मोहि लीनो मोल बिनु दाम री कामरी-वारे

मोहि लीनो मोल बिनु दाम री कामरी वारे ने


मोहि लीनो मोल बिनु दाम री, कामरी-वारे ने।
दधि बेचने इक दिन जात रही,
नटखट ने अटपट बात कही।
"टुक सुन तो सों कछु काम री," कामरी-वारे ने।

हौं बोलीं, "काम बता अपनो,"
बोल्यो, "निशि देख्यो इक सपनो।
तू मेरी, मैं तेरो ब्रज बाम री," कामरी-वारे ने।

बोली, "नटखट, लंपट, चल हट,"
"तू भी कछु कम नहीं कह लंपट।
दे गारी, पियहिं लै नाम री," कामरी-वारे ने।

हौं बोली, "सुन ले कान खोल,"
"तू सब ही ऐसेहि कहत डोल।
तेरी बात न दाम छदाम री," कामरी-वारे ने।

बोल्यो, "तू तो है गई मोरी,"
"मोहिं मान न निज इच्छा तोरी।"
सुनि वारी 'कृपालु', हौं भाम री, कामरी-वारे ने।


मोहिं लीनो मोल बिनु दाम री, कामरी-वारे ने | प्रेम रस मदिरा | प्रकीर्ण माधुरी | Ft.Akhileshwari Didi

ऐसे ही अन्य भजनों के लिए आप होम पेज / गायक कलाकार के अनुसार भजनों को ढूंढें.
 

पसंदीदा गायकों के भजन खोजने के लिए यहाँ क्लिक करें।

 
भावार्थ - एक सखी कहती है - अरी सखि! कामरी ओढ़ने वाले ने मुझे बिना मूल्य के ही मोल ले लिया है। एक दिन दही बेचने जा रही थी। मार्ग में उस नटखट ने एक अटपटी बात कही। उसने पुकार कर कहा - अरी सखि! जरा सुन ले, तुझसे कुछ काम है। मैंने कहा क्या काम है? उसने कहा, 'रात में हमने एक सपना देखा है कि तू मेरी हो गई, मैं तेरा हो गया। 'मैंने कहा, 'अरे निर्लज्ज चल दूर हट।' उसने कहा- तू भी निर्लज्ज है जो मुझ प्रियतम को नाम लेकर गाली दे रही है। मैंने कहा कान खोलकर सुन ले, तू सबसे ऐसा ही कहता फिरता है, तेरी बात का मूल्य एक छदाम भी नहीं है। उसने कहा- 'तू तो मेरी हो चुकी, तू मुझे अपना मान या न मान, यह तेरी इच्छा'। 'कृपालु' कहते हैं यह सुनते ही सखी श्यामसुन्दर पर न्यौछावर हो गई।
 
रचयिता : जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज
पुस्तक : प्रेम रस मदिरा (प्रकीर्ण माधुरी)
पद संख्या : 17
पृष्ठ संख्या : 480
सर्वाधिकार सुरक्षित © जगद्गुरु कृपालु परिषत्
Saroj Jangir Author Author - Saroj Jangir

इस ब्लॉग पर आप पायेंगे मधुर और सुन्दर भजनों का संग्रह । इस ब्लॉग का उद्देश्य आपको सुन्दर भजनों के बोल उपलब्ध करवाना है। आप इस ब्लॉग पर अपने पसंद के गायक और भजन केटेगरी के भजन खोज सकते हैं....अधिक पढ़ें

Next Post Previous Post