण दिन है, क्योंकि यह उन्हें अपने पति के प्रति अपने प्यार और सम्मान को व्यक्त करने का अवसर देता है।
 
कजरी तीज, हरियाली तीज के बाद मनाया जाने वाला एक महत्वपूर्ण हिंदू त्योहार है। यह श्रावण मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को मनाया जाता है। कजरी तीज को कजली तीज के नाम से भी जाना जाता है। कजरी तीज का महत्व मुख्य रूप से महिलाओं के लिए है। इस दिन, महिलाएं अपने पति की लंबी आयु और अच्छे स्वास्थ्य के लिए निर्जला व्रत रखती हैं। वे देवी पार्वती की पूजा करती हैं, जो भगवान शिव की पत्नी हैं।

कजरी तीज की कथा के अनुसार, देवी पार्वती ने 108 जन्म लिए थे ताकि वे भगवान शिव को अपना पति बना सकें। उनकी कड़ी मेहनत और निस्वार्थ भक्ति के कारण, अंततः भगवान शिव ने उन्हें अपनी पत्नी के रूप में स्वीकार किया। कजरी तीज के दिन, महिलाएं हरी चूड़ियां, हरी साड़ी और हरी चुनरी पहनती हैं। वे अपने घरों को हरे रंग के फूलों और पत्तियों से सजाती हैं। वे देवी पार्वती की पूजा करती हैं और उनके भजन गाती हैं। कजरी तीज का त्योहार भारत के कई राज्यों में मनाया जाता है। यह त्योहार महिलाओं के लिए एक महत्वपूर्ण दिन है, क्योंकि यह उन्हें अपने पति के प्रति अपने प्यार और सम्मान को व्यक्त करने का अवसर देता है।

कजरी तीज क्यों मनाई जाती है, इसके दो मुख्य कारण हैं:

पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, कजरी तीज को देवी पार्वती और भगवान शिव के विवाह के रूप में मनाया जाता है। देवी पार्वती ने भगवान शिव को पाने के लिए 108 जन्म लिए थे और कड़ी तपस्या की थी। उनकी भक्ति और समर्पण के कारण, अंततः भगवान शिव ने उन्हें अपनी पत्नी के रूप में स्वीकार किया। कजरी तीज के दिन, महिलाएं देवी पार्वती की पूजा करती हैं और उन्हें अपने पति की लंबी आयु और अच्छे स्वास्थ्य के लिए आशीर्वाद देने के लिए प्रार्थना करती हैं। दूसरा कारण यह है कि कजरी तीज को मानसून के आगमन के प्रतीक के रूप में मनाया जाता है। इस दिन, महिलाएं हरे रंग के कपड़े पहनती हैं और अपने घरों को हरे रंग के फूलों और पत्तियों से सजाती हैं। यह मानसून की बारिश और फसलों के उगाने के लिए प्रार्थना करने का एक तरीका है।

कजरी तीज की व्रत कथा Kajari Teej Ki Vrat Katha

एक गाँव में एक ब्राह्मण रहता था। वह बहुत गरीब था। उसकी पत्नी बहुत भक्तिमान थी। एक दिन भाद्रपद महीने में कजली तीज का व्रत आया। ब्राह्मण की पत्नी ने व्रत रखा। व्रत के लिए घर में सत्तू नहीं था। पत्नी ने अपने पति से कहा, "तुम सत्तू लेकर आओ।" ब्राह्मण को पता था कि घर में पैसे नहीं हैं। उसे सत्तू खरीदने के लिए पैसे नहीं थे। लेकिन उसकी पत्नी की भक्ति को देखकर वह सोचने लगा कि वह अपनी पत्नी के लिए कुछ भी कर सकता है।

वह शाम को एक साहूकार के घर में घुस गया। उसने साहूकार के घर से सत्तू चुरा लिया और घर ले आया।
जब साहूकार को पता चला कि ब्राह्मण ने उसके घर से सत्तू चुराया है, तो वह बहुत गुस्सा हुआ। उसने अपने नौकरों को बुलाया और ब्राह्मण को पकड़वा दिया। ब्राह्मण को साहूकार के सामने लाया गया। ब्राह्मण ने साहूकार से कहा, "मैंने आपके घर से सत्तू नहीं चुराया है। यह मेरी पत्नी के लिए है। वह कजली तीज का व्रत रख रही है।"

साहूकार ब्राह्मण की बात सुनकर दयालु हो गया। उसने ब्राह्मण की तलाशी ली। उसके पास सत्तू के अलावा और कुछ नहीं था। साहूकार ने ब्राह्मण को माफ कर दिया और उसे सत्तू के साथ-साथ गहने, मेहंदी और रुपये भी दिए। ब्राह्मण और उसकी पत्नी ने मिलकर कजली माता की पूजा की। कजली माता की कृपा से ब्राह्मण परिवार को बहुत खुशहाली मिली।

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