ओ मैया सज धज के बैठी भजन

ओ मैया सज धज के बैठी करके सोलह श्रृंगार

 ओ मैया, सज-धज के बैठी,
करके सोलह श्रृंगार,
आई घर जो मेरे,
लाई खुशियां अपार।।

तू ही माँ लक्ष्मी, तू ही भद्रकाली,
तू ही अविनाशी, तू ही शेरोवाली,
हो मैया, संकट के आड़े,
रहती हरदम तैयार,
आई घर जो मेरे,
लाई खुशियां अपार।।

ऊँचे भवन से उतर आई देखो,
आओ सभी, तुम भी मैया से कह दो,
हो मैया, यूं ही हमेशा,
करना हमको दुलार,
आई घर जो मेरे,
लाई खुशियां अपार।।

अर्जी है मेरी यही, माता रानी,
चरणों में रखना मुझे, महारानी,
हो मैया, नेहा ये चाहे,
करना तेरा दीदार,
आई घर जो मेरे,
लाई खुशियां अपार।।

ओ मैया, सज-धज के बैठी,
करके सोलह श्रृंगार,
आई घर जो मेरे,
लाई खुशियां अपार।।


सोलह श्रृंगार - Prateek Mishra - Solah Shringar - Laai Khushiyaan Hazaar - Navratri Bhajan

माँ के सोलह श्रृंगार से दिव्यता प्रकट होती है। यह रूप केवल बाहरी सौंदर्य नहीं, बल्कि आंतरिक शक्ति और अनुग्रह का प्रतीक है। माँ लक्ष्मी के रूप में वह समृद्धि की वर्षा करती हैं, भद्रकाली के रूप में संकटों को काटती हैं, और शेरोवाली के रूप में साहस प्रदान करती हैं। उनकी उपस्थिति मात्र से जीवन में उल्लास और आशा का संचार होता है।

जब माँ ऊँचे भवनों से उतरकर भक्तों के पास आती हैं, तब यह संकेत होता है कि दिव्यता किसी सीमित स्थान में बंधी नहीं है। वह सदा अपने भक्तों के पास रहती हैं, उनकी पुकार सुनती हैं, और स्नेह लुटाती हैं। यह स्नेह न केवल संकट के समय बल्कि हर क्षण उपलब्ध रहता है, एक अभयदान के रूप में।

आखिर में, माँ के चरणों में समर्पण का भाव व्यक्ति को आध्यात्मिक ऊँचाई देता है। जब मन श्रद्धा से भर जाता है, तब संसार के मोह से मुक्त होकर आत्मा का साक्षात्कार होता है। माँ की कृपा में सच्ची शांति और आनंद मिलते हैं, और यही भक्ति का परम लक्ष्य होता है। उनका दर्शन मात्र जीवन को आशीर्वाद से भर देता है।

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