मुखडानी माया लागी रे लिरिक्स Mukhdani Maya Lagi Re Lyrics Meera Bai Padawali

मुखडानी माया लागी रे लिरिक्स Mukhdani Maya Lagi Re Lyrics Meera Bai Padawali

कवयित्री मीरांबाई का यह पद गुजराती भाषा में है। श्री कृष्ण के मुख से बाई मीरा को अलौकिक प्रेम हो गया है। श्री कृष्ण के मुख के सौंदर्य के समक्ष उसे समस्त दुनियां के सुख फीके लगते हैं, खारे (कड़वे) लगते हैं। संसार के सुख स्थाई नहीं है जैसे जंगल में मृग पानी की तलाश में फिरता है, ऐसे ही जीवात्मा सांसारिक साधनों में सुख ढूंढता है जो की एक भ्रम है। श्री कृष्ण को प्राप्त करना उनके लिए अखंड सौभाग्य की बात है। अंत में बाई मीरा समस्त संसार को एक तरफ करके श्री कृष्ण से ही आशा रखती हैं। - श्री खाटू नरेश की जय। (Mukhdani Maya Lagi Hindi Meaning/Hindi Word Meaning)
 
मुखडानी माया लागी रे
मुखडानी माया लागी रे, मोहन प्यारा।
मुखडू मैं जियुं तारूं, सव जग थयुं खारूं, मन मारूं रह्युं न्यारूं रे।
संसारीनुं सुख एबुं, झांझवानां नीर जेवुं, तेने तुच्छ करी फरीए रे।
मीराबाई बलिहारी, आशा मने एक तारी, हवे हुं तो बड़भागी रे॥ 
 
મુખડાની માયા લાગી લિરિક્સ/બોલ
મુખડાની માયા લાગી રે
દિશાશોધન પર જાઓ
શોધ પર જાઓ

મુખડાની માયા લાગી રે, મોહન પ્યારા;
મુખડું મેં જોયું તારું, સર્વ જગ થયું ખારું;
મન મારું રહ્યું ન્યારું રે;
મોહન પ્યારા, મુખડાની માયા લાગી રે.

સંસારીનું સુખ એવું, ઝાંઝવાનાં નીર જેવું;
તેને તુચ્છ કરી ફરીએ રે;
મોહન પ્યારા, મુખડાની માયા લાગી રે.

સંસારીનું સુખ કાચું, પરણી રંડાવું પાછું;
તેવા ઘેર શીદ જઈએ રે;
મોહન પ્યારા, મુખડાની માયા લાગી રે.

પરણું તો પ્રીતમ પ્યારો, રાંડવાનો ભય ટળ્યો રે;
મોહન પ્યારા, મુખડાની માયા લાગી રે.

મીરાંબાઈ બલિહારિ, આશા મને એક તારી;
હવે હું તો બડભાગી રે;
મોહન પ્યારા, મુખડાની માયા લાગી રે. 

मीरा बाई पद हिंदी शब्दार्थ/मीनिंग Mukhdani Maya Lagi Re Word Meaning Hindi

मुखडानी : मुख/मुंह
माया लागी रे : प्रेम, प्रीति (प्रेम स्थापित हो गया है, लगन लग गयी है)
मुखडानी माया लागी रे, मोहन प्यारा : मोहन (श्री कृष्ण) तुम्हारे मुख (दर्शन) का प्रेम मुझे हो गया है.
मुघडुं : मुखड़ा/मुख
में जियुं : मैं जीवित रहती हूँ.
तारूं : तुम्हारे (श्री कृष्ण के)
सव जग : सब जगत, समस्त संसार.
थयुं खारूं : नीरस हो गया है, खारा हो गया है.
मन मारूं : मन को मार कर रहूंगी.
रह्युं : रहूंगी.
न्यारूं रे : प्रथक ही.
संसारीनुं : संसार को
सुख : सुख आराम.
एबुं : ऐसे
झांझवानां : मृग तृष्णा, प्यास.
नीर : पाणी, जल
जेवुं : जैसे की, जिस तरह से.
तेने : तुम्हारे
तुच्छ करी फरीए रे : फिरती है.
मीराबाई बलिहारी : बाई मीरा न्योछावर जाती है.
आशा : hope, आशा
मने : मुझको
तारी : तुम्हारी.
हवे हुं : अब तो.
बड़भागी रे :
बड़े भाग्यशाली, किस्मत वाली.
 
 
मुखडानी माया लागी रे मीरा बाई पदावली Padawali Meera Bai Meera Bhajan Hindi Lyrics
बाई मीरा के अन्य पद
हरि गुन गावत नाचूंगी॥
आपने मंदिरमों बैठ बैठकर। गीता भागवत बाचूंगी॥१॥
ग्यान ध्यानकी गठरी बांधकर। हरीहर संग मैं लागूंगी॥२॥
मीराके प्रभु गिरिधर नागर। सदा प्रेमरस चाखुंगी॥३॥

तो सांवरे के रंग राची।
साजि सिंगार बांधि पग घुंघरू, लोक-लाज तजि नाची।।
गई कुमति, लई साधुकी संगति, भगत, रूप भै सांची।
गाय गाय हरिके गुण निस दिन, कालब्यालसूँ बांची।।
उण बिन सब जग खारो लागत, और बात सब कांची।
मीरा श्रीगिरधरन लालसूँ, भगति रसीली जांची।।

अपनी गरज हो मिटी सावरे हम देखी तुमरी प्रीत॥ध्रु०॥
आपन जाय दुवारका छाय ऐसे बेहद भये हो नचिंत॥ ठोर०॥१॥
ठार सलेव करित हो कुलभवर कीसि रीत॥२॥
बीन दरसन कलना परत हे आपनी कीसि प्रीत।
मीरां के प्रभु गिरिधर नागर प्रभुचरन न परचित॥३॥

शरणागतकी लाज। तुमकू शणागतकी लाज॥ध्रु०॥
नाना पातक चीर मेलाय। पांचालीके काज॥१॥
प्रतिज्ञा छांडी भीष्मके। आगे चक्रधर जदुराज॥२॥
मीराके प्रभु गिरिधर नागर। दीनबंधु महाराज॥३॥

अब तो मेरा राम नाम दूसरा न कोई॥
माता छोडी पिता छोडे छोडे सगा भाई।
साधु संग बैठ बैठ लोक लाज खोई॥
सतं देख दौड आई, जगत देख रोई।
प्रेम आंसु डार डार, अमर बेल बोई॥
मारग में तारग मिले, संत राम दोई।
संत सदा शीश राखूं, राम हृदय होई॥
अंत में से तंत काढयो, पीछे रही सोई।
राणे भेज्या विष का प्याला, पीवत मस्त होई॥
अब तो बात फैल गई, जानै सब कोई।
दास मीरां लाल गिरधर, होनी हो सो होई॥

अब तौ हरी नाम लौ लागी।
सब जगको यह माखनचोरा, नाम धर्‌यो बैरागीं॥
कित छोड़ी वह मोहन मुरली, कित छोड़ी सब गोपी।
मूड़ मुड़ाइ डोरि कटि बांधी, माथे मोहन टोपी॥
मात जसोमति माखन-कारन, बांधे जाके पांव।
स्यामकिसोर भयो नव गौरा, चैतन्य जाको नांव॥
पीतांबर को भाव दिखावै, कटि कोपीन कसै।
गौर कृष्ण की दासी मीरां, रसना कृष्ण बसै॥

बंसीवारा आज्यो म्हारे देस। सांवरी सुरत वारी बेस।।
ॐ-ॐ कर गया जी, कर गया कौल अनेक।
गिणता-गिणता घस गई म्हारी आंगलिया री रेख।।
मैं बैरागिण आदिकी जी थांरे म्हारे कदको सनेस।
बिन पाणी बिन साबुण जी, होय गई धोय सफेद।।
जोगण होय जंगल सब हेरूं छोड़ा ना कुछ सैस।
तेरी सुरत के कारणे जी म्हे धर लिया भगवां भेस।।
मोर-मुकुट पीताम्बर सोहै घूंघरवाला केस।
मीरा के प्रभु गिरधर मिलियां दूनो बढ़ै सनेस।।

अरज करे छे मीरा रोकडी। उभी उभी अरज॥ध्रु०॥
माणिगर स्वामी मारे मंदिर पाधारो सेवा करूं दिनरातडी॥१॥
फूलनारे तुरा ने फूलनारे गजरे फूलना ते हार फूल पांखडी॥२॥
फूलनी ते गादी रे फूलना तकीया फूलनी ते पाथरी पीछोडी॥३॥
पय पक्कानु मीठाई न मेवा सेवैया न सुंदर दहीडी॥४॥
लवींग सोपारी ने ऐलची तजवाला काथा चुनानी पानबीडी॥५॥
सेज बिछावूं ने पासा मंगावूं रमवा आवो तो जाय रातडी॥६॥
मीरा कहे प्रभु गिरिधर नागर तमने जोतमां ठरे आखडी॥७॥

आज मारे साधुजननो संगरे राणा। मारा भाग्ये मळ्यो॥ध्रु०॥
साधुजननो संग जो करीये पियाजी चडे चोगणो रंग रे॥१॥
सीकुटीजननो संग न करीये पियाजी पाडे भजनमां भंगरे॥२॥
अडसट तीर्थ संतोनें चरणें पियाजी कोटी काशी ने कोटी गंगरे॥३॥
निंदा करसे ते तो नर्क कुंडमां जासे पियाजी थशे आंधळा अपंगरे॥४॥
मीरा कहे गिरिधरना गुन गावे पियाजी संतोनी रजमां शीर संगरे॥५॥

सांवरा म्हारी प्रीत निभाज्यो जी॥
थे छो म्हारा गुण रा सागर, औगण म्हारूं मति जाज्यो जी।
लोकन धीजै (म्हारो) मन न पतीजै, मुखडारा सबद सुणाज्यो जी॥
मैं तो दासी जनम जनम की, म्हारे आंगणा रमता आज्यो जी।
मीरा के प्रभु गिरधर नागर, बेड़ो पार लगाज्यो जी॥

होरी खेलनकू आई राधा प्यारी हाथ लिये पिचकरी॥ध्रु०॥
कितना बरसे कुंवर कन्हैया कितना बरस राधे प्यारी॥ हाथ०॥१॥
सात बरसके कुंवर कन्हैया बारा बरसकी राधे प्यारी॥ हाथ०॥२॥
अंगली पकड मेरो पोचो पकड्यो बैयां पकड झक झारी॥ हाथ०॥३॥
मीरा कहे प्रभु गिरिधर नागर तुम जीते हम हारी॥ हाथ०॥४॥

मेरो मनमोहना, आयो नहीं सखी री॥
कैं कहुं काज किया संतन का, कै कहुं गैल भुलावना॥
कहा करूं कित जाऊं मेरी सजनी, लाग्यो है बिरह सतावना॥
मीरा दासी दरसण प्यासी, हरिचरणां चित लावना॥

नाव किनारे लगाव प्रभुजी नाव किना०॥ध्रु०॥
नदीया घहेरी नाव पुरानी। डुबत जहाज तराव॥१॥
ग्यान ध्यानकी सांगड बांधी। दवरे दवरे आव॥२॥
मीरा कहे प्रभु गिरिधर नागर। पकरो उनके पाव॥३॥

हरि तुम हरो जन की भीर।
द्रोपदी की लाज राखी, तुम बढायो चीर॥
भक्त कारण रूप नरहरि, धरयो आप शरीर।
हिरणकश्यपु मार दीन्हों, धरयो नाहिंन धीर॥
बूडते गजराज राखे, कियो बाहर नीर।
दासि 'मीरा लाल गिरिधर, दु:ख जहाँ तहँ पीर॥
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