सभा है भरी भगवन भीर पड़ी भजन लिरिक्स Sabha Hai Bhari Bhagwan Bheer Padi Lyrics

सभा है भरी भगवन भीर पड़ी भजन लिरिक्स Sabha Hai Bhari Bhagwan Bheer Padi Lyrics


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सभा है भरी भगवन , भीर पड़ी, आवो तो आवो हरी,
किसविध देर करी,
सभा है भरी भगवन , भीर पड़ी, आवो तो आवो हरी,

पति मोये हारी ये ना बिचारी, कैसे सभा में आवती नारी,
बाजी लगी थी भगवन कपट भरी, आवो तो आवो हरि, किसविध देर करी,
सभा है भरी भगवन , भीर पड़ी, आवो तो आवो हरी,

हो दुष्ट दु:शासन वस्त्र बिलोचन, खेंच रह्यो मेरे बदन को वासन |
नग्न करण की मन मं करी, आवौ तो आवौ हरि, किसविध देर करी,
सभा है भरी भगवन , भीर पड़ी, आवो तो आवो हरी,

भीष्म पितामह, द्रोण गुरू देवा, बैठे विदुरजी धर्म के खेवा,
सब की मति में भगवन्, धुळ पड़ी, आवौ तो आवौ हरि, किसविध देर करी,
सभा है भरी भगवन , भीर पड़ी, आवो तो आवो हरी,

हाथ पसारो, लाज उबारो, सत्य कहूं प्रभु बेगा पधारो |
देवकीनंदन गावै, बणा बिगड़ी, आवौ तो आवौ हरि,किसविध देर करी,
सभा है भरी भगवन , भीर पड़ी, आवो तो आवो हरी,


यह भजन महाभारत के एक प्रसंग पर आधारित है, जब कौरवों ने पांडवों को जुए में हराकर उन्हें 13 साल के लिए वनवास भेज दिया था। इस दौरान, दुर्योधन ने द्रौपदी को सभा में लाने का आदेश दिया और उसे अपमानित किया। द्रौपदी ने भगवान कृष्ण से मदद की गुहार लगाई। भजन की पहली पंक्ति में, द्रौपदी भगवान कृष्ण से पूछती है कि वे कब आएंगे और उसकी मदद करेंगे। वह कहती है कि सभा में भीड़ है और वह शर्मिंदा है।

दूसरी पंक्ति में, द्रौपदी अपनी पति, अर्जुन के बारे में सोचती है और कैसे वह इस स्थिति में है। वह सोचती है कि अगर अर्जुन यहां होता, तो वह उसे बचा लेता। तीसरी पंक्ति में, द्रौपदी दुष्ट दुर्योधन के बारे में सोचती है, जो उसे अपमानित कर रहा है। वह सोचती है कि वह उसे नग्न करना चाहता है। चौथी पंक्ति में, द्रौपदी धर्म के लोगों के बारे में सोचती है, जो सभा में बैठे हैं। वह सोचती है कि वे इस अन्याय को देखकर भी चुप क्यों हैं। पांचवीं पंक्ति में, द्रौपदी भगवान कृष्ण से हाथ पसारकर मदद की गुहार लगाती है। वह कहती है कि वह सच बोल रही है और भगवान कृष्ण को उसे बचाना चाहिए। छठी पंक्ति में, द्रौपदी भगवान कृष्ण को "देवकीनंदन" कहकर पुकारती है। वह उनसे अपने पुत्र के रूप में मदद करने के लिए कहती है। इस भजन में, द्रौपदी अपनी रक्षा के लिए भगवान कृष्ण पर भरोसा करती है। वह जानती है कि केवल भगवान ही उसे इस संकट से बचा सकते हैं।

यह भजन एक व्यक्ति के आशा और विश्वास की शक्ति को दर्शाता है। द्रौपदी मुश्किल परिस्थितियों में भी भगवान कृष्ण पर भरोसा करती है। वह जानती है कि केवल भगवान ही उसे इस संकट से बचा सकते हैं। यह भजन हमें भी सिखाता है कि हमें हमेशा भगवान पर भरोसा रखना चाहिए। चाहे कितनी भी मुश्किल परिस्थिति हो, भगवान हमेशा हमारी मदद करेंगे।

Sabha Hai Bhari BHagwan (Vikash Nath Ji)
Sabha Hai Bharee Bhagavan , Bheer Padee, Aavo To Aavo Haree,
Kisavidh Der Karee,
Sabha Hai Bharee Bhagavan , Bheer Padee, Aavo To Aavo Haree,

Pati Moye Haaree Ye Na Bichaaree, Kaise Sabha Mein Aavatee Naaree,
Baajee Lagee Thee Bhagavan Kapat Bharee, Aavo To Aavo Hari, Kisavidh Der Karee,
Sabha Hai Bharee Bhagavan , Bheer Padee, Aavo To Aavo Haree,

Ho Dusht Du:shaasan Vastr Bilochan, Khench Rahyo Mere Badan Ko Vaasan |
Nagn Karan Kee Man Man Karee, Aavau To Aavau Hari, Kisavidh Der Karee,
Sabha Hai Bharee Bhagavan , Bheer Padee, Aavo To Aavo Haree,

Bheeshm Pitaamah, Dron Guroo Deva, Baithe Vidurajee Dharm Ke Kheva,
Sab Kee Mati Mein Bhagavan, Dhul Padee, Aavau To Aavau Hari, Kisavidh Der Karee,
Sabha Hai Bharee Bhagavan , Bheer Padee, Aavo To Aavo Haree,

Haath Pasaaro, Laaj Ubaaro, Saty Kahoon Prabhu Bega Padhaaro |
Devakeenandan Gaavai, Bana Bigadee, Aavau To Aavau Hari,kisavidh Der Karee,
Sabha Hai Bharee Bhagavan , Bheer Padee, Aavo To Aavo Haree,

सभा है भरी भगवन , भीर पड़ी, आवो तो आवो हरी,
किसविध देर करी || सभा है भरी ||

पति मोये हारी ये ना बिचारी, कैसे सभा में आवती नारी |
बाजी लगी थी भगवन कपट भरी, आवो तो आवो हरि, किसविध देर करी ||
सभा है भरी ||

हो दुष्ट दु:शासन वस्त्र बिलोचन, खेंच रह्यो मेरे बदन को वासन |
नग्न करण की मन मं करी, आवौ तो आवौ हरि, किसविध देर करी ||
सभा है भरी ||

भीष्म पितामह, द्रोण गुरू देवा, बैठे विदुरजी धर्म के खेवा |
सब की मति में भगवन्, धुळ पड़ी, आवौ तो आवौ हरि, किसविध देर करी ||
सभा है भरी ||

हाथ पसारो, लाज उबारो, सत्य कहूं प्रभु बेगा पधारो |
देवकीनंदन गावै, बणा बिगड़ी, आवौ तो आवौ हरि,किसविध देर करी ||
सभा है भरी ||

राम कहो राम कहो, राम कहो बावरे।
अवसर न चूक भोंदू, पायो भला दाँवरे॥१॥
जिन तोकों तन दीन्हों, ताकौ न भजन कीन्हों।
जनम सिरानो जात, लोहे कैसो ताव रे॥२॥
रामजीको गाय, गाय रामजीको रिझाव रे।
रामजीके चरन-कमल, चित्तमाहिं लाव रे॥३॥
कहत मलूकदास, छोड़ दे तैं झूठी आस।
आनँद मगन होइके, हरिगुन गाव रे॥४॥
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