अक्षय तृतीया/ आखातीज Aakhateej Ki Kahani
अक्षय तृतीया अर्थात आखातीज बैशाख माह की शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को मनाया जाता है।
अक्षय तृतीया को आखातीज भी कहा जाता है। अक्षय तृतीया को किया गया दान और तप अक्षय फलदायक होता है। इसीलिए इसे अक्षय तृतीया कहते हैं। यदि अक्षय तृतीया का व्रत सोमवार तथा रोहिणी नक्षत्र में आए तो यह महाफल दायक माना गया है। इस दिन चावल, नमक, घी, चीनी, सब्जी, फल, इमली, पंख और वस्त्र के दान का बहुत ही महत्व माना गया है।
अक्षय तृतीया को आखातीज भी कहा जाता है। अक्षय तृतीया को किया गया दान और तप अक्षय फलदायक होता है। इसीलिए इसे अक्षय तृतीया कहते हैं। यदि अक्षय तृतीया का व्रत सोमवार तथा रोहिणी नक्षत्र में आए तो यह महाफल दायक माना गया है। इस दिन चावल, नमक, घी, चीनी, सब्जी, फल, इमली, पंख और वस्त्र के दान का बहुत ही महत्व माना गया है।
अक्षय तृतीया तिथि को श्री बद्री नारायण जी के पट खुलते हैं। इसी दिन ठाकुरद्वारे जाकर या बद्री नारायण जी का चित्र सिंहासन पर रखकर उन्हें मिश्री और भीगी हुई चने की दाल का भोग लगाया जाता है। यह भी माना जाता है कि परशुराम जी का अवतरण भी अक्षय तृतीया तिथि को ही हुआ था।
अक्षय तृतीया तिथि की कथा Akshay Tratiya Ki Katha Kahani
प्राचीन समय की बात है। महाराज युधिष्ठिर ने श्री कृष्ण जी से अक्षय तृतीया के महत्व के बारे में पूछा। तब भगवान श्री कृष्ण जी ने बताया कि अक्षय तृतीया तिथि परम पुण्यमयी तिथि है। अक्षय तृतीया तिथि को प्रातः स्नान कर जप, तप, होम, स्वाध्याय, पितृ तर्पण और दान आदि करने से अक्षय पुण्य फल की प्राप्ति होती है। श्री कृष्ण जी ने यह भी बताया कि इसी दिन से सत्य युग का आरंभ होता है।
प्राचीन समय में एक गरीब वैश्य रहता था। वह गरीब वैश्य सदाचारी तथा देवताओं में श्रद्धा रखता था। लेकिन अत्यंत गरीब होने के कारण वह बहुत ही व्याकुल रहता था। तब उस गरीब वैश्य को किसी व्यक्ति ने अक्षय तृतीया तिथि का व्रत करने के लिए कहा। जब अक्षय तृतीया तिथि आई तब गरीब वैश्य ने गंगा में स्नान कर विधिपूर्वक देवी देवताओं की पूजा कर इस व्रत को किया। यही वैश्य अगले जन्म में कुशावती का राजा बना। अक्षय तृतीया के व्रत के प्रभाव से वह बहुत ही धनी और प्रतापी राजा बना। वैभव संपन्न होने पर भी राजा अपने धर्म से विचलित नहीं हुआ। इस प्रकार अक्षय तृतीया तिथि के व्रत के प्रभाव से एक गरीब वैश्य एक राज्य का राजा बना। इसीलिए इस व्रत को अक्षय फलदायी कहा गया है।
प्राचीन समय में एक गरीब वैश्य रहता था। वह गरीब वैश्य सदाचारी तथा देवताओं में श्रद्धा रखता था। लेकिन अत्यंत गरीब होने के कारण वह बहुत ही व्याकुल रहता था। तब उस गरीब वैश्य को किसी व्यक्ति ने अक्षय तृतीया तिथि का व्रत करने के लिए कहा। जब अक्षय तृतीया तिथि आई तब गरीब वैश्य ने गंगा में स्नान कर विधिपूर्वक देवी देवताओं की पूजा कर इस व्रत को किया। यही वैश्य अगले जन्म में कुशावती का राजा बना। अक्षय तृतीया के व्रत के प्रभाव से वह बहुत ही धनी और प्रतापी राजा बना। वैभव संपन्न होने पर भी राजा अपने धर्म से विचलित नहीं हुआ। इस प्रकार अक्षय तृतीया तिथि के व्रत के प्रभाव से एक गरीब वैश्य एक राज्य का राजा बना। इसीलिए इस व्रत को अक्षय फलदायी कहा गया है।
२ अक्षय तृतीया की कथा
प्राचीन काल में धर्मदास नामक एक वैश्य रहता था। वह स्वभाव से बहुत ही दानी और आध्यात्मिक था। वह हमेशा दूसरों की मदद करने के लिए तत्पर रहता था। एक दिन धर्मदास ने अक्षय तृतीया के बारे में सुना। उसने जाना कि इस दिन किया गया दान अक्षय होता है, अर्थात इसका फल कभी समाप्त नहीं होता है।धर्मदास ने अक्षय तृतीया के दिन गंगा स्नान किया और विधि-विधान से पूजा की। फिर उसने ब्राह्मणों को भोजन और वस्त्र दान किए। धर्मदास की पत्नी उसे मना करती थी, लेकिन वह हर बार अक्षय तृतीया को जमकर दान करता था।
धर्मदास ने कई वर्षों तक अक्षय तृतीया पर दान किया। एक दिन उसकी मृत्यु हो गई। मृत्यु के बाद, धर्मदास को द्वारका के कुशावती नगर में राजा के रूप में जन्म मिला। माना जाता है कि पूर्व जन्म में किए गए दान के प्रताप से ही उसे राजयोग मिला और वह राजा बन गया।
अक्षय तृतीया/ आखातीज क्या है ?
अक्षय तृतीया, जिसे आखातीज भी कहा जाता है, हिंदू धर्म में एक महत्वपूर्ण त्योहार है। यह वैशाख महीने के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को मनाया जाता है। इस दिन भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की पूजा की जाती है।अक्षय तृतीया का महत्व इस बात से है कि इस दिन जो भी कार्य किया जाता है वह अक्षय होता है, यानी कभी भी समाप्त नहीं होता है। इस दिन नए कार्यों की शुरुआत करना, धन का निवेश करना, और सोना खरीदना शुभ माना जाता है। जी हाँ, आप सही कह रहे हैं। अक्षय तृतीया या आखा तीज वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि है। अक्षय अर्थात जिसका कभी क्षय न हो। माना जाता है कि इस दिन जो भी पुण्य अर्जित किए जाते हैं उनका कभी क्षय नहीं होता है। यही वजह है कि ज्यादातर शुभ कार्यों का आरंभ इसी दिन होता है। अक्षय तृतीया का महत्व इस बात से है कि इस दिन जो भी कार्य किया जाता है वह अक्षय होता है, यानी कभी भी समाप्त नहीं होता है। इस दिन नए कार्यों की शुरुआत करना, धन का निवेश करना, और सोना खरीदना शुभ माना जाता है।
अक्षय तृतीया : पौराणिक एवं प्रामाणिक व्रत कथा
धर्मदास एक सदाचारी और देव-ब्राह्मणों में श्रद्धा रखने वाला वैश्य था। वह अपने परिवार की आर्थिक स्थिति को लेकर चिंतित था। लेकिन अक्षय तृतीया के दिन उसके जीवन में एक बड़ा बदलाव आया। उसने गंगा स्नान किया और देवी-देवताओं की पूजा की। साथ ही, उसने गोले के लड्डू, पंखा, जल से भरे घड़े, जौ, गेहूं, नमक, सत्तू, दही, चावल, गुड़, सोना तथा वस्त्र आदि दिव्य वस्तुएं ब्राह्मणों को दान दीं।धर्मदास की पत्नी और परिवार के सदस्यों ने उसे मना किया, लेकिन उसने अपने धर्म-कर्म और दान-पुण्य से विमुख नहीं हुआ। अक्षय तृतीया के दान के प्रभाव से ही वह दूसरे जन्म में कुशावती का राजा बना। वैभव संपन्न होने पर भी उसकी बुद्धि कभी धर्म से विचलित नहीं हुई।
अक्षय तृतीया को शुभ क्यों माना जाता है ?
- भगवान परशुराम का जन्म: वैशाख शुक्ल तृतीया को भगवान विष्णु के छठे अवतार भगवान परशुराम का जन्म हुआ था। उन्होंने अपने पिता का सिर काटकर उन्हें मुक्ति दिलाई थी।
- माँ अन्नपूर्णा का जन्म: वैशाख शुक्ल तृतीया को ही माँ अन्नपूर्णा का जन्म हुआ था। वे भगवान शिव की अर्धांगिनी हैं और समृद्धि की देवी हैं।
- माँ गंगा का अवतरण: वैशाख शुक्ल तृतीया को ही माँ गंगा का पृथ्वी पर अवतरण हुआ था। उन्होंने राजा भगीरथ के तप से प्रसन्न होकर पृथ्वी पर अवतरित होकर पृथ्वी को पापों से मुक्त किया था।
- द्रोपदी को चीरहरण से बचाया: महाभारत के युद्ध में, भगवान कृष्ण ने द्रोपदी को चीरहरण से बचाया था। यह घटना वैशाख शुक्ल तृतीया को हुई थी।
- कुबेर को खजाना मिला: वैशाख शुक्ल तृतीया को ही कुबेर को खजाना मिला था। वे धन के देवता हैं।
- सतयुग और त्रेतायुग का प्रारंभ: वैशाख शुक्ल तृतीया को ही सतयुग और त्रेतायुग का प्रारंभ हुआ था।
- कृष्ण और सुदामा का मिलन: वैशाख शुक्ल तृतीया को ही कृष्ण और सुदामा का मिलन हुआ था। यह मिलन बहुत ही भावुक था।
- अक्षय कुमार का अवतरण: ब्रह्मा जी के पुत्र अक्षय कुमार का अवतरण भी वैशाख शुक्ल तृतीया को हुआ था।
- बद्रीनाथ के कपाट खुलते हैं: बद्रीनाथ के कपाट भी वैशाख शुक्ल तृतीया को ही खोले जाते हैं।
- बांकेबिहारी मंदिर में श्री विग्रह के चरण दर्शन होते हैं: वृंदावन के बांकेबिहारी मंदिर में भी वैशाख शुक्ल तृतीया को ही श्री विग्रह के चरण दर्शन होते हैं।
- महाभारत का युद्ध समाप्त हुआ था: महाभारत का युद्ध भी वैशाख शुक्ल तृतीया को ही समाप्त हुआ था।
क्यों शुभ है अक्षय तृतीया का त्योहार
अक्षय तृतीया एक बहुत ही शुभ दिन है। इस दिन जो भी पुण्य अर्जित किए जाते हैं, उनका कभी क्षय नहीं होता है। यही वजह है कि इस दिन हर तरह के शुभ कार्य संपन्न किए जाते हैं। इस साल अक्षय तृतीया का दिन बहुत ही शुभ है। इस दिन शनिवार को आने व मेष राशि मे चतुरग्रही महासंयोग, साथी वृषभ राशि में स्वग्रही शुक्र उच्च का चंद्रमा स्वग्रही कुंभ राशि में शनि देव होने की वजह से यह अत्यंत मंगलकारी हो गया है।इस दिन किए गए कार्यों का अक्षय फल मिलता है। इस दिन व्रत रखना, दान करना और नए कार्यों की शुरुआत करना बहुत ही शुभ माना जाता है।
अक्षय तृतीया के दिन इन कामों का है महत्व
अक्षय तृतीया के दिन किए जाने वाले शुभ कार्यों में विवाह, गृह-प्रवेश, वस्त्र-आभूषणों की खरीदारी, पितरों को तर्पण और पिंडदान, और दान करना शामिल हैं। इस दिन दान का विशेष महत्व है। कहा जाता है कि इस दिन किया गया दान अक्षय फल प्रदान करता है।अक्षय तृतीया के दिन दान करने के लिए कुछ विशेष वस्तुएं हैं, जिनमें गौ, भूमि, तिल, स्वर्ण, घी, वस्त्र, धान्य, गुड़, चांदी, नमक, शहद और कन्या शामिल हैं। इन वस्तुओं को दान करने से व्यक्ति को पुण्य प्राप्त होता है और उसके जीवन में सुख-समृद्धि आती है।
इस दिन लोग गंगा स्नान भी करते हैं और भगवद् पूजन करते हैं। इससे उन्हें जीवन के कष्टों से मुक्ति मिलती है और भगवान की कृपा प्राप्त होती है।
अक्षय तृतीया का दिन सभी के लिए बहुत ही शुभ दिन है। इस दिन पुण्य प्राप्त करने और अपने जीवन को बेहतर बनाने का प्रयास करना चाहिए।
सभी कार्यों का मिलता है अक्षय फल
अक्षय तृतीया हिंदू धर्म का एक बहुत ही महत्वपूर्ण त्यौहार है। इस दिन जो भी शुभ कार्य किए जाते हैं, उनका अक्षय फल मिलता है। यही वजह है कि इस दिन हर तरह के शुभ कार्य संपन्न किए जाते हैं।व्रत रखना और दान करना: इस दिन व्रत रखना और दान करना बहुत ही पुण्यदायक माना जाता है।
नए कार्यों की शुरुआत करना: इस दिन नए कार्यों की शुरुआत करना बहुत ही शुभ माना जाता है। इससे सफलता मिलती है।
गृह प्रवेश करना: इस दिन गृह प्रवेश करना बहुत ही शुभ माना जाता है। इससे घर में सुख-समृद्धि आती है।
विवाह करना: इस दिन विवाह करना भी बहुत ही शुभ माना जाता है। इससे वैवाहिक जीवन में सुख और समृद्धि आती है।
व्रत रखना और दान करना घर पर भी किया जा सकता है। नए कार्यों की शुरुआत भी घर पर ही की जा सकती है। गृह प्रवेश और विवाह जैसे शुभ कार्यों के लिए लोग अपने सामर्थ्य के अनुसार दान कर सकते हैं। अक्षय तृतीया का दिन सभी के लिए बहुत ही शुभ हो। इस दिन पुण्य प्राप्त करने और अपने जीवन को बेहतर बनाने का प्रयास करना चाहिए।
अक्षय तृतीया पर दान करने का शुभ फल
क्षय तृतीया के दिन दान करना बहुत ही शुभ माना जाता है। कहा जाता है कि इस दिन किया गया दान अक्षय फल प्रदान करता है। इस दिन दान करने से व्यक्ति को पुण्य प्राप्त होता है और उसके जीवन में सुख-समृद्धि आती है।अक्षय तृतीया के दिन दान करने के लिए कुछ विशेष वस्तुएं हैं, जिनमें गौ, भूमि, तिल, स्वर्ण, घी, वस्त्र, धान्य, गुड़, चांदी, नमक, शहद और कन्या शामिल हैं। इन वस्तुओं को दान करने से व्यक्ति को पुण्य प्राप्त होता है और उसके जीवन में सुख-समृद्धि आती है।
इस दिन उपवास रखना और मां लक्ष्मी की पूजा करना भी बहुत ही शुभ माना जाता है। माना जाता है कि इस दिन घर में चावल और मखाने मेवा की खीर बनाकर मां लक्ष्मी को भोग लगाने से आपके घर में साल भर समृद्धि बनी रहती है।
अक्षय तृतीया के दिन किए गए कर्मों का फल अक्षय होता है, इसलिए इस दिन किसी भी तरह का बुरा काम नहीं करना चाहिए।
अक्षय तृतीया का दिन सभी के लिए बहुत ही शुभ हो। इस दिन पुण्य प्राप्त करने और अपने जीवन को बेहतर बनाने का प्रयास करना चाहिए।
मां अन्नपूर्णा का जन्मदिन
अक्षय तृतीया को लेकर कई मान्यताएं हैं। इनमें से एक मान्यता यह भी है कि इस दिन गंगा नदी स्वर्ग से धरती पर आई थीं। इस दिन को गंगा अवतरण दिवस भी कहा जाता है।इसके अलावा, अक्षय तृतीया को रसोई और भोजन की देवी अन्नपूर्णा के जन्मदिन के रूप में भी मनाया जाता है। इस दिन को अन्नपूर्णा जयंती भी कहा जाता है।
अक्षय तृतीया को एक शुभ दिन माना जाता है। इस दिन शादी, गृह प्रवेश, नए कार्यों की शुरुआत, दान, और पूजा करना शुभ माना जाता है।
अक्षय तृतीया का दिन सभी के लिए बहुत ही शुभ हो। इस दिन पुण्य प्राप्त करने और अपने जीवन को बेहतर बनाने का प्रयास करना चाहिए।