तूने रात गँवायी सोय के दिवस गँवाया खाय के
तूने रात गँवायी सोय के,
दिवस गँवाया खाय के।
हीरा जनम अमोल था,
कौड़ी बदले जाय॥
तूने रात गँवायी सोय के
सुमिरन लगन लगाय के,
मुख से कछु ना बोल रे।
बाहर का पट बंद कर ले,
अंतर का पट खोल रे।
माला फेरत जुग हुआ,
गया ना मन का फेर रे।
गया ना मन का फेर रे।
हाथ का मनका छाँड़ि (छोड़) दे,
मन का मनका फेर॥
तूने रात गँवायी सोय के,
दिवस गँवाया खाय के।
हीरा जनम अमोल था,
कौड़ी बदले जाय॥
तूने रात गँवायी सोय के
दुख में सुमिरन सब करें,
सुख में करे न कोय रे।
जो सुख में सुमिरन करे,
तो दुख काहे को होय रे।
सुख में सुमिरन ना किया,
दुख में करता याद रे।
दुख में करता याद रे।
कहे कबीर उस दास की
कौन सुने फ़रियाद॥
तूने रात गँवायी सोय के,
दिवस गँवाया खाय के।
हीरा जनम अमोल था,
कौड़ी बदले जाय॥
तूने रात गँवायी सोय के
चेतावनी भजन : चेतावनी भजन का का मूल विषय व्यक्ति को उसके अवगुणों के बारे में सचेत
करना और सत्य की राह पर अग्रसर करना होता है। राजस्थानी चेतावनी भजनो का
मूल विषय यही है। गुरु की शरण में जाकर जीवन के उद्देश्य के प्रति व्यक्ति
को सचेत करना ही इनका भाव है। चेतावनी भजनों में कबीर के भजनो को क्षेत्रीय
भाषा में गया जाता है या इनका कुछ अंश काम में लिया जाता है।
कबीर कहते हैं कि हमें अपने जीवन में ईश्वर की भक्ति में लग जाना चाहिए। हमें अपने मन को बाहरी दुनिया से बंद कर देना चाहिए और अपने अंतर्मन की खोज करनी चाहिए। कबीर कहते हैं कि हमें अपने मन को भटकने से रोकना चाहिए और उसे ईश्वर की ओर मोड़ना चाहिए। कबीर कहते हैं कि दुख में तो सभी लोग ईश्वर की याद करते हैं, लेकिन सुख में कोई भी ईश्वर की याद नहीं करता है। अगर हम सुख में भी ईश्वर की याद करते हैं, तो हमें दुख नहीं होगा।
ये मनुष्य जन्म अनमोल था, इसकी क़द्र नहीं की और अज्ञानता में इसे व्यर्थ ही खो दिया। रात सोने में व्यर्थ कर दी और दिवस गवाया खाने पिने में। हीरे जैसे जीवन को यूँ ही कौड़ी में बदल दिया। बहुत जतन से मानुस जन्म मिला था ईश्वर भक्ति के लिए लेकिन तृष्णा और विषय विकार में फंसकर रह गया, इसका मोल कौड़ी जितना रह गया। बाह्याचार से कोई लाभ होने वाला नहीं है। भक्ति केवल दिखावे की नहीं होनी चाहिए जो बस सांकेतिक हो। ईश्वर का ध्यान तो मन से करना चाहिए। जब तक मन भक्ति में नहीं रमेगा आचरण की शुद्धता नहीं आएगी। जब तक बाहर ध्यान होगा मन के भीतर ज्योतिर्स्वरूप का वाश नहीं होगा।
रात गँवायी सोय के, दिवस गँवाया खाय के : इस कबीर भजन में साधक को अत्यंत ही सटीक और गहन विषय को साधारण शब्दों के अर्थ में साहेब ने समझाया है। कैसे बातों ही बातों में यह अनमोल जीवन बीत जाता है, इस पर साहेब ने प्रकाश डाला है। साहेब कहते हैं की तुमने रात को सोकर और दिन को खाने में ही व्यर्थ बीता दिया है। जबकि यह जीवन कोटि अन्य जन्मों के उपरान्त ईश्वर की स्तुति, वंदन के लिए प्राप्त हुआ था। यहाँ सोने से भाव है की अज्ञान की निंद्रा में जीव व्यस्त और मस्त रहा। अपने मालिक को वह भूल गया। दिवस गँवाया खाय से आशय है की इन्द्रियों की संतुष्टि में ही लगा रहा। वस्तुतः यह माया का भरम जाल है जसमे जीवात्मा अपने स्वामी को भूल जाती है और माया ऐसा छद्म आवरण तैयार करती है जिसमे यह संसार ही स्थाई घर लगने लगता है। लेकिन सत्य तो यह है की यह संसार एक सराय है। एक रोज सभी को इसे छोड़ कर चले जाना है। कोई यहाँ सदा के लिए स्थाई नहीं रहने वाला है। समझदारी तो इसी में है की हम ईश्वर के नाम का सुमिरन करे।
हीरा जनम अमोल था, कौड़ी बदले जाय : मानव जीवन बहुत अनमोल था लेकिन जीव इसे व्यर्थ ही सांसारिक कार्यों में उलझकर समाप्त कर देता है।
सुमिरन लगन लगाय के, मुख से कछु ना बोल रे : इन पंक्तियों में साहेब समझाते हैं की मन से भक्ति करो, ईश्वर को याद करो। मौखिक रूप से मन्त्र जाल और दिखावे की भक्ति से कुछ भी हासिल नहीं होने वाला है।
बाहर के पट बंद करि अंतर के पट खोल रे : बाहरी पट को खोल कर तुम अंदर हृदय के पट को खोलो। हृदय से ईश्वर को याद करो, उसके नाम का जाप करो तभी तुमको उसके अस्तित्व का एहसास होगा, अन्यथा सब कुछ व्यर्थ ही है।
हीरा जनम अमोल था, कौड़ी बदले जाय : हीरे के समान अमूल्य जीवन को तुम कौड़ी में मत बदलो।
दुःख में सुमिरन सब करे, सुख में करे न कोय रे : दुःख में ईश्वर की याद सभी को आती है लेकिन सुख में कोई ईश्वर को याद नहीं करता है।
जो सुख में सुमिरन करे तो दुःख काहे को होय रे : यदि कोई सुख के दिनों में ईश्वर को याद कर ले तो दुःख किस बात का होगा।
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