क्यूँ गुमान करे काया का मन मेरे भजन

क्यूँ गुमान करे काया का मन मेरे भजन

क्यूँ गुमान करे काया का मन मेरे
एक दिन छोड़ कर ये जहाँ जाना है
नाम गुरु का सुमिर मन मेरे बावरे
एक दिन छोड़ कर ये जहाँ जाना है।

तूने संसार को तो है चाहा मगर
नाम प्रभु का है तूने तो ध्याया नही
मोह ममता में तू तो फँसा ही रहा
ज्ञान गुरु का हिरदय लगाया नही
मौत नाचे तेरे सर पे ओ बावरे
एक दिन छोड़ कर ये जहाँ जाना है।

आयेगा जब बुलावा तेरा बावरे
छोड़ के इस जहाँ को जाएगा तू
साथ जाएगा ना एक तिनका कोई
प्यारे रो रो बहुत पछताएगा तू
आज से अभी से लग जा तू राम में
एक दिन छोड़ कर ये जहाँ जाना है।

सुंदर भजन में जीवन की नश्वरता और आत्मज्ञान की शक्ति को प्रदर्शित किया गया है। यह मन को सतर्क करता है कि जिस शरीर पर गर्व किया जाता है, वह एक दिन इस संसार को छोड़ देगा। इसलिए केवल सांसारिक मोह में उलझने के बजाय, गुरु के नाम का स्मरण करना आवश्यक है।

मनुष्य संसार की इच्छाओं में इतना फंसा रहता है कि प्रभु का नाम लेना भूल जाता है। मोह-माया के बंधनों से मुक्ति तब ही संभव है, जब आत्मा सच्चे ज्ञान की ओर अग्रसर होती है। जीवन का प्रत्येक क्षण मूल्यवान है, और इसे व्यर्थ में खोने के बजाय आत्मिक चेतना को जागृत करना महत्वपूर्ण है।

मृत्यु का बुलावा अटल है, और जब यह आएगा, तब सांसारिक वस्तुएं साथ नहीं जाएंगी। व्यक्ति जब तक इस सत्य को नहीं स्वीकारता, तब तक भटकता रहता है। किंतु प्रभु के नाम में लग जाने से आत्मा को वास्तविक शांति और मुक्ति प्राप्त होती है।

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Saroj Jangir Author Author - Saroj Jangir

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