रहीमदास जी के प्रसिद्ध दोहे हिंदी अर्थ सहित जानिये
भावी काहू ना दही, भावी दह भगवान ।
भावी ऐसी प्रबल है, कहि रहीम यह जान ॥
भावी या उनमान को, पांडव बनहि रहीम ।
जदपि गौरि सुनि बाँझ है, बरु है संभु अजीम ॥
भीत गिरी पाखान की, अररानी वहि ठाम ।
अब रहीम धोखो यहै, को लागै केहि काम ॥
भूप गनत लघु गुनिन को, गुनी गनत लघु भूप ।
रहिमन गिर तें भूमि लौं, लखों तो एकै रूप ॥
मथत मथत माखन रहै, दही मही बिलगाय ।
रहिमन सोई मीत है, भीर परे ठहराय ॥
मनिसिज माली की उपज, कहि रहीम नहिं जाय ।
फल श्यामा के उर लगे, फूल श्याम उर आय ॥
भावी काहू ना दही, भावी दह भगवान।
भावी ऐसी प्रबल है, कहि रहीम यह जान॥
रहीम कहते हैं कि भाग्य किसी के वश में नहीं है; यहाँ तक कि भगवान भी भाग्य के अधीन हैं। भाग्य की शक्ति इतनी प्रबल है कि इसे समझना चाहिए।
भावी या उनमान को, पांडव बनहि रहीम।
जदपि गौरि सुनि बाँझ है, बरु है संभु अजीम॥
रहीम कहते हैं कि भाग्य के प्रभाव से पांडवों का जन्म हुआ, जबकि माता कुंती को बाँझ माना जाता था। यह सब भगवान शिव की महिमा से संभव हुआ।
भीत गिरी पाखान की, अररानी वहि ठाम।
अब रहीम धोखो यहै, को लागै केहि काम॥
रहीम कहते हैं कि पहाड़ की चट्टानें अपनी जगह से हिल रही हैं, जो अब अस्थिर हो गई हैं। ऐसे में यह धोखा है, और किसी के किसी काम नहीं आता।
भूप गनत लघु गुनिन को, गुनी गनत लघु भूप।
रहिमन गिर तें भूमि लौं, लखों तो एकै रूप॥
रहीम कहते हैं कि राजा विद्वानों को छोटा मानते हैं, और विद्वान राजा को। जैसे पहाड़ से लेकर धरती तक देखने पर सब एक समान लगता है।
मथत मथत माखन रहै, दही मही बिलगाय।
रहिमन सोई मीत है, भीर परे ठहराय॥
रहीम कहते हैं कि मथने पर दही से मक्खन निकल आता है और मट्ठा अलग हो जाता है। सच्चा मित्र वही है जो विपत्ति के समय साथ न छोड़े।
मनिसिज माली की उपज, कहि रहीम नहिं जाय।
फल श्यामा के उर लगे, फूल श्याम उर आय॥
रहीम कहते हैं कि कामदेव के बाणों की उपज का वर्णन नहीं किया जा सकता। जैसे फल श्याम (कृष्ण) के हृदय से लगे हैं और फूल श्यामा (राधा) के हृदय में समाए हैं।
पूरा नाम – अब्दुर्रहीम ख़ानख़ाना, (रहीम दास)
जन्म – 17 दिसम्बर 1556 ई.
मृत्यु – 1627 ई. (उम्र- 70)
उपलब्धि – कवि,
मुख्य रचनाए – रहीम रत्नावली, रहीम विलास, रहिमन विनोद, रहीम ‘कवितावली, रहिमन चंद्रिका, रहिमन शतक,
रहीम का पूरा नाम अब्दुल रहीम खानखाना था। रहीम मध्यकालीन कवि, सेनापति, प्रशासक, आश्रय दाता, दानवीर कूटनीतिज्ञ, बहु भाषा विद, कला प्रेमी सेनापति एवं विद्वान थे। रहीम के पिता का नाम बैरम खान और माता का नाम सुल्ताना बेगम था। ऐसा कहते हैं कि उनके जन्म के समय उनके पिता की आयु लगभग 60 वर्ष हो चुकी थी और रहीम के जन्म के बाद उनका नामकरण अकबर के द्वारा किया गया था । रहीम को वीरता, राजनीति, राज्य-संचालन, दानशीलता तथा काव्य जैसे अदभुत गुण अपने माता-पिता से विरासत में मिले थे। बचपन से ही रहीम साहित्य प्रेमी और बुद्धिमान थे।