बेड़ा बंधि न सकिओ बंधन की वेला हिंदी अर्थ Beda Bandhi Na Sakiyo Meaning

बेड़ा बंधि न सकिओ बंधन की वेला हिंदी अर्थ Beda Bandhi Na Sakiyo Meaning बाबा शेख फ़रीद Baba Sheikh Farid

बेड़ा बंधि न सकिओ बंधन की वेला ॥
भरि सरवरु जब ऊछलै तब तरणु दुहेला ॥१॥
हथु न लाइ कसु्मभड़ै जलि जासी ढोला ॥१॥ रहाउ ॥
इक आपीन्है पतली सह केरे बोला ॥
दुधा थणी न आवई फिरि होइ न मेला ॥२॥
कहै फरीदु सहेलीहो सहु अलाएसी ॥
हंसु चलसी डुमणा अहि तनु ढेरी थीसी
 
बेड़ा बंधि न सकिओ बंधन की वेला हिंदी अर्थ Beda Bandhi Na Sakiyo Meaning बाबा शेख फ़रीद Baba Sheikh Farid

हिंदी अर्थ  पहले, दुल्हन खुद कमजोर है, और फिर, उसके पति भगवान का आदेश सहना मुश्किल है। कहता है फरीदु, हे मेरी सहेलियों, जब हमारे पति भगवान बुलाते हैं, बाबा शेख फरीद जी कहते हैं कि जब ईश्वर मनुष्य को अपने पास बुलाता है, तो मनुष्य को उसके पास जाना ही होगा। हंस (आत्मा) चला जाता है (मर जाता है), दुखी मन से (ईश्वर से दूर होने के कारण), और यह शरीर (शरीर) धूल में लौट जाता है (बिखर जाता है)।    दूध स्तन में नहीं लौटता, फिर मिलन नहीं होता। जो समय बीत गया है, वह वापस नहीं आता। जो अवसर खो गया है, वह फिर नहीं मिलता।  इस पद में बाबा शेख फरीद जी कहते हैं कि जो व्यक्ति माया में फंस जाता है, वह ईश्वर से मिलने का अवसर खो देता है। जो व्यक्ति नाम-स्मरण रूपी बेड़ा तैयार नहीं करता है, वह माया की लहरों में बह जाता है। जब जीवन का समय निकल जाता है, तो उसे ईश्वर से मिलने का अवसर नहीं मिलता है। जो व्यक्ति माया में फंस जाता है, उसे ईश्वर से निरादरी का सामना करना पड़ता है। उसे ईश्वर से मिलने का अवसर नहीं मिलता है।

जो व्यक्ति माया के मोह से बच जाता है, वह ईश्वर से मिल सकता है। उसे ईश्वर से मिलने का अवसर मिलता है। माया से बचना चाहिए। हमें नाम-स्मरण रूपी बेड़ा तैयार करना चाहिए ताकि हम ईश्वर से मिल सकें।
बाबा शेख फ़रीद एक सूफी संत थे, जो 12वीं शताब्दी में भारत में पैदा हुए थे। वे एक महान कवि और दार्शनिक भी थे। उनकी रचनाएँ पंजाबी, उर्दू और फ़ारसी भाषाओं में हैं। बाबा शेख फ़रीद की रचनाओं में ईश्वर प्रेम, मानवता और आत्मज्ञान का संदेश मिलता है। वे कहते हैं कि ईश्वर ही सब कुछ है और सब कुछ ईश्वर से निकला है। उन्होंने आत्मज्ञान के मार्ग पर चलने की प्रेरणा दी है। बाबा शेख फ़रीद की रचनाएँ पंजाबी साहित्य में एक महत्वपूर्ण स्थान रखती हैं। उन्हें पंजाबी साहित्य के पितामह के रूप में भी जाना जाता है।

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