साधु भाई मन रो केणो मत कीजे देसी भजन
साधु भाई मन रो केणो मत कीजे देसी भजन
बंधुव धिक जन्म,
कही कुल काम नहीं आवे,
पुत्र धिक जन्म,
मात-पिता दुःख पावे।
नारी धिक जन्म,
पीव न लागे प्यारी,
राजा धिक जन्म,
नगरी रेवे दुखारी।
कवि धिक जन्म,
बैठ सभा न रिझावै,
दातार धिक जन्म,
मंगत घर खाली जावे।
सात जन्म धिक कहिये,
खोटी माया नहीं माणिये,
बेताल कहे विक्रम सुणो,
धिक वो राम न जाणिये।।
मन थू म्हारी मान ले,
बार-बार कहूं तोय,
हरि भजन बिना तेरो,
निस्तारो नहीं होय।
निस्तारो नहीं होय,
गड़ीन्दा खातों जावे,
भवसागर में सतगुरु बिना,
कौन पार लगावे।
प्रताप राम संत कहत हैं,
घट में लीजे जोय,
मन थू म्हारी मान ले,
बार-बार कहूं तोय।।
मैं जाणियो मन मर गया,
बळ जळ हुआ भभूत,
मन कुत्ता आगे खड़ा,
ज्यूं जंगल में भूत।
मन के हारे हार है,
मन के जीते जीत,
मन ले जावे बैकुंठ में,
मन करावे फजीत।।
साधु भाई मन रो,
केणो मत कीजे,
दव में काठ कितो ही घालो,
अग्नि नहीं पतीजे,
साधु भाई मन रो,
केणो मत कीजे।।
मन ही महा अनीति कहिये,
बड़ा-बड़ा भूप ठगिजे,
जोधा जबर हार गया इन सूं,
पड़िया कैद में पसीजे,
साधु भाई मन रो,
केणो मत कीजे।।
इन मन में एक निज मन कहिजे,
उन रो संग करीजे,
ऋषि-मुनि इन अंतर्मन से,
सायब रे संग भींजे,
साधु भाई मन रो,
केणो मत कीजे।।
मन को मोड़ करे कोई सुगरो,
जद थारो मनवो धीजे,
इड़ा पिंगला बोले जुगत से,
सुखमन रो घर लीजे,
साधु भाई मन रो,
केणो मत कीजे।।
जीव पीव री दूरी मेटो,
जद थारो मनवो धीजे,
मदन केवे आ मन री मस्ती,
भले भाग भेटीजे,
साधु भाई मन रो,
केणो मत कीजे।।
साधु भाई मन रो,
केणो मत कीजे,
दव में काठ कितो ही घालो,
अग्नि नहीं पतीजे,
साधु भाई मन रो,
केणो मत कीजे।।
कही कुल काम नहीं आवे,
पुत्र धिक जन्म,
मात-पिता दुःख पावे।
नारी धिक जन्म,
पीव न लागे प्यारी,
राजा धिक जन्म,
नगरी रेवे दुखारी।
कवि धिक जन्म,
बैठ सभा न रिझावै,
दातार धिक जन्म,
मंगत घर खाली जावे।
सात जन्म धिक कहिये,
खोटी माया नहीं माणिये,
बेताल कहे विक्रम सुणो,
धिक वो राम न जाणिये।।
मन थू म्हारी मान ले,
बार-बार कहूं तोय,
हरि भजन बिना तेरो,
निस्तारो नहीं होय।
निस्तारो नहीं होय,
गड़ीन्दा खातों जावे,
भवसागर में सतगुरु बिना,
कौन पार लगावे।
प्रताप राम संत कहत हैं,
घट में लीजे जोय,
मन थू म्हारी मान ले,
बार-बार कहूं तोय।।
मैं जाणियो मन मर गया,
बळ जळ हुआ भभूत,
मन कुत्ता आगे खड़ा,
ज्यूं जंगल में भूत।
मन के हारे हार है,
मन के जीते जीत,
मन ले जावे बैकुंठ में,
मन करावे फजीत।।
साधु भाई मन रो,
केणो मत कीजे,
दव में काठ कितो ही घालो,
अग्नि नहीं पतीजे,
साधु भाई मन रो,
केणो मत कीजे।।
मन ही महा अनीति कहिये,
बड़ा-बड़ा भूप ठगिजे,
जोधा जबर हार गया इन सूं,
पड़िया कैद में पसीजे,
साधु भाई मन रो,
केणो मत कीजे।।
इन मन में एक निज मन कहिजे,
उन रो संग करीजे,
ऋषि-मुनि इन अंतर्मन से,
सायब रे संग भींजे,
साधु भाई मन रो,
केणो मत कीजे।।
मन को मोड़ करे कोई सुगरो,
जद थारो मनवो धीजे,
इड़ा पिंगला बोले जुगत से,
सुखमन रो घर लीजे,
साधु भाई मन रो,
केणो मत कीजे।।
जीव पीव री दूरी मेटो,
जद थारो मनवो धीजे,
मदन केवे आ मन री मस्ती,
भले भाग भेटीजे,
साधु भाई मन रो,
केणो मत कीजे।।
साधु भाई मन रो,
केणो मत कीजे,
दव में काठ कितो ही घालो,
अग्नि नहीं पतीजे,
साधु भाई मन रो,
केणो मत कीजे।।
मन रो केणो मत कीजै | marwadi bhajan | देसी भजन वार्ता | Shyam Vaishnav
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Author - Saroj Jangir
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