मनुवा बाबारे सुमरले मन सिताराम

मनुवा बाबारे सुमरले मन सिताराम मीरा बाई पदावली

मनुवा बाबारे सुमरले मन सिताराम
मनुवा बाबारे सुमरले मन सिताराम॥टेक॥
बडे बडे भूपती सुलतान उनके। डेरे भय मैदान॥१॥
लंकाके रावण कालने खाया। तूं क्या है कंगाल॥२॥
मीरा कहे प्रभु गिरिधर लाल। भज गोपाल त्यज जंजाल॥३॥
 
मन को सदा राम-सीता के नाम में रमने की पुकार है। यह चेतना का आह्वान है कि संसार के बड़े-बड़े राजा-महाराजा, सुलतान, उनके वैभव और डेरे भी क्षणभंगुर हैं। लंका का रावण, जो काल का ग्रास बना, उसकी शक्ति भी नश्वर थी, तो फिर यह तुच्छ मन क्या चीज है। मीरां का मन गिरधर में लीन है, जो कहता है कि गोपाल का भजन ही सच्चा सुख है। संसार के जंजालों को त्याग, प्रभु के नाम में डूब जाना ही जीवन का मोल है। यह भक्ति का मार्ग है, जहां राम का स्मरण आत्मा को मुक्ति की ओर ले जाता है।
 
कालोकी रेन बिहारी। महाराज कोण बिलमायो॥ध्रु०॥
काल गया ज्यां जाहो बिहारी। अही तोही कौन बुलायो॥१॥
कोनकी दासी काजल सार्यो। कोन तने रंग रमायो॥२॥
कंसकी दासी काजल सार्यो। उन मोहि रंग रमायो॥३॥
मीरा कहे प्रभु गिरिधर नागर। कपटी कपट चलायो॥४॥
किन्ने देखा कन्हया प्यारा की मुरलीवाला॥ध्रु०॥
जमुनाके नीर गंवा चरावे। खांदे कंबरिया काला॥१॥
मोर मुकुट पितांबर शोभे। कुंडल झळकत हीरा॥२॥
मीराके प्रभु गिरिधर नागर। चरन कमल बलहारा॥३॥

बादल देख डरी हो, स्याम! मैं बादल देख डरी।
श्याम मैं बादल देख डरी।
काली-पीली घटा ऊमड़ी बरस्यो एक घरी।
श्याम मैं बादल देख डरी।
जित जाऊँ तित पाणी पाणी हुई भोम हरी।।
जाका पिय परदेस बसत है भीजूं बाहर खरी।
श्याम मैं बादल देख डरी।
मीरा के प्रभु हरि अबिनासी कीजो प्रीत खरी।
श्याम मैं बादल देख डरी।
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