माई मेरो मोहन में मन हारूं मीरा भजन

माई मेरो मोहन में मन हारूं मीरा भजन

माई मेरो मोहनमें मन हारूं
माई मेरो मोहनमें मन हारूं॥टेक॥
कांह करुं कीत जाऊं सजनी। प्रान पुरससु बरयो॥१॥
हूं जल भरने जातथी सजनी। कलस माथे धरयो॥२॥
सावरीसी कीसोर मूरत। मुरलीमें कछु टोनो करयो॥३॥
लोकलाज बिसार डारी। तबही कारज सरयो॥४॥
दास मीरा लाल गिरिधर। छान ये बर बरयो॥५॥
 
स्वामी सब संसार के हो सांचे श्रीभगवान।।
स्थावर जंगम पावक पाणी धरती बीज समान।
सबमें महिमा थांरी देखी कुदरत के कुरबान।।
बिप्र सुदामा को दालद खोयो बाले की पहचान।
दो मुट्ठी तंदुलकी चाबी दीन्हयों द्रव्य महान।
भारत में अर्जुन के आगे आप भया रथवान।
अर्जुन कुलका लोग निहारयां छुट गया तीर कमान।
ना कोई मारे ना कोइ मरतो, तेरो यो अग्यान।
चेतन जीव तो अजर अमर है, यो गीतारों ग्यान।।
मेरे पर प्रभु किरपा कीजौ, बांदी अपणी जान।
मीरा के प्रभु गिरधर नागर चरण कंवल में ध्यान।।

बरसै बदरिया सावन की
सावन की मनभावन की।
सावन में उमग्यो मेरो मनवा
भनक सुनी हरि आवन की।
उमड़ घुमड़ चहुँ दिसि से आयो
दामण दमके झर लावन की।
नान्हीं नान्हीं बूंदन मेहा बरसै
सीतल पवन सोहावन की।
मीराके प्रभु गिरधर नागर
आनंद मंगल गावन की।

प्रभुजी थे कहां गया नेहड़ो लगाय।
छोड़ गया बिस्वास संगाती प्रेमकी बाती बलाय॥
बिरह समंद में छोड़ गया छो, नेहकी नाव चलाय।
मीरा के प्रभु कब र मिलोगे, तुम बिन रह्यो न जाय॥
 
मन का सारा संसार कृष्ण के प्रेम में डूबा है, जैसे मोहन की मुरली ने सारी चेतना को बांध लिया हो। आत्मा बेचैन है, न कहीं जाने का ठिकाना, न कोई कार्य सूझता। जल भरने का साधारण क्षण भी उनके सांवले रूप में खो गया, जब मुरली की तान ने मन को जादू-सा बांध लिया। लोक-लाज का पर्दा हटा, और प्रेम का बंधन सच्चा हो गया। मीरां ने छिपे-छिपे गिरधर को चुना, उनका प्रेम ही जीवन का आधार बन गया। यह भक्ति है, जहां प्रेम ही पूजा, और समर्पण ही साधना।

सृष्टि का कण-कण प्रभु की महिमा गाता है। स्थावर-जंगम, अग्नि, जल, धरती—सबमें उनकी कुदरत झलकती है। सुदामा की दीनता में उनकी करुणा दिखी, जब दो मुट्ठी चावल के बदले उन्होंने अपार धन दिया। अर्जुन के रथ पर वे स्वयं सारथी बने, युद्ध के मैदान में ज्ञान का दीप जलाया। गीता का संदेश यही है कि आत्मा अजर-अमर है, न कोई मारता, न कोई मरता। यह अज्ञान का पर्दा हटाने की सीख है। प्रभु की कृपा ही जीव को अपने चरणों का ध्यान देती है, जहां मीरां का मन गिरधर में लीन रहता है।

सावन की बरसात मन को हरि के आगमन की सुगंध से भर देती है। बादल उमड़ते हैं, बिजली चमकती है, और छोटी-छोटी बूंदें मन को शीतलता देती हैं। यह प्रभु का आनंद है, जो मीरां के हृदय में मंगल गीत बनकर गूंजता है। उनकी भक्ति सावन-सी ताजगी लिए है, जहां हर पल प्रभु के प्रेम में डूबने की उमंग है।

लेकिन जब प्रभु दूर लगते हैं, तब विरह की आग जलाती है। विश्वास और प्रेम की बाती बुझती-सी प्रतीत होती है। आत्मा उस समंदर में डूबती है, जहां प्रेम की नाव डगमगाती है। मीरां की पुकार यही है कि प्रभु का मिलन ही जीवन है, उनके बिना मन अधूरा। यह प्रेम और विरह का वह राग है, जो आत्मा को हरि के चरणों तक ले जाता है।
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