श्री लक्ष्मी रमणा जी की आरती

श्री लक्ष्मी रमणा जी की आरती भजन

जय लक्ष्मी रमणा श्री जय लक्ष्मी रमणा,
शरणागत जय शरण गोवर्धन धारणा | टेक
जै जै युमना तट निकटित प्रगटित बटुवेषा |अ
टपट गोपी कुंज तट पट पर नटवर वेषा || जय०
जय जय जय रघुवीर कंसारे |
पति कृपा वारे संसारे || जय०
जय जय गोपी पलक बन्धो |
जय माता तुम कृष्ण कृपा सिन्धो || जय०
जै जै भक्तजन प्रतिपालक चिरंजीवो विष्णो |
मामुद्धर दिनो घरणीघर विष्णो || जय०
जै जै कृष्ण निजपत रस सागर में |
कुरु करुणा कुरु करुणा दास सखासिख में || जय०


लक्ष्मी रमणा जी की आरती लिरिक्स हिंदी में
जय लक्ष्मी रमणा, श्री लक्ष्मी रमणा।
सत्यनारायण स्वामी जन-पातक-हरणा।। जय..

रत्नजटित सिंहासन अद्भुत छबि राजै।
नारद करत निराजन घंटा ध्वनि बाजै।। जय..

प्रकट भये कलि कारण, द्विज को दरस दियो।
बूढ़े ब्राह्मण बनकर कंचन-महल कियो।। जय.।।

दुर्बल भील कठारो, जिनपर कृपा करी।
चन्द्रचूड़ एक राजा, जिनकी बिपति हरी।। जय..

वैश्य मनोरथ पायो, श्रद्धा तज दीन्हीं।
सो फल भोग्यो प्रभुजी फिर अस्तुति कीन्हीं।। जय..

भाव-भक्ति के कारण छिन-छिन रूप धरयो।
श्रद्धा धारण कीनी, तिनको काज सरयो।। जय..

ग्वाल-बाल संग राजा वन में भक्ति करी।
मनवांछित फल दीन्हों दीनदयालु हरी।। जय..

चढ़त प्रसाद सवायो कदलीफल, मेवा।
धूप-दीप-तुलसी से राजी सत्यदेवा।। जय..

श्री सत्यनारायण जी की आरती जो कोई नर गावै।
तन-मन-सुख-संपत्ति मन-वांछित फल पावै।। जय..

जय लक्ष्मी रमणा, जय लक्ष्मी रमणा।
सत्यनारायण स्वामी जन पातक हरणा॥ जय...
रत्‍‌न जडि़त सिंहासन अद्भुत छवि राजै।
नारद करत निराजन घण्टा ध्वनि बाजै॥ जय...
प्रकट भये कलि कारण द्विज को दर्श दियो।
बूढ़ा ब्राह्मण बनकर कांचन महल कियो॥ जय...
दुर्बल भील कठारो, जिन पर कृपा करी।
चन्द्रचूड़ एक राजा तिनकी विपत्ति हरी॥ जय...
वैश्य मनोरथ पायो श्रद्धा तज दीन्हों।
सो फल भोग्यो प्रभु जी फिर-स्तुति कीन्हीं॥ जय...
भाव भक्ति के कारण छिन-छिन रूप धरयो।
श्रद्धा धारण कीनी, तिनको काज सरयो॥ जय...
ग्वाल बाल संग राजा वन में भक्ति करी।
मनवांछित फल दीन्हों दीनदयाल हरी॥ जय...
चढ़त प्रसाद सवायो कदली फल, मेवा।
धूप दीप तुलसी से राजी सत्य देवा॥ जय...
श्री सत्यनारायण जी की आरती जो कोई नर गावै।
भगतदास तन-मन सुख सम्पत्ति मनवांछित फल पावै॥ जय...

आरती का महत्त्व : पूजा पाठ और भक्ति भाव में आरती का विशिष्ठ महत्त्व है। स्कन्द पुराण में आरती का महत्त्व वर्णित है। आरती में अग्नि का स्थान महत्त्व रखता है। अग्नि समस्त नकारात्मक शक्तियों का अंत करती है। अराध्य के समक्ष विशेष वस्तुओं को रखा जाता है। अग्नि का दीपक घी या तेल का हो सकता है जो पूजा के विधान पर निर्भर करता है। वातावरण को सुद्ध करने के लिए सुगन्धित प्रदार्थों का भी उपयोग किया जाता है। कर्पूर का प्रयोग भी जातक के दोष समाप्त होते हैं। 
 

श्री लक्ष्मी रमणा जी की आरती में उनकी अनंत कृपा और भक्तों के प्रति उनका स्नेह अभिव्यक्त होता है। सत्यनारायण स्वामी के चरणों में श्रद्धा और भक्ति से निवेदन करने से मन की शुद्धता और संतोष की प्राप्ति होती है। उनका रत्नजड़ित सिंहासन उनकी दिव्यता और गरिमा का प्रतीक है, जहाँ भक्तजन भक्ति के सागर में डूब जाते हैं। नारदजी द्वारा उनकी आरती और घंटाध्वनि से वातावरण उल्लास से भर जाता है। वे भक्तों की इच्छाओं को पूर्ण करने वाले हैं, जो सच्चे हृदय से उनकी स्तुति करता है।

श्रीसत्यनारायणजी की कृपा से प्रत्येक भक्त को उसके मन की शांति और भक्ति का प्रसाद प्राप्त होता है। उनका आशीर्वाद समस्त कष्टों को हरने वाला और भक्तों को सुख-समृद्धि प्रदान करने वाला है। उनकी आराधना से जीवन में श्रद्धा और भक्ति की गहनता आती है, जिससे आत्मा दिव्य आनंद का अनुभव करती है। आप यदि इस भजन पर कोई विशेष व्याख्या या अर्थ चाहते हैं तो मुझे बताइए, मैं आपके विचारों के अनुरूप इसे और विस्तृत कर सकता हूँ।
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