काहू की मै बरजी नाहीं रहूँ मीरा बाई पदावली Padawali Meera Bai Meera Bhajan Hindi Lyrics
काहू की मै बरजी नाहीं रहूँ
काहू की मै बरजी नाहीं रहूँ ।।टेक।।
जो कोई मोकूँ एक कहै मैं एक की लाख कहूँ।
सास की जाइ मेरी ननद हठीली, यह दुःख किनसे कहूँ।
मीराँ के प्रभु गिरधरनागर, जग उपसाह सहूँ।।
(बरजी=रोकने पर भी, जाई=पुत्री, उपहास=मजाक)
काहू की मै बरजी नाहीं रहूँ ।।टेक।।
जो कोई मोकूँ एक कहै मैं एक की लाख कहूँ।
सास की जाइ मेरी ननद हठीली, यह दुःख किनसे कहूँ।
मीराँ के प्रभु गिरधरनागर, जग उपसाह सहूँ।।
(बरजी=रोकने पर भी, जाई=पुत्री, उपहास=मजाक)
मोरे लय लगी गोपालसे मेरा काज कोन करेगा ।
मेरे चित्त नंद लालछे ॥ध्रु० ॥१॥
ब्रिंदाजी बनके कुंजगलिनमों । मैं जप धर तुलसी मालछे ॥२॥
मोर मुकुट पीतांबर शोभे । गला मोतनके माल छे ॥३॥
मीराके प्रभु गिरिधर नागर । तुट गई जंजाल छे ॥४॥
दीजो हो चुररिया हमारी । किसनजी मैं कन्या कुंवारी ॥ध्रु०॥
गौलन सब मिल पानिया भरन जाती । वहंको करत बलजोरी ॥१॥
परनारीका पल्लव पकडे । क्या करे मनवा बिचारी ॥२॥
ब्रिंद्रावनके कुंजबनमों । मारे रंगकी पिचकारी ॥३॥
जाके कहती यशवदा मैया । होगी फजीती तुम्हारी ॥४॥
मीराके प्रभु गिरिधर नागर । भक्तनके है लहरी ॥५॥
हरि तुम कायकू प्रीत लगाई ॥ध्रु०॥
प्रीत लगाई पर दुःख दीनो । कैशी लाज न आई ॥ ह० ॥१॥
गोकुल छांड मथुराकु जावूं । वामें कौन बढाई ॥ ह० ॥२॥
मीराके प्रभु गिरिधर नागर । तुमकूं नंद दुवाई ॥ हरि० ॥३॥
पिहुकी बोलिन बोल पपैय्या ॥ध्रु०॥
तै खोलना मेरा जी डरत है । तनमन डावा डोल ॥ पपैय्या० ॥१॥
तोरे बिना मोकूं पीर आवत है । जावरा करुंगी मैं मोल ॥ पपैय्या० ॥२॥
मीराके प्रभु गिरिधर नागर । कामनी करत कीलोल ॥ पपैय्या० ॥३॥
चरन रज महिमा मैं जानी । याहि चरनसे गंगा प्रगटी ।
भगिरथ कुल तारी ॥ चरण० ॥१॥
याहि चरनसे बिप्र सुदामा । हरि कंचन धाम दिन्ही ॥ च० ॥२॥
याहि चरनसे अहिल्या उधारी । गौतम घरकी पट्टरानी ॥ च० ॥३॥
मीराके प्रभु गिरिधर नागर । चरनकमलसे लटपटानी ॥ चरण० ॥४॥
मेरे चित्त नंद लालछे ॥ध्रु० ॥१॥
ब्रिंदाजी बनके कुंजगलिनमों । मैं जप धर तुलसी मालछे ॥२॥
मोर मुकुट पीतांबर शोभे । गला मोतनके माल छे ॥३॥
मीराके प्रभु गिरिधर नागर । तुट गई जंजाल छे ॥४॥
दीजो हो चुररिया हमारी । किसनजी मैं कन्या कुंवारी ॥ध्रु०॥
गौलन सब मिल पानिया भरन जाती । वहंको करत बलजोरी ॥१॥
परनारीका पल्लव पकडे । क्या करे मनवा बिचारी ॥२॥
ब्रिंद्रावनके कुंजबनमों । मारे रंगकी पिचकारी ॥३॥
जाके कहती यशवदा मैया । होगी फजीती तुम्हारी ॥४॥
मीराके प्रभु गिरिधर नागर । भक्तनके है लहरी ॥५॥
हरि तुम कायकू प्रीत लगाई ॥ध्रु०॥
प्रीत लगाई पर दुःख दीनो । कैशी लाज न आई ॥ ह० ॥१॥
गोकुल छांड मथुराकु जावूं । वामें कौन बढाई ॥ ह० ॥२॥
मीराके प्रभु गिरिधर नागर । तुमकूं नंद दुवाई ॥ हरि० ॥३॥
पिहुकी बोलिन बोल पपैय्या ॥ध्रु०॥
तै खोलना मेरा जी डरत है । तनमन डावा डोल ॥ पपैय्या० ॥१॥
तोरे बिना मोकूं पीर आवत है । जावरा करुंगी मैं मोल ॥ पपैय्या० ॥२॥
मीराके प्रभु गिरिधर नागर । कामनी करत कीलोल ॥ पपैय्या० ॥३॥
चरन रज महिमा मैं जानी । याहि चरनसे गंगा प्रगटी ।
भगिरथ कुल तारी ॥ चरण० ॥१॥
याहि चरनसे बिप्र सुदामा । हरि कंचन धाम दिन्ही ॥ च० ॥२॥
याहि चरनसे अहिल्या उधारी । गौतम घरकी पट्टरानी ॥ च० ॥३॥
मीराके प्रभु गिरिधर नागर । चरनकमलसे लटपटानी ॥ चरण० ॥४॥