मीरा लागो रंग हरी लिरिक्स
मीरां लागो रंग हरी
मीरां लागो रंग हरी औरन रंग अटक परी।।टेक।।
चूडो म्हारे तिलक अरू माला, सील बरत सिणगारो।
और सिंगार म्हारे दाय न आवे, यों गुर ग्यान हमारो।
कोई निन्दो कोई बिन्दो म्हें तो गुण गोविन्द का गास्यां।
जिण मारग म्हांरा साध पधारै, उस मारग म्हे जास्यां।
चोरी न करस्यां जिव न सतास्यां, कांई करसी म्हांरो कोई।
गज से उतर के खर नहिं चढस्यां, ये तो बात न होई।।
मीरा बाई पदावली हिंदी अर्थ/शब्दार्थ:अटक- बाधा, रोकना, रूकावट,
सील बरत - शील व्रत, भक्ति / शालीनता.
चूड़ो : चूड़ा, चूड़ियां,
म्हारो : मेरा.
अरु : और।
सिणगारो - श्रृगांर किया, सजाया,
म्हारे : मेरे.
दाय - पसंद आना, मनपसंद, अच्छा लगना.
आवे : आये, पसंद आये.
निन्दो : निंदा करना, कमी निकालना.
बिन्दो - वन्दना, प्रसंसा, भक्ति करना, पूज्य.
म्हें : मैं.
गास्यां : गाऊँगी.
गज - हाथी,
खर - गधा.
जिण मारग : जिस मार्ग पर, जिस राह पर.
म्हांरा : मेरे.
साध : गुरु / साधू.
पधारै : आये हैं.
उस मारग : उस मार्ग पर.
म्हे जास्यां : मैं जाऊँगी.
चोरी न : चोरी नहीं.
करस्यां : करुँगी.
जिव न : जीव को नहीं.
सतास्यां : सतौंगी.
कांई : क्या.
करसी : कर लेगा.
म्हांरो मेरा.
कोई : कोई मेरा क्या कर लेगा, क्या बिगाड़ देगा.
गज से उतर के : हाथी से उतर कर.
खर नहिं चढस्यां : गधे पर नहीं चढूँगी.
ये तो बात न होई : यह बात नहीं होगी.
मीराँ लागो रंग हरी, औरन रँग अटक परी ।। टेक ।।
चूड़ो म्हाँरे तिलक अरु माला, सील बरत सिणगारो ।
और सिंगार म्हाँरे दाय न आवै, यो गुर ग्यान हमारो ।
कोई निन्दो कोई बिन्दो म्हे तो, गुण गोबिद का गास्याँ
जिण मारग म्हाँरा साध पधारै, उण मारग म्हे जास्याँ ।
चोरी न करस्याँ जिव न सतास्याँ, काँई करसी म्हाँरो कोई ।
गजसे उतरके खर नहिं चढ़स्याँ, ये तो बात न होई।
मीनिंग/अर्थ : बाई मीरा का श्री कृष्ण भक्ति के प्रति अनन्य समर्पण है की वे हरी की भक्ति के समक्ष समस्त सांसारिक सुख सुविधाओं को तुच्छ घोषित करती हैं। हरी की भक्ति हाथी की सवारी के समान है वहीँ पर समस्त अन्य सांसारिक कार्य गधे के सवारी के तुल्य हैं।
मीरा को हरी रंग लग गया है। हरी रंग से आशय हरी की भक्ति का प्रेम है। हरी की भक्ति रूपी प्रेम रंग से मीरा रंग गई है। अन्य समस्त रंग, इतर सभी सांसारिक कार्य, व्यवहार पर रोक लग गई है। मीरा सांसारिकता की तरफ जाने पर स्वंय को अटका/बाधित मानती हैं।
ईश्वर की भक्ति का प्रभाव है की मेरा चूड़ा / चूड़ियां तिलक और माला हैं। शील व्रत से मैंने स्वंय को सजाया है।
अन्य कोई भी श्रृंगार मुझे पसंद नहीं आता है। भाव है की भक्ति के रंग के आगे सभी तुच्छ हैं, यही मेरा गुरु ज्ञान है, तत्व की बात है। यह ज्ञान मुझे गुरु ने दिया है।
संसार के लोग क्या कहते हैं मुझे अब इससे कोई लेना देना नहीं है। कोई निंदा करे, कोई प्रसंसा करे, अब इससे कोई फर्क नहीं पड़ता है। अब संसार के लोग कुछ भी कहें मैं तो गोविन्द के ही गुण को गाउंगी।
जिस भक्ति के मार्ग पर मेरे गुरु पधारे हैं, आये हैं, मैं उसी मार्ग का अनुसरण करुँगी।
मैं कोई चोरी नहीं करुँगी, किसी जीव को नहीं सताऊँगी, अब मेरा कोई क्या कर लेगा ? भाव है की मैं भक्ति के नियमों का पालन करुँगी, ऐसे में कोई संसारी मेंरा क्या अहित कर देगा, कुछ भी नहीं।
भक्ति को छोड़कर पुनः सांसारिकता में लौटना तो हाथी से उतर कर गधे की सवारी करना है। मैं ऐसा नहीं करुँगी। हरी की भक्ति को मैं कभी नहीं छोडूंगी।
मीरा बाई के अन्य पद Meera Baai Ke Pad Hindi Me
हरि गुन गावत नाचूंगी॥
आपने मंदिरमों बैठ बैठकर। गीता भागवत बाचूंगी॥१॥
ग्यान ध्यानकी गठरी बांधकर। हरीहर संग मैं लागूंगी॥२॥
मीराके प्रभु गिरिधर नागर। सदा प्रेमरस चाखुंगी॥३॥
तो सांवरे के रंग राची।
साजि सिंगार बांधि पग घुंघरू, लोक-लाज तजि नाची।।
गई कुमति, लई साधुकी संगति, भगत, रूप भै सांची।
गाय गाय हरिके गुण निस दिन, कालब्यालसूँ बांची।।
उण बिन सब जग खारो लागत, और बात सब कांची।
मीरा श्रीगिरधरन लालसूँ, भगति रसीली जांची।।
अपनी गरज हो मिटी सावरे हम देखी तुमरी प्रीत॥ध्रु०॥
आपन जाय दुवारका छाय ऐसे बेहद भये हो नचिंत॥ ठोर०॥१॥
ठार सलेव करित हो कुलभवर कीसि रीत॥२॥
बीन दरसन कलना परत हे आपनी कीसि प्रीत।
मीरां के प्रभु गिरिधर नागर प्रभुचरन न परचित॥३॥