रहीम दास के दोहे सरल हिंदी अर्थ सहित
रहीम दास के दोहे सरल हिंदी अर्थ सहित
रहिमन जाके बाप को, पानी पिअत न कोय।ताकी गैल आकाश लौं, क्यो न कालिमा होय॥
रहिमन जा डर निसि परै, ता दिन डर सिय कोय।
पल पल करके लागते, देखु कहाँ धौं होय॥
रहिमन जिह्वा बावरी, कहि गइ सरग पताल।
आपु तो कहि भीतर रही, जूती खात कपाल॥
रहिमन जो तुम कहत थे, संगति ही गुन होय।
बीच उखारी रमसरा, रस काहे ना होय॥
रहिमन जो रहिबो चहै, कहै वाहि के दाँव।
जो बासर को निस कहै, तौ कचपची दिखाव॥
रहिमन ठहरी धूरि की, रही पवन ते पूरि।
गाँठ युक्ति की खुलि गई, अंत धूरि को धूरि॥
रहिमन तब लगि ठहरिए, दान मान सनमान।
घटत मान देखिय जबहिं, तुरतहि करिय पयान॥
रहिमन तीन प्रकार ते, हित अनहित पहिचानि।
पर बस परे, परोस बस, परे मामिला जानि॥
रहिमन तीर की चोट ते, चोट परे बचि जाय।
नैन बान की चोट ते, चोट परे मरि जाय॥
रहिमन थोरे दिनन को, कौन करे मुँह स्याह।
नहीं छलन को परतिया, नहीं करन को ब्याह॥
रहिमन दानि दरिद्र तर, तऊ जाँचबे योग।
ज्यों सरितन सूखा परे, कुआँ खनावत लोग॥
रहिमन दुरदिन के परे, बड़ेन किए घटि काज।
पाँच रूप पांडव भए, रथवाहक नल राज॥
रहिमन देखि बड़ेन को, लघु न दीजिए डारि।
जहाँ काम आवे सुई, कहा करे तलवारि॥
रहिमन धागा प्रेम का, मत तोड़ो छिटकाय।
टूटे से फिर ना मिले, मिले गाँठ परि जाय॥
रहिमन धोखे भाव से, मुख से निकसे राम।
पावत पूरन परम गति, कामादिक को धाम॥
रहिमन निज मन की बिथा, मन ही राखो गोय।
सुनि अठिलैहैं लोग सब, बाँटि न लैहैं कोय॥
रहिमन निज संपति बिना, कोउ न बिपति सहाय।
बिनु पानी ज्यों जलज को, नहिं रवि सकै बचाय।
रहिमन नीचन संग बसि, लगत कलंक न काहि।
दूध कलारी कर गहे, मद समुझै सब ताहि॥
रहिमन जाके बाप को, पानी पिअत न कोय।
ताकी गैल आकाश लौं, क्यो न कालिमा होय॥
अर्थ: रहीम कहते हैं कि जिस व्यक्ति के पिता को कोई पानी तक नहीं पिलाता था, उसकी सन्तान यदि आकाश तक भी पहुँच जाए, तो भी उसकी प्रतिष्ठा पर पूर्वजों के कर्मों का प्रभाव बना रहता है।
रहिमन जा डर निसि परै, ता दिन डर सिय कोय।
पल पल करके लागते, देखु कहाँ धौं होय॥
अर्थ: रहीम कहते हैं कि जो व्यक्ति रात में डरता है, वह दिन में भी भयभीत रहता है। डर उसके मन में हर समय बना रहता है, जिससे वह हर पल चिंतित रहता है।
रहिमन जिह्वा बावरी, कहि गइ सरग पताल।
आपु तो कहि भीतर रही, जूती खात कपाल॥
अर्थ: रहीम कहते हैं कि मनुष्य की जिह्वा (जीभ) इतनी चंचल होती है कि यह स्वर्ग और पाताल तक की बातें कह देती है। लेकिन जब इसके कारण सिर पर विपत्ति आती है, तो स्वयं मुँह के भीतर छिप जाती है, और सिर को मार खानी पड़ती है।
रहिमन जो तुम कहत थे, संगति ही गुन होय।
बीच उखारी रमसरा, रस काहे ना होय॥
अर्थ: रहीम कहते हैं कि यदि केवल संगति से ही गुण आते, तो ईख (गन्ना) के बीच में उगने वाले रमसरा (एक प्रकार की घास) में भी मिठास होती। लेकिन ऐसा नहीं होता, इसलिए केवल संगति से गुण नहीं आते, स्वभाव भी महत्वपूर्ण है।
रहिमन जो रहिबो चहै, कहै वाहि के दाँव।
जो बासर को निस कहै, तौ कचपची दिखाव॥
अर्थ: रहीम कहते हैं कि जो व्यक्ति समाज में सम्मानपूर्वक रहना चाहता है, उसे समय और परिस्थिति के अनुसार व्यवहार करना चाहिए। यदि कोई दिन को रात कहे, तो उसे भी वैसा ही कहना चाहिए, अन्यथा विवाद उत्पन्न हो सकता है।
ताकी गैल आकाश लौं, क्यो न कालिमा होय॥
अर्थ: रहीम कहते हैं कि जिस व्यक्ति के पिता को कोई पानी तक नहीं पिलाता था, उसकी सन्तान यदि आकाश तक भी पहुँच जाए, तो भी उसकी प्रतिष्ठा पर पूर्वजों के कर्मों का प्रभाव बना रहता है।
रहिमन जा डर निसि परै, ता दिन डर सिय कोय।
पल पल करके लागते, देखु कहाँ धौं होय॥
अर्थ: रहीम कहते हैं कि जो व्यक्ति रात में डरता है, वह दिन में भी भयभीत रहता है। डर उसके मन में हर समय बना रहता है, जिससे वह हर पल चिंतित रहता है।
रहिमन जिह्वा बावरी, कहि गइ सरग पताल।
आपु तो कहि भीतर रही, जूती खात कपाल॥
अर्थ: रहीम कहते हैं कि मनुष्य की जिह्वा (जीभ) इतनी चंचल होती है कि यह स्वर्ग और पाताल तक की बातें कह देती है। लेकिन जब इसके कारण सिर पर विपत्ति आती है, तो स्वयं मुँह के भीतर छिप जाती है, और सिर को मार खानी पड़ती है।
रहिमन जो तुम कहत थे, संगति ही गुन होय।
बीच उखारी रमसरा, रस काहे ना होय॥
अर्थ: रहीम कहते हैं कि यदि केवल संगति से ही गुण आते, तो ईख (गन्ना) के बीच में उगने वाले रमसरा (एक प्रकार की घास) में भी मिठास होती। लेकिन ऐसा नहीं होता, इसलिए केवल संगति से गुण नहीं आते, स्वभाव भी महत्वपूर्ण है।
रहिमन जो रहिबो चहै, कहै वाहि के दाँव।
जो बासर को निस कहै, तौ कचपची दिखाव॥
अर्थ: रहीम कहते हैं कि जो व्यक्ति समाज में सम्मानपूर्वक रहना चाहता है, उसे समय और परिस्थिति के अनुसार व्यवहार करना चाहिए। यदि कोई दिन को रात कहे, तो उसे भी वैसा ही कहना चाहिए, अन्यथा विवाद उत्पन्न हो सकता है।
रहीम दास के दोहे जीवन के गहन सत्य को सरल शब्दों में प्रस्तुत करते हैं, जो व्यवहार, प्रेम, संयम और सत्संगति की महत्ता को दर्शाते हैं। उनका एक प्रसिद्ध दोहा, "रहिमन धागा प्रेम का, मत तोड़ो छिटकाय। टूटे से फिर ना मिले, मिले गाँठ परि जाय।" यह सिखाता है कि प्रेम का संबंध बहुत कोमल होता है, और यदि इसे एक बार तोड़ दिया जाए, तो इसे पुनः जोड़ना कठिन होता है। भले ही गाँठ लगाकर उसे जोड़ लिया जाए, लेकिन उसमें पहले जैसी सहजता नहीं रह जाती। इसी प्रकार, रिश्तों में भी विश्वास बनाए रखना आवश्यक होता है, अन्यथा उनमें दरार आ सकती है।
रहीम का एक अन्य दोहा, "रहिमन तीर की चोट ते, चोट परे बचि जाय। नैन बान की चोट ते, चोट परे मरि जाय।" हमें यह समझाता है कि शरीर पर लगी घाव धीरे-धीरे भर जाती है, लेकिन आंखों से चला प्रेम का बाण हृदय को इतनी गहरी चोट पहुंचाता है कि उसका असर जीवनभर बना रहता है। प्रेम में आई चोट कभी पूरी तरह ठीक नहीं होती, और इसका प्रभाव मनुष्य के स्वभाव, सोच और भावनाओं पर स्पष्ट रूप से दिखाई देता है।
उनका दोहा, "रहिमन देखा बड़ेन को, लघु न दीजिए डारि। जहाँ काम आवे सुई, कहा करे तलवारि।" यह सिखाता है कि छोटे और साधारण वस्तुओं की भी अपनी महत्ता होती है। कई बार हम शक्ति और आकार को श्रेष्ठता का मापदंड बना लेते हैं, लेकिन वास्तव में छोटी चीजें भी अत्यधिक उपयोगी होती हैं, जैसे कि सुई का काम तलवार नहीं कर सकती। इससे यह शिक्षा मिलती है कि किसी वस्तु या व्यक्ति को उसके बाहरी स्वरूप के आधार पर नहीं, बल्कि उसकी उपयोगिता और गुणों के अनुसार महत्व देना चाहिए।
रहीम का एक और महत्वपूर्ण दोहा, "रहिमन निज मन की बिथा, मन ही राखो गोय। सुनि अठिलैहैं लोग सब, बाँटि न लैहैं कोय।" यह स्पष्ट करता है कि अपने दुःख और परेशानियों को हर किसी से साझा नहीं करना चाहिए। दुनिया में अधिकतर लोग केवल दूसरों की पीड़ा सुनकर आनंद लेते हैं, लेकिन वास्तविक सहायता नहीं करते। इसलिए, अपनी समस्याओं को समझदारी से संभालना और उचित व्यक्ति से ही साझा करना बुद्धिमानी होती है।
रहीम का एक अन्य दोहा, "रहिमन तीर की चोट ते, चोट परे बचि जाय। नैन बान की चोट ते, चोट परे मरि जाय।" हमें यह समझाता है कि शरीर पर लगी घाव धीरे-धीरे भर जाती है, लेकिन आंखों से चला प्रेम का बाण हृदय को इतनी गहरी चोट पहुंचाता है कि उसका असर जीवनभर बना रहता है। प्रेम में आई चोट कभी पूरी तरह ठीक नहीं होती, और इसका प्रभाव मनुष्य के स्वभाव, सोच और भावनाओं पर स्पष्ट रूप से दिखाई देता है।
उनका दोहा, "रहिमन देखा बड़ेन को, लघु न दीजिए डारि। जहाँ काम आवे सुई, कहा करे तलवारि।" यह सिखाता है कि छोटे और साधारण वस्तुओं की भी अपनी महत्ता होती है। कई बार हम शक्ति और आकार को श्रेष्ठता का मापदंड बना लेते हैं, लेकिन वास्तव में छोटी चीजें भी अत्यधिक उपयोगी होती हैं, जैसे कि सुई का काम तलवार नहीं कर सकती। इससे यह शिक्षा मिलती है कि किसी वस्तु या व्यक्ति को उसके बाहरी स्वरूप के आधार पर नहीं, बल्कि उसकी उपयोगिता और गुणों के अनुसार महत्व देना चाहिए।
रहीम का एक और महत्वपूर्ण दोहा, "रहिमन निज मन की बिथा, मन ही राखो गोय। सुनि अठिलैहैं लोग सब, बाँटि न लैहैं कोय।" यह स्पष्ट करता है कि अपने दुःख और परेशानियों को हर किसी से साझा नहीं करना चाहिए। दुनिया में अधिकतर लोग केवल दूसरों की पीड़ा सुनकर आनंद लेते हैं, लेकिन वास्तविक सहायता नहीं करते। इसलिए, अपनी समस्याओं को समझदारी से संभालना और उचित व्यक्ति से ही साझा करना बुद्धिमानी होती है।