महालक्ष्मी स्तोत्रं लिरिक्स Mahalakshmi Strotam Lyrics

महालक्ष्मी भगवान विष्णु की पत्नी हैं। पार्वती और सरस्वती के साथ, वह त्रिदेवियाँ में से एक है और धन, सम्पदा, शान्ति और समृद्धि की देवी मानी जाती हैं। दीपावली के त्योहार में उनकी गणेश सहित पूजा की जाती है। महालक्ष्मी को कई नामों से जाना जाता है, जैसे कि लक्ष्मी, श्री, भगवती, आदि। उनका उल्लेख सबसे पहले ऋग्वेद के श्री सूक्त में मिलता है। इस सूक्त में, लक्ष्मी को समृद्धि, सौभाग्य और आशीर्वाद की देवी के रूप में वर्णित किया गया है।

महालक्ष्मी, जिनके चार हाथ होते हैं। उनके चार हाथों में कमल का फूल, धन का कलश, अमृत का कलश और माला होती है। वह पीले रंग के वस्त्र पहने होती हैं और उनके सिर पर मुकुट होता है। महालक्ष्मी को धन, सम्पदा, शान्ति और समृद्धि की देवी माना जाता है। उनकी पूजा करने से लोगों को इन सभी चीजों की प्राप्ति होती है। महालक्ष्मी की पूजा करने से लोगों के जीवन में सुख, शांति और समृद्धि आती है।

महालक्ष्मी की पूजा करने के कई तरीके हैं। सबसे आम तरीका है उनकी प्रतिमा या तस्वीर के सामने बैठना और उनके मंत्रों का जाप करना। महालक्ष्मी की पूजा करने के लिए कई मंत्र हैं, लेकिन सबसे लोकप्रिय मंत्र "ॐ श्री महालक्ष्मी नमो नमः" है। महालक्ष्मी की पूजा करने के लिए एक अन्य तरीका है उनके भजनों और आरती का गायन करना। महालक्ष्मी के कई भजन और आरती हैं, जो उनके गुणों और महिमा का वर्णन करती हैं।

महालक्ष्मी की पूजा करने का सबसे अच्छा समय सुबह जल्दी या शाम को है। पूजा करने से पहले, स्नान करके साफ कपड़े पहनना चाहिए। पूजा के स्थान को साफ और सुगन्धित करना चाहिए। पूजा करते समय, ध्यान केंद्रित करना चाहिए और महालक्ष्मी को मन में याद करना चाहिए। महालक्ष्मी की पूजा करने से लोगों को धन, सम्पदा, शान्ति और समृद्धि की प्राप्ति होती है। उनकी पूजा करने से लोगों के जीवन में सुख, शांति और समृद्धि आती है।

Naye Bhajano Ke Lyrics

महालक्ष्मी स्तोत्रं लिरिक्स Mahalakshmi Strotam Lyrics

हरिः ॐ
हिरण्यवर्णां हरिणीं,
सुवर्णरजतस्त्रजाम्,
चन्द्रां हिरण्मयीं लक्ष्मीं,
जातवेदो म आवह।

तां म आवह जातवेदो,
लक्ष्मीमनपगामिनीम्,
यस्यां हिरण्यं विन्देयं,
गामश्वं पुरुषानहम्।

अश्वपूर्वां रथमध्यां,
हस्तिनाद प्रबोधिनीम्,
श्रियं देवीमुपह्वये,
श्रीर्मा देवीर्जुषताम्।

कां सोस्मितां,
हिरण्यप्राकारामार्द्रां,
ज्वलन्तीं तृप्तां तर्पयन्तीम्,
पद्मे स्थितां पद्मवर्णां,
तामिहोपह्वये श्रियम्।

चन्द्रां प्रभासां यशसा,
ज्वलन्तीं श्रियं,
लोके देवजुष्टामुदाराम्,
तां पद्मिनीमीं शरणमहं,
प्रपद्येऽलक्ष्मीर्मे,
नश्यतां त्वां वृणो।

आदित्यवर्णे तपसोऽधिजातो,
वनस्पतिस्तव वृक्षोऽथ बिल्वः,
तस्य फलानि तपसा नुदन्तु,
मायान्तरायाश्च बाह्या अलक्ष्मीः।

उपैतु मां देवसखः,
कीर्तिश्च मणिना सह,
प्रादुर्भूतोस्मि राष्ट्रेऽस्मिन्कि,
र्तिमृद्धिं ददातु मे।

क्षुत्पिपासामलां,
ज्येष्ठामलक्ष्मीं नाशयाम्यहम्,
अभूतिमसमृद्धिं च सर्वां,
निर्णुद मे गृहात्।

गन्धद्वारां दुराधर्षां,
नित्यपुष्टां करीषिणीम्,
ईश्वरीगं सर्वभूतानां,
तामिहोपह्वये श्रियम्।

मनसः काममाकूतिं,
वाचस्सत्यमशीमहि,
पशूनां रुपमन्नस्य मयि,
श्रीः श्रयतां यशः।

कर्दमेन प्रजा-भूता,
मयि सम्भ्रम-कर्दम,
श्रियं वासय मे कुले,
मातरं पद्म-मालिनीम।

आपः सृजन्तु स्निग्धानि,
चिक्लीत वस मे गृहे,
निच-देवी मातरं,
श्रियं वासय मे कुले।

आर्द्रां पुष्करिणीं पुष्टिं,
सुवर्णां हेम-मालिनीम्,
सूर्यां हिरण्मयीं लक्ष्मीं,
जातवेदो ममावह।

ॐ महादेव्यै च विद्महे,
विष्णुपत्नी च धीमहि,
तन्नो लक्ष्मीः प्रचोदयात्।



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