सुनले मुराद मेरी ओ मेरी मैया भजन

सुनले मुराद मेरी ओ मेरी मैया भजन

(मुखड़ा)
सुन ले मुराद मेरी ओ मेरी मैया,
जयकारा लगाऊँगी शेरवाली मैया,
मैं नंगे पाँव आऊँगी तेरे द्वारे मैया,
सुन ले मुराद मेरी ओ मेरी मैया।।


(अंतरा 1)
जग ने रुलाया मुझको,
बहुत सताया मुझको,
किया अपमान मुझको,
बेगाना बनाया मुझको,
चरणों में जगह दे अपनी,
चरणों में जगह दे अपनी ओ मेरी मैया,
नंगे पाँव आऊँगी शेरावाली मैया,
जयकारा लगाऊँगी शेरवाली मैया।।

(अंतरा 2)
सुनती हूँ तेरी कृपा,
सब पे बरसती है,
कब होगी आस पूरी,
आत्मा तरसती है,
विनती स्वीकार कर लो,
विनती स्वीकार कर लो शेरोवाली मैया,
नंगे पाँव आऊँगी शेरावाली मैया,
जयकारा लगाऊँगी शेरवाली मैया।।

(अंतरा 3)
द्वार तेरे आने को,
मन ये तरसता है,
दर्शन पाने को,
आँखें बरसती हैं,
दरश दिखा दे अब तो,
दरश दिखा दे अब तो ज्योतावाली मैया,
नंगे पाँव आऊँगी शेरावाली मैया,
जयकारा लगाऊँगी शेरवाली मैया।।

(पुनरावृत्ति)
सुन ले मुराद मेरी ओ मेरी मैया,
जयकारा लगाऊँगी शेरवाली मैया,
मैं नंगे पाँव आऊँगी तेरे द्वारे मैया,
सुन ले मुराद मेरी ओ मेरी मैया।।

New Mata Rani Song | Sunle Murad Meri (सुनले मुराद मेरी) | भावना शर्मा #Navratre_Bhaktisong

सुंदर भजन में जो भाव प्रदर्शित किए गए हैं, वे भक्त के हृदय की गहराइयों से उत्पन्न होते हैं। माँ के चरणों में समर्पण की भावना अटूट श्रद्धा को दर्शाती है, जहाँ भक्ति सच्ची विनम्रता का रूप ले लेती है। जब संसार दुःख देता है, अपमान करता है और हृदय को व्याकुल कर देता है, तब ईश्वरीय शरण ही मन को संबल प्रदान करती है।

माँ की कृपा का प्रवाह अनवरत बहता है, वह केवल भक्त की पुकार की प्रतीक्षा करती है। नंगे पाँव चलकर उनकी शरण में जाने की भावना त्याग और श्रद्धा का एक विलक्षण रूप है। यह समर्पण केवल भौतिक नहीं बल्कि आत्मिक स्तर पर माँ के प्रति अटूट विश्वास की अनुभूति कराता है।

भक्ति का मार्ग सरल नहीं होता, उसमें धैर्य और अटूट विश्वास की आवश्यकता होती है। जब अंतर्मन माँ की ज्योति के दर्शन के लिए व्याकुल होता है, तब ईश्वर की अनुभूति और अधिक गहरी हो जाती है। यह विश्वास कि माँ अपने भक्त की पुकार अवश्य सुनेंगी, संपूर्ण जीवन को एक नई ऊर्जा प्रदान करता है।

सुनले मुराद मेरी ओ मेरी मैया में समर्पण और श्रद्धा की गहराई स्पष्ट होती है। जीवन के कष्टों और अपमानों से घिरे मन की व्यथा माँ के चरणों में शरण पाने की तीव्र इच्छा से झलकती है। यह आत्मा की पुकार है, जो अपने दुःखों को बाँटने और शांति पाने के लिए शेरवाली मैया के दरबार में नंगे पाँव आकर विनती करती है।

यह स्वरूप मातृशक्ति की दयालुता और कृपा की अपार छाया को दर्शाता है, जो हर जीव की पीड़ा सुनती है और उसे अपने प्रेम से सहारा देती है। मन की व्याकुलता, आत्मा की तड़प और आशा की पूर्ति की आकांक्षा इस भजन में जीवंत होती है। माँ के चरणों में स्थान पाने की यह विनम्र याचना, जीवन की हर कठिनाई से ऊपर उठकर एक आध्यात्मिक शांति की ओर ले जाती है।

भक्ति में समर्पण का भाव इतना प्रबल है कि कोई भी सामाजिक या सांसारिक बाधा मायने नहीं रखती। नंगे पाँव आना, अर्थात् पूर्ण विनम्रता और निष्ठा के साथ माँ के सामने आत्मसमर्पण करना, मनुष्य के अंदर की सच्ची भक्ति को दर्शाता है। यह एक ऐसी शक्ति है जो मनुष्य को हर दुःख से उबारती है और उसे जीवन के संघर्षों में स्थिरता प्रदान करती है।

You may also like...

Next Post Previous Post