गणेश चतुर्थी की कथा, व्रत कथा/कहानी Ganesh Chaturthi Ki Katha Vrit Katha

गणेश चतुर्थी की कथा Ganesh Chaturthi Ki Katha

भाद्रपद माह की शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को गणेश चतुर्थी का व्रत किया जाता है। इस दिन प्रातः स्नान आदि से निवृत होकर सोना, तांबा, चांदी, मिट्टी या गोबर से गणेश जी की मूर्ति बनाकर उसकी पूजा की जाती है। पूजा करने के समय 21 मोदकों का भोग लगाया जाता है। तथा हरित दूर्वा अर्थात दूब के 21 अंकुर लेकर गणेश जी को नाम के साथ चढ़ाए जाते हैं। यह नाम है गत्तापी, गोरी सुमन, अधनाशक, एकदंत, ईश पुत्र, सर्वसिद्धप्रद, विनायक, कुमार गुरु, इंभवक्तराय और मूषक वाहन संत। इसके पश्चात 21 मोदको में से 10 मोदक ब्राह्मणों को दान देकर 11 मोदक स्वयं खाने चाहिए।
 
गणेश चतुर्थी की कथा, व्रत कथा/कहानी Ganesh Chaturthi Ki Katha Vrit Katha

गणेश चतुर्थी की कथा Ganesh Chaturthi Kahani / Katha

एक बार भगवान शंकर स्नान करने के लिए भोगवती नामक स्थान पर गए। उनके जाने के पश्चात पार्वती जी ने अपने तन के मेल से एक पुतला बनाकर द्वार पर बिठा दिया। और उस पुतले को गणेश जी का नाम देकर अपना पुत्र बना लिया। पार्वती जी ने गणेश जी से कहा कि मैं जब तक स्नान करूं तब तक तुम किसी भी पुरुष को अंदर मत आने देना।
भोगवती पर स्नान करने के पश्चात जब भगवान शंकर आए तो गणेश जी ने उन्हें द्वार पर ही रोक दिया। तब भगवान शिव शंकर ने उन्हें कहा कि उन्हें अंदर जाना है और वह रास्ता रोक कर क्यों खड़े हैं। तब गणेश जी ने कहा कि वह उनको अंदर नहीं जाने देगा। क्योंकि पार्वती माता ने किसी भी पुरुष को अंदर जाने से मना किया है।
तब भगवान शिव को क्रोध आया और उन्होंने गणेश जी का सिर धड़ से अलग कर दिया और अंदर चले गए। पार्वती जी ने सोचा कि भोजन में विलंब होने के कारण भगवान शंकर जी नाराज हैं। उन्होंने जल्दी जल्दी दो थालियों में भोजन परोस कर शंकर जी को भोजन करने के लिए कहा। शंकर जी ने जब दो थाल देखी तो पूछा कि दूसरा थाल किसके लिए लगाया गया है। पार्वती जी ने कहा कि यह दूसरा थाल गणेश जी के लिए लगाया गया है। गणेश मेरा पुत्र है जो बाहर पहरा दे रहा है। यह सुनकर शंकर जी ने कहा कि मैंने तो उसका सिर काट दिया है। जब पार्वती माता ने यह सुना तो उनको बहुत ही दुख हुआ और वह भगवान शंकर से गणेश जी को पुनः जीवित करने की प्रार्थना करने लगी।

शंकर जी ने तुरंत ही एक हाथी के बच्चे का सिर काटकर गणेश जी के धड़ से जोड़ दिया। तब पार्वती माता ने प्रसन्नता पूर्वक भगवान शंकर और गणेश जी को भोजन कराकर स्वयं भोजन किया। यह घटना भाद्रपद शुक्ल चतुर्थी को हुई थी। इसीलिए इस चतुर्थी को गणेश चतुर्थी कहा जाता है
 

गणेश चतुर्थी की द्वितीय कथा

गणेश चतुर्थी की कथा के अनुसार, भगवान शिव और माता पार्वती के पुत्र गणेश का जन्म भाद्रपद शुक्ल चतुर्थी के दिन हुआ था। इस दिन को गणेश चतुर्थी के रूप में मनाया जाता है।

एक बार की बात है, माता पार्वती ने स्नान करने के लिए एक मिट्टी का पुतला बनाया और उसे अपने दरवाजे पर रख दिया। जब भगवान शिव स्नान करके वापस आए, तो उन्होंने उस पुतले को देखा और उसे एक व्यक्ति समझकर उसे रोक दिया। भगवान शिव को रोकने के लिए पुतले ने अपने एक दाँत को तोड़कर भगवान शिव को दिखाया। भगवान शिव को यह देखकर हँसी आ गई और उन्होंने पुतले को अपना पुत्र मान लिया। उन्होंने पुतले का नाम गणेश रखा।

गणेश चतुर्थी का त्योहार भगवान गणेश के जन्मोत्सव के रूप में मनाया जाता है। इस दिन लोग अपने घरों में भगवान गणेश की मूर्ति स्थापित करते हैं और उनकी पूजा करते हैं। गणेश चतुर्थी के दिन लोग व्रत रखते हैं और भगवान गणेश से अपने जीवन में सुख, समृद्धि और सफलता की कामना करते हैं।

गणेश चतुर्थी की कथा के कुछ अन्य संस्करण भी हैं। एक संस्करण के अनुसार, भगवान गणेश का जन्म माता पार्वती की हथेली से हुआ था। एक अन्य संस्करण के अनुसार, भगवान गणेश का जन्म भगवान शिव और माता पार्वती के वीर्य से हुआ था।

गणेश चतुर्थी एक महत्वपूर्ण हिंदू त्योहार है। यह त्योहार भगवान गणेश की कृपा और आशीर्वाद प्राप्त करने का एक अवसर है।
 

गणेश चतुर्थी की तृतीय कहानी/कथा

एक बार देवताओं पर एक राक्षस का अत्याचार हो रहा था। देवता भगवान शिव से मदद मांगने पहुंचे। भगवान शिव ने अपने दोनों पुत्रों कार्तिकेय और गणेश से कहा कि तुम में से जो पहले पृथ्वी की परिक्रमा करके आएगा, वह राक्षस का वध करेगा। कार्तिकेय अपने वाहन मोर पर बैठकर पृथ्वी की परिक्रमा करने चले गए। गणेश जी सोच में पड़ गए कि चूहे पर बैठकर उन्हें पृथ्वी की परिक्रमा करने में बहुत समय लगेगा। उन्होंने एक बुद्धिमत्तापूर्ण उपाय सोचा। वे अपने माता-पिता की सात बार परिक्रमा करके वापस आ गए।

जब कार्तिकेय वापस आए तो उन्होंने खुद को विजेता बताया। भगवान शिव ने गणेश जी से पूछा कि तुमने पृथ्वी की परिक्रमा क्यों नहीं की? गणेश जी ने कहा, "माता-पिता के चरणों में ही समस्त लोक हैं। इसलिए मैंने उनकी परिक्रमा करके ही पृथ्वी की परिक्रमा पूरी कर ली।" भगवान शिव ने गणेश जी को राक्षस का वध करने का आदेश दिया। गणेश जी ने राक्षस का वध कर दिया और देवताओं को बचा लिया। भगवान शिव ने गणेश जी को आशीर्वाद दिया कि जो भी व्यक्ति गणेश चतुर्थी के दिन गणेश जी की पूजा करेगा, उसके सभी कष्ट दूर हो जाएंगे।
 

गणेश चतुर्थी पर सुनी जाने वाली गणेश जी की चतुर्थ कहानी

एक समय की बात है, राजा हरिश्चंद्र के राज्य में एक गरीब कुम्हार रहता था। वह मिट्टी के बर्तन बनाता था, लेकिन वे कच्चे रह जाते थे। एक दिन, वह बहुत परेशान था। वह अपने बर्तनों को बेचकर परिवार का पालन-पोषण करता था, लेकिन अब उसके पास बेचने के लिए कुछ भी नहीं था। उसने एक पुजारी से सलाह ली। पुजारी ने कहा कि उसे एक छोटे बालक को मिट्टी के बर्तनों के साथ आंवा में डाल देना चाहिए। इससे उसके बर्तन पक जाएंगे और वह फिर से अपनी जीविका चला सकेगा।

उस दिन संकष्टी चतुर्थी का दिन था। कुम्हार ने अपनी पत्नी को इस बारे में बताया, लेकिन उसकी पत्नी बहुत परेशान हो गई। उसने कहा कि वह ऐसा नहीं होने दे सकती। लेकिन कुम्हार ने कहा कि वह यह करेगा ही। उसने एक छोटे बालक को उठाया और उसे मिट्टी के बर्तनों के साथ आंवा में डाल दिया।

कुम्हार की पत्नी बहुत परेशान थी। उसने गणेशजी से अपने बेटे की कुशलता की प्रार्थना की। दूसरे दिन जब कुम्हार सुबह उठा तो उसने देखा कि आंवा में उसके बर्तन तो पक गए थे, लेकिन बच्चे का बाल बांका भी नहीं हुआ था। वह बहुत डर गया और राजा के दरबार में जाकर सारी घटना बताई।

राजा ने उस बच्चे और उसकी मां को बुलवाया। मां ने संकष्टी चतुर्थी का वर्णन किया। उसने कहा कि इस दिन गणेशजी की पूजा करने से सभी तरह के विघ्न दूर हो जाते हैं। इस घटना के बाद से महिलाएं संतान और परिवार के सौभाग्य के लिए संकष्टी चतुर्थी का व्रत करने लगीं।
 

गणेश पूजा आरंभ विधि

गणेश पूजा आरंभ करने के लिए निम्नलिखित विधि अपनानी चाहिए:

शुद्धता-गणेश पूजा करने से पहले शरीर, मन और वाणी को शुद्ध करना चाहिए। इसके लिए स्नान करना चाहिए, शुद्ध वस्त्र धारण करना चाहिए और मन को एकाग्र करना चाहिए।

स्थान-गणेश पूजा एक पवित्र स्थान पर करना चाहिए। इसके लिए घर में एक पूजा स्थल बना सकते हैं या फिर किसी मंदिर में जा सकते हैं।

पूजा सामग्री-गणेश पूजा के लिए निम्नलिखित सामग्री की आवश्यकता होती है:
गणेश जी की मूर्ति या तस्वीर
फूल
धूप
दीप
अक्षत
रोली
कुमकुम
पान
सुपारी
मोदक
प्रसाद
पल्लव, 
सुपारी, 
सिक्का
पूजा का कलश
नारियल
लाल वस्त्र

पूजा विधिसबसे पहले एक कलश में जल भरकर ले आएं। जहां भी आपने पूजा के लिए मंडप बनाया है वहां आसन बिछाकर बैठ जाएं। हाथ में जल लेकर सबसे पहले हाथ में कुश और जल लें, फिर मंत्र बोलें -

ओम अपवित्र: पवित्रो वा सर्वावस्थां गतोअपी वा।
य: स्मरेत पुण्डरीकाक्षं स बाहान्तर: शुचि:।।


फिर जल को अपने ऊपर और पूजा के लिए रखे सभी सामग्रियों पर इसे छिड़क दें। इसके बाद तीन बार आचमन करें। हाथ में जल लें और ओम केशवाय नम: ओम नाराणाय नम: ओम माधवाय नम: ओम ह्रषीकेशाय नम:। ऐसे बोलते हुए तीन बार हाथ से जल लेकर मुंह से स्पर्श करें फिर हाथ धो लें।

इसके बाद जहां गणेशजी की पूजा करनी हो उस स्थान पर कुछ अटूट चावल रखें। इसके ऊपर गणेशजी की प्रतिमा को विराजित करें। गणेशजी की प्रतिमा को स्थापित करने से पहले उन्हें गंगा जल से स्नान कराएं। फिर उन्हें फूल, अक्षत, रोली, कुमकुम, पान, सुपारी आदि से श्रृंगार करें।
 
गणेश जी को पूजा के आसन पर बिठाने के बाद संकल्प लेना चाहिए और जातक को अपने हाथ में
फूल, फल, पान, सुपारी, अक्षत (अटूट चावल) चांदी का सिक्का या कुछ रुपया, मिठाई, आदि सभी सामग्री लेकर मन्त्र बोलना चाहिए-
‘ ऊं विष्णुर्विष्णुर्विष्णु:, ऊं तत्सदद्य श्री पुराणपुरुषोत्तमस्य विष्णोराज्ञया प्रवर्तमानस्य ब्रह्मणोऽह्नि द्वितीय पराद्र्धे श्री श्वेतवाराहकल्पे सप्तमे वैवस्वतमन्वन्तरे, अष्टाविंशतितमे कलियुगे, कलिप्रथम चरणे जम्बुद्वीपे भरतखण्डे आर्यावर्तान्तर्गत ब्रह्मवर्तैकदेशे पुण्य (अपने नगर/गांव का नाम लें) क्षेत्रे बौद्धावतारे वीर विक्रमादित्यनृपते : 2079, तमेऽब्दे नल नाम संवत्सरे सूर्य दक्षिणायने, मासानां मासोत्तमे भाद्र मासे शुक्ले पक्षे चतुर्थी तिथौ बुधवासरे चित्रा नक्षत्रे शुक्ल योगे विष्टि करणादिसत्सुशुभे योग (गोत्र का नाम लें) गोत्रोत्पन्नोऽहं अमुकनामा (अपना नाम लें) सकल-पाप-क्षयपूर्वकं सर्वारिष्ट शांतिनिमित्तं सर्वमंगलकामनया– श्रुतिस्मृत्यो- क्तफलप्राप्तर्थं— निमित्त महागणपति पूजन -पूजोपचारविधि सम्पादयिष्ये।
 
संकल्प कर लेने के बाद कलश की पूजा करनी चाहिए और इसे गणेश जी की तरफ रख दें. कलश में पल्लव, सुपारी, सिक्का रखें और कलश पर नारियल को लाल वस्त्र में लपेट कर ऊपर रख दें. अब कलश के पास एक दीप प्रज्वल्लित करके रख दें.

अब जातक को अपने हाथ में पुष्प लेना चाहिए और सबसे पहले वरुण देव का आह्वान करना चाहिए. अब आप ‘ओ३म् त्तत्वायामि ब्रह्मणा वन्दमानस्तदाशास्ते यजमानो हविभि:। अहेडमानो वरुणेह बोध्युरुशंस मान आयु: प्रमोषी:। (अस्मिन कलशे वरुणं सांग सपरिवारं सायुध सशक्तिकमावाहयामि, ओ३म्भूर्भुव: स्व:भो वरुण इहागच्छ इहतिष्ठ। स्थापयामि पूजयामि॥) मन्त्र का जाप करें. अब गणेश जी का ध्यान करें और ‘गजाननम्भूतगणादिसेवितं कपित्थ जम्बू फलचारुभक्षणम्। उमासुतं शोक विनाशकारकं नमामि विघ्नेश्वरपादपंकजम्।’ मन्त्र का जाप करें.


अब हाथों में अक्षत लेकर ‘ऊं गं गणपतये इहागच्छ इह सुप्रतिष्ठो भव।’ मन्त्र बोले और अक्षत गणेशजी की प्रतिमा के सामने डाल दें। इसके बाद, पद्य, आर्घ्य, स्नान, आचमन मंत्र बोलें. इसके बाद में हाथ में थोड़ा जल लेखर ‘एतानि पाद्याद्याचमनीय-स्नानीयं, पुनराचमनीयम् ऊं गं गणपतये नम:।’ मन्त्र बोलें. अब जल को गणेश की के समक्ष रकेह पात्र में डाल दें.
इसके उपरान्त ‘इदम् रक्त चंदनम् लेपनम् ऊं गं गणपतये नम:,’ और ‘इदम् श्रीखंड चंदनम्’ बोलें और गणेश जी के श्रीखंड चंदन लगाएं।
इसके बाद ‘इदं सिन्दूराभरणं लेपनम् ऊं गं गणपतये नम:’ बोलते हुए गणेशजी को स‍िंदूर लगाएं। इसके बाद गणेश जी को दूर्वा और विल्बपत्र चढ़ाएं।
इदं बिल्वपत्रं ओम गं गणपतये नमः बोलते हुए दूर्वा और बेलपत्र अर्पित करने चाहिए.
इसके बाद गणेश जी को लाल वस्त्र पहनाएं और बोलें इदं रक्त वस्त्रं ऊं गं गणपतये समर्पयामि।
‘इदं नानाविधि नैवेद्यानि ऊं गं गणपतये समर्पयामि:’ और ‘इदं शर्करा घृत युक्त नैवेद्यं ऊं गं गणपतये समर्पयामि:’ बोलते हुए गनेझ जी को मोदक का भोग लगाकर आचमन करवाएं.
इदं आचमनयं ऊं गं गणपतये नम:’ और ‘ इदं ताम्बूल पुगीफल समायुक्तं ऊं गं गणपतये समर्पयामि:।’ बोलकर गणेश जी को पान-सुपारी अर्पित करें।
‘एष: पुष्पान्जलि ऊं गं गणपतये नम:’ बोलते हुए गणेश जी को पुष्प अर्पित करें. गणेशजी की पूजा के बाद ऋद्धि, सिद्धि देवी और क्षेम लाभ की भी पूजा करें। इसके बाद आरती करें और प्रसाद को सभी में बाँट दें.


गणेश पूजा मंत्र
गणेश पूजा के लिए निम्नलिखित मंत्रों का जाप किया जा सकता है:
गणेश स्तुति
वक्रतुण्ड महाकाय सूर्यकोटि समप्रभ।
निर्विघ्नं कुरु मे देव सर्वकार्येषु सर्वदा॥

गणेश मंत्र
ॐ गं गणपतये नमः॥
गणेश अष्टोत्तरशतनाम स्तोत्र
गणेश अष्टोत्तरशतनाम स्तोत्र का पाठ करने से गणेश जी की विशेष कृपा प्राप्त होती है।

गणेश पूजा का महत्व
गणेश पूजा हिंदू धर्म में एक महत्वपूर्ण पर्व है। इस दिन गणेश जी की पूजा करने से सभी तरह के विघ्न दूर होते हैं और मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं।
 
 

गणेश जी की पूजा के लाभ

गणेश जी को हिंदू धर्म में प्रथम पूजनीय माना जाता है। उन्हें विघ्नहर्ता भी कहा जाता है। गणेश जी की पूजा करने से सभी तरह के विघ्न दूर होते हैं और मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। गणेश जी की पूजा के कई लाभ हैं, जिनमें से कुछ निम्नलिखित हैं:

विघ्नों का नाश: गणेश जी को विघ्नहर्ता कहा जाता है। उनकी पूजा करने से सभी तरह के विघ्न दूर होते हैं। किसी भी नए कार्य की शुरुआत से पहले गणेश जी की पूजा करना शुभ माना जाता है।
 
मनोकामनाओं की पूर्ति: गणेश जी को 'सर्वसिद्धिदाता' भी कहा जाता है। उनकी पूजा करने से सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं।

बुद्धि और ज्ञान में वृद्धि: गणेश जी को ज्ञान और बुद्धि के देवता भी कहा जाता है। उनकी पूजा करने से बुद्धि और ज्ञान में वृद्धि होती है।

कार्यों में सफलता: गणेश जी की पूजा करने से कार्यों में सफलता मिलती है।
 
जीवन में सुख-समृद्धि: गणेश जी की पूजा करने से जीवन में सुख-समृद्धि आती है।

गणेश जी की पूजा विधि-विधान से करने से इन सभी लाभों को प्राप्त किया जा सकता है। गणेश जी की पूजा के लिए शुभ मुहूर्त में स्नान करके स्वच्छ वस्त्र धारण करना चाहिए। फिर गणेश जी की मूर्ति या तस्वीर को स्थापित करके उन्हें फूल, धूप, दीप, अक्षत, रोली, कुमकुम आदि से श्रृंगार करना चाहिए। इसके बाद गणेश जी के मंत्रों का जाप करना चाहिए और अंत में गणेश जी से अपने मनोकामनाओं की पूर्ति की प्रार्थना करनी चाहिए।

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