लटपटी पेचा बांधा राज मीरा बाई पदावली

लटपटी पेचा बांधा राज

लटपटी पेचा बांधा राज॥टेक॥
सास बुरी घर ननंद हाटेली। तुमसे आठे कियो काज॥१॥
निसीदन मोहिके कलन परत है। बनसीनें सार्‍यो काज॥२॥
मीराके प्रभु गिरिधन नागर। चरन कमल सिरताज॥३॥

मीरा बाई के इस भजन में वे अपने सांसारिक जीवन की कठिनाइयों और अपने आराध्य गिरिधर नागर (कृष्ण) के प्रति अटूट भक्ति का वर्णन करती हैं। वे कहती हैं कि उनके जीवन में उलझनें और बाधाएं हैं, जैसे सास और ननद का कठोर व्यवहार, जिन्होंने उनके लिए समस्याएं खड़ी की हैं। रात-दिन उन्हें कष्ट सहना पड़ता है, लेकिन बंसीधर (कृष्ण) ने उनके सभी कार्य सफल कर दिए हैं। अंत में, मीरा अपने प्रभु गिरिधर नागर के चरण कमलों को सिर का ताज मानकर उनकी भक्ति में लीन हो जाती हैं।

सुन्दर भजन में मीराबाई की भक्ति की अखंडता और श्रीकृष्णजी के प्रति उनके अटूट प्रेम का उदगार है। सांसारिक कठिनाइयों और बाधाओं से घिरे जीवन में जब सास-ननद के कठोर व्यवहार से कष्ट मिलता है, तब आत्मा अपने आराध्य की शरण में सच्चा आश्रय पाती है। यह भक्ति न केवल उनके सांसारिक दुखों से ऊपर उठाती है, बल्कि उनके अस्तित्व को श्रीकृष्णजी में विलीन करने की राह भी प्रशस्त करती है।

मीराबाई का समर्पण प्रत्येक परिस्थिति में अडिग रहता है। रात-दिन वे अपने प्रभु की कृपा में स्थिर रहती हैं, क्योंकि उनका विश्वास है कि बंसीधर श्रीकृष्णजी उनके समस्त कार्यों को संवारने वाले हैं। यही वह प्रेम है, जो हर बाधा को सहजता से पार कर जाता है और भक्त को अपने आराध्य के चिरसुख में स्थापित कर देता है।

श्रीकृष्णजी के चरणकमल, जिनमें मीराबाई ने अपनी चेतना को समर्पित कर दिया, भक्ति की उस पराकाष्ठा को दर्शाते हैं, जहाँ आत्मा और परमात्मा का मिलन होता है। यह भजन श्रद्धा, प्रेम और संपूर्ण आत्मसमर्पण की अनुभूति कराता है, जिससे भक्त का मन निश्चलता और शांति से भर जाता है। श्रीकृष्णजी की भक्ति में डूबकर जीवन मोक्ष और आनंद की ओर अग्रसर होता है।

Next Post Previous Post