नवग्रह चालीसा जानिये महत्त्व लिरिक्स और जाप विधि
नवग्रह चालीसा का पाठ इंसान के जीवन में सकारात्मक ऊर्जा और समृद्धि लाने का एक प्रभावी उपाय है। यह चालीसा उन नौ ग्रहों की महिमा का वर्णन करती है, जो हमारे जीवन और भाग्य को प्रभावित करते हैं।
नवग्रह चालीसा का महत्व
नवग्रह चालीसा का नियमित पाठ कुंडली में मौजूद अशुभ ग्रहों के प्रभाव को कम करता है और सकारात्मक ऊर्जा का संचार करता है। यह चालीसा जीवन की कई परेशानियों को दूर कर सुख और सफलता प्रदान करती है।नवग्रह चालीसा के लाभ
- कुंडली में ग्रहों के अशुभ प्रभाव को कम करने के लिए नवग्रह चालीसा का पाठ सबसे प्रभावी माना गया है। नवग्रह चालीसा का पाठ करने से सुख-शांति और सौभाग्य का अनुभव होता है। यह व्यक्ति के जीवन में खुशियां लाता है।
- नवग्रह चालीसा के प्रभाव से व्यक्ति को ज्ञान, बुद्धि, और विवेक प्राप्त होता है, जो उसे सही निर्णय लेने में मदद करता है।
- जो लोग आर्थिक समस्याओं से जूझ रहे हैं, उनके लिए नवग्रह चालीसा का पाठ धन और तरक्की का मार्ग प्रशस्त करता है।
- नवग्रह चालीसा के नियमित पाठ से व्यक्ति को शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक शांति मिलती है।
नवग्रह चालीसा पाठ विधि
- ब्रह्म मुहूर्त में उठकर स्नान करें और स्वच्छ वस्त्र धारण करें।
- पूजा स्थल को साफ करें और नवग्रहों की प्रतिमा या यंत्र के सामने दीपक जलाएं। पूजा के लिए कुमकुम, चावल, फूल और धूप का उपयोग करें।
- पाठ शुरू करने से पहले नवग्रहों का ध्यान करें और उनकी कृपा की प्रार्थना करें।
- शांत मन और श्रद्धा के साथ नवग्रह चालीसा का पाठ करें।
- इसे नियमित रूप से करना अधिक फलदायक होता है। विशेष रूप से मंगलवार, शनिवार, और ग्रहों की दशा के समय यह पाठ अधिक प्रभावी माना जाता है।
दोहा
श्री गणपति गुरुपद कमल प्रेम सहित शिर नाय।
नवग्रह चालीसा कहत शारद होहुं सहाय।।
जय जय रवि शशि भौम बुद्ध जय गुरु भृगु शनि राज।
जयति राहु अरु केतु ग्रह करहु अनुग्रह आज।।
सूर्य
प्रथमहिं रवि कहं नावौ माथा। करहु कृपा जन जानि अनाथा।।
हे आदित्य! दिवाकर भानू। मैं मति मन्द महा अज्ञानू।।
अब निज जन कहं हरहु कलेशा। दिनकर द्वादश रूप दिनेशा।।
नमो भास्कर सूर्य प्रभाकर। अर्क मित्र अघ ओघ क्षमाकर।।
चन्द्र
शशि मयङ्क रजनीपति स्वामी। चन्द्र कलानिधि नमो नमामी।।
राकापति हिमांशु राकेशा। प्रणवत जन नित हरहुं कलेशा।।
सोम इन्दु विधु शान्ति सुधाकर। शीत रश्मि औषधी निशाकर।।
तुमहीं शोभित भाल महेशा। शरण-शरण जन हरहुं कलेशा।।
मंगल
जय जय जय मङ्गल सुखदाता। लोहित भौमादित विख्याता।।
अंगारक कुज रुज ऋणहारी। दया करहुं यहि विनय हमारी।।
हे महिसुत! छितिसुत सुखरासी। लोहितांग जग जन अघनासी।।
अगम अमंगल मम हर लीजै। सकल मनोरथ पूरण कीजै।।
बुध
जय शशिनन्दन बुध महराजा। करहुं सकल जन कहं शुभ काजा।।
दीजै बुद्धि सुमति बल ज्ञाना। कठिन कष्ट हरि हरि कल्याना।।
हे तारासुत! रोहिणी नन्दन। चन्द्र सुवन दु:ख दूरि निकन्दन।।
पूजहिं आस दास कहं स्वामी। प्रणत पाल प्रभु नमो नमामी।।
बृहस्पति
जयति जयति जय श्री गुरु देवा। करौं सदा तुम्हारो प्रभु सेवा।।
देवाचार्य देव गुरु ज्ञानी। इन्द्र पुरोहित विद्या दानी।।
वाचस्पति वागीस उदारा। जीव बृहस्पति नाम तुम्हारा।।
विद्या सिन्धु अंगिरा नामा। करहुं सकल विधि पूरण कामा।।
शुक्र
शुक्रदेव तव पद जल जाता। दास निरन्तर ध्यान लगाता।।
हे उशना! भार्गव भृगुनन्दन। दैत्य पुरोहित दुष्ट निकन्दन।।
भृगुकुल भूषण दूषण हारी। हरहु नेष्ट ग्रह करहु सुखारी।।
तुहिं पण्डित जोशी द्विजराजा। तुम्हारे रहत सहत सब काजा।।
शनि
जय श्री शनि देव रवि नन्दन। जय कृष्णे सौरि जगवन्दन।।
पिङ्गल मन्द रौद्र यम नामा। बभ्रु आदि कोणस्थल लामा।।
वक्र दृष्टि पिप्पल तन साजा। क्षण महं करत रंक क्षण राजा।।
ललत स्वर्ण पद करत निहाला। करहु विजय छाया के लाला।।
राहु
जय जय राहु गगन प्रविसइया। तुम ही चन्द्रादित्य ग्रसइया।।
रवि शशि अरि स्वर्भानू धरा। शिखी आदि बहु नाम तुम्हारा।।
सैंहिकेय निशाचर राजा। अर्धकाय तुम राखहु लाजा।।
यदि ग्रह समय पाय कहुं आवहु। सदा शान्ति रहि सुख उपजावहु।।
केतु
जय जय केतु कठिन दुखहारी। निज जन हेतु सुमंगलकारी।।
ध्वजयुत रुण्ड रूप विकराला। घोर रौद्रतन अधमन काला।।
श्री गणपति गुरुपद कमल प्रेम सहित शिर नाय।
नवग्रह चालीसा कहत शारद होहुं सहाय।।
जय जय रवि शशि भौम बुद्ध जय गुरु भृगु शनि राज।
जयति राहु अरु केतु ग्रह करहु अनुग्रह आज।।
सूर्य
प्रथमहिं रवि कहं नावौ माथा। करहु कृपा जन जानि अनाथा।।
हे आदित्य! दिवाकर भानू। मैं मति मन्द महा अज्ञानू।।
अब निज जन कहं हरहु कलेशा। दिनकर द्वादश रूप दिनेशा।।
नमो भास्कर सूर्य प्रभाकर। अर्क मित्र अघ ओघ क्षमाकर।।
चन्द्र
शशि मयङ्क रजनीपति स्वामी। चन्द्र कलानिधि नमो नमामी।।
राकापति हिमांशु राकेशा। प्रणवत जन नित हरहुं कलेशा।।
सोम इन्दु विधु शान्ति सुधाकर। शीत रश्मि औषधी निशाकर।।
तुमहीं शोभित भाल महेशा। शरण-शरण जन हरहुं कलेशा।।
मंगल
जय जय जय मङ्गल सुखदाता। लोहित भौमादित विख्याता।।
अंगारक कुज रुज ऋणहारी। दया करहुं यहि विनय हमारी।।
हे महिसुत! छितिसुत सुखरासी। लोहितांग जग जन अघनासी।।
अगम अमंगल मम हर लीजै। सकल मनोरथ पूरण कीजै।।
बुध
जय शशिनन्दन बुध महराजा। करहुं सकल जन कहं शुभ काजा।।
दीजै बुद्धि सुमति बल ज्ञाना। कठिन कष्ट हरि हरि कल्याना।।
हे तारासुत! रोहिणी नन्दन। चन्द्र सुवन दु:ख दूरि निकन्दन।।
पूजहिं आस दास कहं स्वामी। प्रणत पाल प्रभु नमो नमामी।।
बृहस्पति
जयति जयति जय श्री गुरु देवा। करौं सदा तुम्हारो प्रभु सेवा।।
देवाचार्य देव गुरु ज्ञानी। इन्द्र पुरोहित विद्या दानी।।
वाचस्पति वागीस उदारा। जीव बृहस्पति नाम तुम्हारा।।
विद्या सिन्धु अंगिरा नामा। करहुं सकल विधि पूरण कामा।।
शुक्र
शुक्रदेव तव पद जल जाता। दास निरन्तर ध्यान लगाता।।
हे उशना! भार्गव भृगुनन्दन। दैत्य पुरोहित दुष्ट निकन्दन।।
भृगुकुल भूषण दूषण हारी। हरहु नेष्ट ग्रह करहु सुखारी।।
तुहिं पण्डित जोशी द्विजराजा। तुम्हारे रहत सहत सब काजा।।
शनि
जय श्री शनि देव रवि नन्दन। जय कृष्णे सौरि जगवन्दन।।
पिङ्गल मन्द रौद्र यम नामा। बभ्रु आदि कोणस्थल लामा।।
वक्र दृष्टि पिप्पल तन साजा। क्षण महं करत रंक क्षण राजा।।
ललत स्वर्ण पद करत निहाला। करहु विजय छाया के लाला।।
राहु
जय जय राहु गगन प्रविसइया। तुम ही चन्द्रादित्य ग्रसइया।।
रवि शशि अरि स्वर्भानू धरा। शिखी आदि बहु नाम तुम्हारा।।
सैंहिकेय निशाचर राजा। अर्धकाय तुम राखहु लाजा।।
यदि ग्रह समय पाय कहुं आवहु। सदा शान्ति रहि सुख उपजावहु।।
केतु
जय जय केतु कठिन दुखहारी। निज जन हेतु सुमंगलकारी।।
ध्वजयुत रुण्ड रूप विकराला। घोर रौद्रतन अधमन काला।।
नवग्रह चालीसा का पाठ जीवन में सकारात्मकता लाने और अशुभ ग्रहों के प्रभाव को दूर करने का एक सरल और प्रभावी उपाय है। यह व्यक्ति को शांति, सफलता और समृद्धि प्रदान करता है। यदि इसे सच्चे मन और श्रद्धा से किया जाए, तो नवग्रहों की कृपा से जीवन में हर तरह की समस्याओं से मुक्ति मिलती है।
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Author - Saroj Jangir
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