बिहारी के दोहे Bihari Ke Dohe

बिहारी के दोहे Bihari Ke Dohe


रहिमन आँटा के लगे, बाजत है दिन राति।
घिउ शक्‍कर जे खात हैं, तिनकी कहा बिसाति॥

रहिमन उजली प्रकृत को, नहीं नीच को संग।
करिया बासन कर गहे, कालिख लागत अंग॥

रहिमन एक दिन वे रहे, बीच न सोहत हार।
वायु जो ऐसी बह गई, वीचन परे पहार॥

रहिमन ओछे नरन सों, बैर भलो ना प्रीति।
काटे चाटै स्‍वान के, दोऊ भाँति विपरीति॥

रहिमन कठिन चितान ते, चिंता को चित चेत।
चिता दहति निर्जीव को, चिंता जीव समेत॥

रहिमन कबहुँ बड़ेन के, नाहिं गर्व को लेस।
भार धरैं संसार को, तऊ कहावत सेस॥

रहिमन करि सम बल नहीं, मानत प्रभु की धाक।
दाँत दिखावत दीन ह्वै, चलत घिसावत नाक॥

रहिमन कहत सुपेट सों, क्‍यों न भयो तू पीठ।
रहते अनरीते करै, भरे बिगारत दीठ॥

रहिमन कुटिल कुठार ज्‍यों, करत डारत द्वै टूक।
चतुरन के कसकत रहे, समय चूक की हूक॥

रहिमन को कोउ का करै, ज्‍वारी, चोर, लबार।
जो पति-राखनहार हैं, माखन-चाखनहार॥

रहिमन खोजे ऊख में, जहाँ रसन की खानि।
जहाँ गॉंठ तहँ रस नहीं, यही प्रीति में हानि॥

रहिमन खोटी आदि की, सो परिनाम लखाय।
जैसे दीपक तम भखै, कज्‍जल वमन कराय॥

रहिमन गली है साँकरी, दूजो ना ठहराहिं।
आपु अहै तो हरि नहीं, हरि तो आपुन नाहिं॥

रहिमन घरिया रहँट की, त्‍यों ओछे की डीठ।
रीतिहि सनमुख होत है, भरी दिखावै पीठ॥

रहिमन चाक कुम्‍हार को, माँगे दिया न देइ।
छेद में डंडा डारि कै, चहै नॉंद लै लेइ॥

रहिमन छोटे नरन सो, होत बड़ो नहीं काम।
मढ़ो दमामो ना बने, सौ चूहे के चाम॥

रहिमन जगत बड़ाई की, कूकुर की पहिचानि।
प्रीति करै मुख चाटई, बैर करे तन हानि॥

रहिमन जग जीवन बड़े, काहु न देखे नैन।
जाय दशानन अछत ही, कपि लागे गथ लेन॥
Next Post Previous Post
No Comment
Add Comment
comment url