भावार्थ - एक सखी कहती है - अरी सखि! कामरी ओढ़ने वाले ने मुझे बिना मूल्य के ही मोल ले लिया है। एक दिन दही बेचने जा रही थी। मार्ग में उस नटखट ने एक अटपटी बात कही। उसने पुकार कर कहा - अरी सखि! जरा सुन ले, तुझसे कुछ काम है। मैंने कहा क्या काम है? उसने कहा, 'रात में हमने एक सपना देखा है कि तू मेरी हो गई, मैं तेरा हो गया। 'मैंने कहा, 'अरे निर्लज्ज चल दूर हट।' उसने कहा- तू भी निर्लज्ज है जो मुझ प्रियतम को नाम लेकर गाली दे रही है। मैंने कहा कान खोलकर सुन ले, तू सबसे ऐसा ही कहता फिरता है, तेरी बात का मूल्य एक छदाम भी नहीं है। उसने कहा- 'तू तो मेरी हो चुकी, तू मुझे अपना मान या न मान, यह तेरी इच्छा'। 'कृपालु' कहते हैं यह सुनते ही सखी श्यामसुन्दर पर न्यौछावर हो गई।
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