मां महालक्ष्मी की व्रत कथा Maa Mahalakshmi Vrat Katha Kahani
प्राचीन समय की बात है। प्राचीन समय में महिषासुर नाम का एक राक्षस रहता था। महिषासुर ने पृथ्वी लोक पर सभी राजाओं को हराकर पृथ्वी लोक पर अधिकार कर लिया था। पृथ्वी लोक के साथ-साथ महिषासुर ने पाताल लोक पर भी अपना अधिकार स्थापित कर लिया था।
स्वर्ग पर अधिकार प्राप्त करने के लिए उसने देवताओं के साथ भी युद्ध करना शुरू कर दिया। सभी देवता अपनी रक्षा के लिए भगवान विष्णु जी तथा भगवान शंकर जी के पास पहुंचे और उनकी स्तुति की। उनकी स्तुति से प्रसन्न होकर भगवान शंकर जी तथा भगवान विष्णु जी ने उनके सहायता की।
भगवान शंकर जी तथा भगवान विष्णु जी के शरीर से एक दिव्य तेज पुंज निकला। जिसने महालक्ष्मी का रूप धारण कर लिया। इन्हीं महालक्ष्मी देवी ने महिषासुर दैत्य को युद्ध में परास्त कर दिया। मां महालक्ष्मी ने देवताओं की रक्षा की। तथा देवताओं के सभी कष्टों को दूर किया।
महालक्ष्मी व्रत Mahalaxmi Vrat
धन की देवी मां लक्ष्मी को प्रसन्न करने के लिए भाद्रपद माह में 16 दिन के महालक्ष्मी व्रत रखे जाते हैं। इस व्रत को रखने से मां लक्ष्मी की कृपा प्राप्त होती है और भक्तों के जीवन में सुख-समृद्धि, धन-धान्य और सौभाग्य की प्राप्ति होती है।
महालक्ष्मी व्रत की शुरुआत भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि से होती है। इस दिन, व्रती महिलाएं स्नान करने के बाद व्रत का संकल्प लेती हैं। इसके बाद, वे अपने घरों में कलश स्थापना करती हैं और मां लक्ष्मी की पूजा करती हैं। व्रत के दौरान, व्रती महिलाएं सात्विक भोजन करती हैं और मां लक्ष्मी की कथा सुनती हैं। अश्विन माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को, व्रती महिलाएं व्रत का उद्यापन करती हैं।
महालक्ष्मी व्रत महत्व (Mahalaxmi Vrat Significance)
महालक्ष्मी व्रत का बहुत ही महत्व है। यह व्रत दुख, दरिद्रता का नाश करने वाला माना गया है। मान्यता है कि इस व्रत को करने से मां लक्ष्मी अत्यंत प्रसन्न होती हैं और भक्तों के जीवन में सुख-समृद्धि, धन-धान्य और सौभाग्य की प्राप्ति होती है। पांडवों की कथा के अनुसार, जब पांडवों ने चौपड़ में अपना सब कुछ गवां दिया था, तब श्रीकृष्ण की सलाह पर पांडवों ने धनदायक महालक्ष्मी व्रत किया था। इस व्रत के प्रभाव से पांडवों को अपना खोया हुआ सब कुछ वापस मिल गया और वे पुन: धन-धान्य और ऐश्वर्य से संपन्न हो गए।
महालक्ष्मी व्रत को विधि-विधान से करने से मां लक्ष्मी की कृपा प्राप्त होती है और भक्तों के जीवन में सुख-समृद्धि और सफलता की प्राप्ति होती है।
महालक्ष्मी व्रत पूजा विधि
पूजा सामग्री:
मां लक्ष्मी और भगवान गणेश की मूर्ति या चित्र
- कलश
- नारियल
- चावल
- ग्यारह दीपक
- खील
- बताशे
- मिठाई
- वस्त्र
- आभूषण
- चंदन का लेप
- सिंदूर
- कुमकुम
- सुपारी
- पान
- फूल
- दूर्वा
- लौंग
- इलायची
- केसर
- कपूर
- हल्दी
- धूप
- अगरबत्ती
पूजा विधि:
- सबसे पहले एक चौकी पर मां लक्ष्मी और भगवान गणेश की मूर्ति या चित्र की स्थापना करें। ध्यान रखें कि मूर्ति का मुख पूर्व या पश्चिम दिशा में रखें।
- इसके बाद थोड़ा से चावल डालकर लक्ष्मी जी के पास कलश की स्थापना करें। कलश के ऊपर एक नारियल में कपड़ा बांधकर रखें।
- अब ग्यारह दीपक जलाएं और मां लक्ष्मी और भगवान गणेश को खीर, बताशे, मिठाई, वस्त्र, आभूषण, चंदन का लेप, सिंदूर, कुमकुम, सुपारी, पान, फूल, दूर्वा, लौंग, इलायची, केसर, कपूर, हल्दी, धूप और अगरबत्ती अर्पित करें।
- इसके बाद व्रत का संकल्प लें और मां लक्ष्मी की कथा का पाठ करें।
- अंत में भगवान गणेश और मां लक्ष्मी की आरती करें।
अश्विन माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को, व्रती महिलाएं व्रत का उद्यापन करती हैं। इस दिन, व्रती महिलाएं सुबह जल्दी उठकर स्नान करती हैं और मां लक्ष्मी की पूजा करती हैं। इसके बाद, वे गरीबों को भोजन और वस्त्र दान करती हैं। अंत में, वे व्रत का उद्यापन करती हैं।
महालक्ष्मी व्रत को विधि-विधान से करने से मां लक्ष्मी की कृपा प्राप्त होती है और भक्तों के जीवन में सुख-समृद्धि और सफलता की प्राप्ति होती है। महालक्ष्मी व्रतमहालक्ष्मी व्रत एक ऐसा व्रत है जो मां लक्ष्मी को प्रसन्न करने के लिए किया जाता है। इस व्रत को करने से घर में सुख-समृद्धि, धन-धान्य और खुशहाली आती है। इस व्रत को करने के लिए कोई विशेष नियम नहीं हैं, लेकिन कुछ उपाय किए जा सकते हैं, जैसे कि व्रत के दौरान मां लक्ष्मी की पूजा करते समय उन्हें लाल रंग के फूल, फल, मिठाई आदि अर्पित करना, मां लक्ष्मी के मंत्रों का जाप करना, व्रत के दौरान मां लक्ष्मी की कथा सुनना या पढ़ना, और व्रत के दौरान किसी जरूरतमंद व्यक्ति को दान करना।
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Author - Saroj Jangir
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