भगवान शिव जी के नाम सुमिरण के हैं असंख्य लाभ
भगवान शिव को उनके विभिन्न गुणों, शक्तियों और रूपों के आधार पर अनेक कल्याणकारी नामों से जाना जाता है। प्रत्येक नाम उनके किसी विशेष स्वरूप या विशेषता को दर्शाता है। शिव स्मरण की महिमा अपार है। वे संहारक है लेकिन सृजनकर्ता भी हैं। शिव जी ने विष का पान करके संसार को कष्टों से मुक्त किया और शिव ने ही कल्याण के लिए अपनी जटाओं से गंगा को निकाला। शिव तीनों लोकों के स्वामी है और असुरों से उन्होंने संसार को बचाया। शिव जी ही आदिगुरु भी हैं। भगवान् शिव जी स्मरण मात्र से ही व्यक्ति को मोक्ष की प्राप्ति होती है और सौभाग्य, आरोग्य, और असीम साहस, बल, और ऊर्जा की प्राप्ति भी होती है। आइये शिव जी के इन नामों का सुमिरन करें।
यहाँ भगवान शिव के कुछ प्रमुख नाम और उनके अर्थ आप भी जानिये-
- शिव: कल्याणकारी।
- महेश्वर: महान ईश्वर।
- शम्भू: आनंद के स्रोत।
- पिनाकी: पिनाक धनुष धारण करने वाले।
- शशिशेखर: सिर पर चंद्रमा धारण करने वाले।
- वामदेव: सुंदर स्वरूप वाले।
- विरूपाक्ष: त्रिनेत्रधारी।
- कपाली: कपाल धारण करने वाले।
- नीललोहित: नीले और लाल रंग वाले।
- शूलपाणी: त्रिशूल धारण करने वाले।
- गंगाधर: गंगा को धारण करने वाले।
- त्रिलोकेश: तीनों लोकों के स्वामी।
- महाकाल: समय के स्वामी।
- भूतनाथ: प्रेतों के स्वामी।
- नटराज: नृत्य के देवता।
- अर्धनारीश्वर: आधे पुरुष और आधे स्त्री के रूप वाले।
- विश्वेश्वर: विश्व के ईश्वर।
- भैरव: भय का नाश करने वाले।
- आशुतोष: शीघ्र प्रसन्न होने वाले।
- पशुपति: सभी जीवों के स्वामी।
- आदिदेव: सबसे प्राचीन देवता।
- अभय: निर्भयता प्रदान करने वाले।
- अभिराम: अत्यंत आकर्षक और रमणीय।
- अचिंत्य: जिनका चिंतन संभव नहीं, अर्थात असीमित और अनंत।
- अक्षत: जो अविनाशी और अक्षय हैं।
- अकुल: जिनका कोई कुल या वंश नहीं है, स्वयंभू।
- अमोघ: जिनका कार्य सदा सफल होता है।
- अनघ: पापरहित और शुद्ध।
- अनिरुद्ध: जिन्हें कोई रोक नहीं सकता, सर्वशक्तिमान।
- अत्रेय: महर्षि अत्रि के वंशज।
- भानु: प्रकाशमान, सूर्य के समान तेजस्वी।
- भावेश: भावनाओं के स्वामी।
- चंद्रेश: चंद्रमा के स्वामी।
- चतरेश: चारों दिशाओं के स्वामी।
- देवांग: दिव्य अंगों वाले।
- देवेश: देवताओं के ईश्वर।
- एकाक्ष: एक नेत्र वाले, अर्थात तीसरे नेत्र के स्वामी।
- गिरीक: पर्वतों के स्वामी।
- गिरीश: पर्वतों के ईश्वर।
- हरतेजस: सभी तेज (प्रकाश) को हरने वाले।
- इंदुशेखर: मस्तक पर चंद्रमा धारण करने वाले।
- ईशान: उत्तर-पूर्व दिशा के स्वामी।
- जतिन: जटा (बालों) वाले, जटाधारी।
- जयंत: विजयी, सदा जीतने वाले।
- जयेश्वर: विजय के ईश्वर।
- जीवितेश: जीवन के स्वामी।
- करण: कारण स्वरूप, सृष्टि के मूल कारण।
- कौशिक: विश्वामित्र के वंशज।
- केदार: पवित्र स्थान के स्वामी।
- किरात: शिकारी के रूप वाले।
- लौहित: लाल रंग वाले।
- महेश: महान ईश्वर।
- महिरान: पृथ्वी के स्वामी।
- मृगांक: चंद्रमा के समान मुख वाले।
- नागेश: नागों के स्वामी।
- नाभस्य: आकाश के समान व्यापक।
- नभ्य: आकाश में स्थित।
- नकुल: चार भुजाओं वाले।
- नंदीश: नंदी के स्वामी।
- निहंत्र: संहार करने वाले।
- निरंजन: बिना किसी दोष के, शुद्ध।
- पिनाकिन: पिनाक धनुष धारण करने वाले।
- प्रहस: प्रसन्नचित्त, हंसमुख।
- पुरजित: नगरों को जीतने वाले।
- पुष्कर: कमल के समान सुंदर।
- रैवत: धनवान, समृद्ध।
- रुद्र: भयानक रूप वाले, संहारक।
- रुद्रांश: रुद्र के अंश, शिव के अंश।
- समन्यु: समान मन वाले, समभाव रखने वाले।
- संभव: जो स्वयं प्रकट होते हैं, स्वयंभू।
- सर्वेश: सभी के ईश्वर।
- शाश्वत: शाश्वत, सदा रहने वाले।
- शिव: कल्याणकारी।
- शिवांग: शिव के अंग, दिव्य अंगों वाले।
- शिवाय: शिव को समर्पित, शिवमय।
- सोहम: "मैं
आइये शिव के १०८ नामों का हिंदी अर्थ भी जान लेते हैं -
- शिव: जो कल्याण के स्वरूप हैं।
- महेश्वर: जो माया के अधीश्वर हैं।
- शम्भू: जो आनंद के स्वरूप वाले हैं।
- पिनाकी: जो पिनाक धनुष धारण करने वाले हैं।
- चंद्रशेखर: जो सिर पर चंद्रमा धारण करने वाले हैं।
- वामदेव: जो अत्यंत सुंदर स्वरूप वाले हैं।
- विरूपाक्ष: जो भौंडी आंख वाले हैं।
- कपर्दी: जो जटाजूट धारण करने वाले हैं।
- नीललोहित: जो नीले और लाल रंग वाले हैं।
- शंकर: जो सबका कल्याण करने वाले हैं।
- शूलपाणी: जो हाथ में त्रिशूल धारण करने वाले हैं।
- खटवांगी: जो खटिया का एक पाया रखने वाले हैं।
- विष्णुवल्लभ: जो भगवान विष्णु के अतिप्रेमी हैं।
- शिपिविष्ट: जो सितुहा में प्रवेश करने वाले हैं।
- अंबिकानाथ: जो भगवती के पति हैं।
- श्रीकण्ठ: जो सुंदर कण्ठ वाले हैं।
- भक्तवत्सल: जो भक्तों को अत्यंत स्नेह करने वाले हैं।
- भव: जो संसार के रूप में प्रकट होने वाले हैं।
- शर्व: जो कष्टों को नष्ट करने वाले हैं।
- त्रिलोकेश: जो तीनों लोकों के स्वामी हैं।
- शितिकण्ठ: जो सफेद कण्ठ वाले हैं।
- शिवाप्रिय: जो पार्वती के प्रिय हैं।
- उग्र: जो अत्यंत उग्र रूप वाले हैं।
- कपाली: जो कपाल धारण करने वाले हैं।
- कामारी: जो कामदेव के शत्रु हैं।
- अंधकारसुरसूदन: जो अंधक दैत्य को मारने वाले हैं।
- गंगाधर: जो गंगा जी को धारण करने वाले हैं।
- ललाटाक्ष: जो ललाट में आंख वाले हैं।
- कालकाल: जो काल के भी काल हैं।
- कृपानिधि: जो करूणा की खान हैं।
- भीम: जो भयंकर रूप वाले हैं।
- परशुहस्त: जो हाथ में फरसा धारण करने वाले हैं।
- मृगपाणी: जो हाथ में हिरण धारण करने वाले हैं।
- जटाधर: जो जटा रखने वाले हैं।
- कैलाशवासी: जो कैलाश के निवासी हैं।
- कवची: जो कवच धारण करने वाले हैं।
- कठोर: जो अत्यंत मजबूत देह वाले हैं।
- त्रिपुरांतक: जो त्रिपुरासुर को मारने वाले हैं।
- वृषांक: जो बैल के चिह्न वाली झंडा वाले हैं।
- वृषभारूढ़: जो बैल की सवारी करने वाले हैं।
- भस्मोद्धूलितविग्रह: जो सारे शरीर में भस्म लगाने वाले हैं।
- सामप्रिय: जो सामगान से प्रेम करने वाले हैं।
- स्वरमयी: जो सातों स्वरों में निवास करने वाले हैं।
- त्रयीमूर्ति: जो वेद के रूप में विग्रह धारण करने वाले हैं।
- अनीश्वर: जिसका और कोई मालिक नहीं है।
- सर्वज्ञ: जो सब कुछ जानने वाले हैं।
- परमात्मा: जो सबका अपना आपा हैं।
- सोमसूर्याग्निलोचन: जो चंद्र, सूर्य और अग्निरूपी आंख वाले हैं।
- हवि: जो आहूति रूपी द्रव्य वाले हैं।
- यज्ञमय: जो यज्ञस्वरूप वाले हैं।
- सोम: जो उमा के साथ रूप वाले हैं।
- पंचवक्त्र: जो पांच मुख वाले हैं।
- सदाशिव: जो नित्य कल्याण रूप वाले हैं।
- विश्वेश्वर: जो सारे विश्व के ईश्वर हैं।
- वीरभद्र: जो बहादुर होते हुए भी शांत रूप वाले हैं।
- गणनाथ: जो गणों के स्वामी हैं।
- प्रजापति: जो प्रजाओं का पालन करने वाले हैं।
- हिरण्यरेता: जो स्वर्ण तेज वाले हैं।
- दुर्धुर्ष: जो किसी से नहीं दबने वाले हैं।
- गिरीश: जो पहाड़ों के मालिक हैं।
- गिरिश: जो कैलाश पर्वत पर सोने वाले हैं।
- अनघ: जो पापरहित हैं।
- भुजंगभूषण: जो सांप के आभूषण वाले हैं।
- भर्ग: जो पापों को भूंजने वाले हैं।
- गिरिधन्वा: जो मेरू पर्वत को धनुष बनाने वाले हैं।
- गिरिप्रिय: जो पर्वत प्रेमी हैं।
- कृत्तिवासा: जो गजचर्म पहनने वाले हैं।
- पुराराति: जो पुरों का नाश करने वाले हैं।
- भगवान: जो सर्वसमर्थ और षड्ऐश्वर्य संपन्न हैं।
- प्रमथाधिप: जो प्रमथगणों के अधिपति हैं।
- मृत्युंजय: जो मृत्यु को जीतने वाले हैं।
- सूक्ष्मतनु: जो सूक्ष्म शरीर वाले हैं।
- जगद्व्यापी: जो जगत में व्याप्त होकर रहने वाले हैं।
- जगद्गुरू: जो जगत के गुरु हैं।
- व्योमकेश: जो आकाश रूपी बाल वाले हैं।
- महासेनजनक: जो कार्तिकेय के पिता हैं।
- चारुविक्रम: जो सुंदर पराक्रम वाले हैं।
- रूद्र: जो भक्तों के दुख देखकर रोने वाले हैं।
- भूतपति: जो भूतप्रेत या पंचभूतों के स्वामी हैं।
- स्थाणु: जो स्पंदन रहित कूटस्थ रूप वाले हैं।
- अहिर्बुध्न्य: जो कुण्डलिनी को धारण करने वाले हैं।
- दिगम्बर: जो नग्न, आकाशरूपी वस्त्र वाले हैं।
- अष्टमूर्ति: जो आठ रूप वाले हैं।
- अनेकात्मा: जो अनेक रूप धारण करने वाले हैं।
- सात्त्विक: जो सत्व गुण वाले हैं।
- शुद्धविग्रह: जो शुद्धमूर्ति वाले हैं।
- शाश्वत: जो नित्य रहने वाले हैं।
- खण्डपरशु: जो टूटा हुआ फरसा धारण करने वाले हैं।
- अज: जो जन्म रहित हैं।
- पाशविमोचन: जो बंधन से छुड़ाने वाले हैं।
- मृड: जो सुखस्वरूप वाले हैं।
- पशुपति: जो पशुओं के मालिक हैं।
- देव: जो स्वयं प्रकाश रूप हैं।
- महादेव: जो देवों के भी देव हैं।
- अव्यय: जो खर्च होने पर भी न घटने वाले हैं।
- आशुतोष: जो तुरंत प्रसन्न होने वाले हैं।
- पूषदन्तभित्: जो पूषा के दांत उखाड़ने वाले हैं।
- अव्यग्र: जो कभी भी व्यथित न होने वाले हैं।
- दक्षाध्वरहर: जो दक्ष के यज्ञ को नष्ट करने वाले हैं।
- हर: जो पापों व तापों को हरने वाले हैं।
- भगनेत्रभिद्: जो भग देवता की आंख फोड़ने वाले हैं।
- अव्यक्त: जो इंद्रियों के सामने प्रकट न होने वाले हैं।
- सहस्राक्ष: जो अनंत आंख वाले हैं।
- सहस्रपाद: जो अनंत पैर वाले हैं।
- अपवर्गप्रद: जो कैवल्य मोक्ष देने वाले हैं।
- अनंत: जो देश, काल और वस्तु के परिधि से रहित हैं।
- तारक: जो सबको तारने वाले हैं।
- परमेश्वर: जो सबसे परे ईश्वर हैं।
शिव जी के १०८ नाम सुमिरण के लाभ
अष्टोत्तर शतनामावली में भगवान शिव के 108 नामों का उल्लेख होता है, जिनका नियमित पाठ करने से अनेक लाभ प्राप्त होते हैं:
- शिव जी के पवित्र नामों जे जाप से नियमित जाप से मानसिक और भौतिक परेशानियां दूर होती हैं.
- शिव जी के नामों के जाप से जातक को मानसिक शांति मिलती है जीवन में सद्कार्य करने की प्रेरणा प्राप्त होती है.
- मानसिक रूप से जातक की समस्याओं का निवारण होता है।
- ध्यान और एकाग्रता में वृद्धि के लिए भी शिव नाम सुमिरण उत्तम हैं.
- यह पाठ सकारात्मक ऊर्जा का संचार करता है, जिससे जीवन में सौभाग्य आता है।
- स्वयं से साक्षात्कार होता है: आत्म-ज्ञान और आत्म-चेतना में वृद्धि होती है।
- चेतना जागृत होती है: आध्यात्मिक विकास होता है, जिससे चेतना जागृत होती है।
ओम शिव नमः – भगवान शिव को हम नमन करते हैं, जो कल्याण के स्वरूप हैं।
ओम महेश्वराय नमः – हम महान भगवान शिव को नमन करते हैं, जो पूरे ब्रह्मांड के अधीश्वर हैं।
ओम शम्भवे नमः – हम आनंद स्वरूप वाले भगवान शिव को प्रणाम करते हैं, जिनकी उपस्थिति से सुख और शांति मिलती है।
ओम पिनाकी नमः – हम पिनाक धनुष धारण करने वाले भगवान शिव को नमन करते हैं, जो धर्म की रक्षा करते हैं।
ओम शशिशेखराय नमः – हम भगवान शिव को प्रणाम करते हैं, जो अपने सिर पर चंद्रमा धारण करते हैं और जिनकी छवि अत्यंत सुंदर है।
ओम वामदेवाय नमः – हम उन भगवान शिव को प्रणाम करते हैं, जो हर प्रकार से प्रसन्न करने वाले और शुभ परिणाम देने वाले हैं।
ओम विरूपाक्षाय नमः – हम उन भगवान शिव को नमन करते हैं, जिनकी आंखों में विशेष शक्ति है और जो भूतों के स्वामी हैं।
ओम कपर्दिने नमः – हम भगवान शिव को प्रणाम करते हैं, जिनके बाल जटाओं में उलझे हुए हैं।
ओम निललोहिताय नमः – हम भगवान शिव को नमन करते हैं, जिनका रूप सूरज की लालिमा की तरह है, जो संसार को प्रकाशित करते हैं।
ओम शंकराय नमः – हम सभी समृद्धि के स्रोत भगवान शंकर को नमन करते हैं।
ओम शूलपाणी नमः – हम त्रिशूल धारण करने वाले परमेश्वर भगवान शिव को प्रणाम करते हैं।
ओम खतवांगिने नमः – हम उन भगवान शिव को प्रणाम करते हैं, जिनके पास खटिया का एक पाया है।
ओम विष्णुवल्लभ नमः – हम भगवान विष्णु के प्रिय भगवान शिव को प्रणाम करते हैं।
ओम शिपिविष्टाय नमः – हम उन भगवान शिव को प्रणाम करते हैं, जिनका स्वरूप संसार को प्रकाशित करता है।
ओम अंबिकानाथाय नमः – हम भगवती अंबिका के भगवान शिव को नमन करते हैं।
ओम श्रीकांताय नमः – हम उस भगवान शिव को नमन करते हैं, जिनका कंठ नीला चमकता हुआ है।
ओम भक्तवत्सल नमः – हम उस भगवान शिव को नमन करते हैं, जो अपने भक्तों को बच्चों की तरह प्यार करते हैं।
ओम भवाय नमः – हम उस ईश्वर को नमन करते हैं, जो स्वयंभू हैं और संसार के सृजनकर्ता हैं।
ओम सर्वाय नमः – हम भगवान शिव को नमन करते हैं, जो सब कुछ हैं और ब्रह्मांड का अस्तित्व उनके द्वारा है।
यह भी जानिये क्यों पसंद है शिव जी को रुद्राक्ष
माता सती के वियोग में भगवान शिव अत्यंत दुखित हुए। उनके आंसुओं से रुद्राक्ष के पेड़ उत्पन्न हुए, जो सती या शक्ति की याद दिलाते हैं। इसलिए, भगवान शिव रुद्राक्ष को पसंद करते हैं।क्या है शिव की तीसरी आँख का महत्त्व
भगवान शिव के तीन नेत्र उनके त्रिकालदर्शी स्वभाव का प्रतीक हैं, जो भूत, वर्तमान और भविष्य को जानते हैं। उनकी तीसरी आंख ध्यान और ज्ञान का केंद्र है, जिससे वे संसार की सृष्टि, पालन और संहार करते हैं। भगवान शिव का तीसरा नेत्र ज्ञान और विवेक का प्रतीक है। यह हमें सही और गलत के बीच भेद करने की क्षमता प्रदान करता है। ज्ञान के माध्यम से हम अपने जीवन को उन्नति की ओर ले जा सकते हैं और अपने मन पर नियंत्रण पा सकते हैं। काम वासना, जिससे हम सभी घिरे रहते हैं, उससे मुक्ति का मार्ग ज्ञान ही है।भगवान शिव के नामों की अपनी अनमोल महिमा है। इन नामों का जप करने से न केवल जीवन में सफलता मिलती है, बल्कि सही राह और दिशा भी प्राप्त होती है। कहा जाता है कि 108 नामों की महिमा से मन को शांति की राह मिलती है और सुकून की अनुभूति होती है। भगवान शिव के ये पवित्र नाम जीवन में अंधकार से प्रकाश की ओर मार्गदर्शन करते हैं। ये नाम भक्ति में मन को रमाते हैं और हमारे जीवन से सारी परेशानियों को दूर करने की शक्ति रखते हैं। जब हम इन नामों का उच्चारण करते हैं, तो हम भगवान शिव की कृपा के पात्र बनते हैं और हमारे जीवन में सुख, शांति और समृद्धि का वास होता है। भगवान शिव के इन नामों का स्मरण करने से उनके विभिन्न स्वरूपों और गुणों की महिमा का अनुभव होता है। इन नामों का जाप भक्तों के लिए विशेष फलदायी माना जाता है।
Author - Saroj Jangir
दैनिक रोचक विषयों पर में 20 वर्षों के अनुभव के साथ, मैं एक विशेषज्ञ के रूप में रोचक जानकारियों और टिप्स साझा करती हूँ, मेरे इस ब्लॉग पर। मेरे लेखों का उद्देश्य सामान्य जानकारियों को पाठकों तक पहुंचाना है। मैंने अपने करियर में कई विषयों पर गहन शोध और लेखन किया है, जिनमें जीवन शैली और सकारात्मक सोच के साथ वास्तु भी शामिल है....अधिक पढ़ें। |