सरल अर्थ सहित रहीम दास के दोहे
फरजी सह न ह्य सकै, गति टेढ़ी तासीर ।
रहिमन सीधे चालसों, प्यादो होत वजीर ॥
बड़ माया को दोष यह, जो कबहूँ घटि जाय ।
तो रहीम मरिबो भलो, दुख सहि जिय बलाय ॥
बड़े दीन को दुख सुनो, लेत दया उर आनि ।
हरि हाथी सो कब हुतो, कहु रहीम पहिचानि ॥
बड़े पेट के भरन को, है रहीम दुख बाढ़ि ।
यातें हाथी हहरि कै, दयो दाँत द्वै काढ़ि ॥
बड़े बड़ाई नहिं तजैं, लघु रहीम इतराइ ।
राइ करौंदा होत है, कटहर होत न राइ ॥
बड़े बड़ाई ना करैं, बड़ो न बोलैं बोल ।
रहिमन हीरा कब कहै, लाख टका मेरो मोल ॥
बढ़त रहीम धनाढ्य धन, धनौ धनी को जाइ ।
घटै बढ़ै बाको कहा, भीख माँगि जो खाइ ॥
बसि कुसंग चाहत कुसल, यह रहीम जिय सोस ।
महिमा घटी समुद्र की, रावन बस्यो परोस ॥
बाँकी चितवन चित चढ़ी, सूधी तौ कछु धीम ।
गाँसी ते बढ़ि होत दुख, काढ़ि न कढ़त रहीम ॥
बिगरी बात बनै नहीं, लाख करौ किन कोय ।
रहिमन फाटे दूध को, मथे न माखन होय ॥
फरजी सह न ह्य सकै, गति टेढ़ी तासीर।
रहिमन सीधे चालसों, प्यादो होत वजीर॥रहीम कहते हैं कि शतरंज का ऊँचा मोहरा 'फरजी' (वज़ीर) टेढ़ी चाल चलता है, इसलिए वह प्यादे की तरह वजीर नहीं बन सकता। जबकि प्यादा सीधी चाल चलते हुए अंततः वजीर बन जाता है। यह सिखाता है कि सरल और सीधा मार्ग अपनाने से व्यक्ति उच्च पद प्राप्त कर सकता है।
बड़ माया को दोष यह, जो कबहूँ घटि जाय।
तो रहीम मरिबो भलो, दुख सहि जिय बलाय॥रहीम कहते हैं कि बड़े धन का दोष यह है कि यदि वह कभी कम हो जाए, तो व्यक्ति के लिए जीना कठिन हो जाता है। ऐसे में मरना बेहतर है, क्योंकि धन की कमी से उत्पन्न कष्ट असहनीय हो जाते हैं।
बड़े दीन को दुख सुनो, लेत दया उर आनि।
हरि हाथी सो कब हुतो, कहु रहीम पहिचानि॥रहीम कहते हैं कि बड़े लोग गरीबों का दुःख सुनकर दया तो दिखाते हैं, लेकिन वास्तव में सहायता नहीं करते। जैसे हाथी के सामने घास डालने से वह खाता नहीं, केवल सूँघकर छोड़ देता है।
बड़े पेट के भरन को, है रहीम दुख बाढ़ि।
यातें हाथी हहरि कै, दयो दाँत द्वै काढ़ि॥रहीम कहते हैं कि बड़े पेट को भरने के लिए अधिक कष्ट उठाना पड़ता है। जैसे हाथी अपने बड़े शरीर के कारण भोजन की तलाश में अपने दाँतों का उपयोग करता है।
बड़े बड़ाई नहिं तजैं, लघु रहीम इतराइ।
राइ करौंदा होत है, कटहर होत न राइ॥रहीम कहते हैं कि बड़े लोग अपनी बड़ाई नहीं छोड़ते, और छोटे लोग अहंकार करते हैं। जैसे करौंदा (छोटा फल) राई के समान छोटा हो सकता है, लेकिन कटहल (बड़ा फल) कभी राई के समान नहीं हो सकता।
बड़े बड़ाई ना करैं, बड़ो न बोलैं बोल।
रहिमन हीरा कब कहै, लाख टका मेरो मोल॥रहीम कहते हैं कि बड़े लोग अपनी बड़ाई नहीं करते, जैसे हीरा कभी नहीं कहता कि उसकी कीमत लाख टका है। सच्चे महान लोग अपने गुणों का बखान नहीं करते।
बढ़त रहीम धनाढ्य धन, धनौ धनी को जाइ।
घटै बढ़ै बाको कहा, भीख माँगि जो खाइ॥रहीम कहते हैं कि धनवान का धन बढ़ता है, और धन उसी के पास जाता है। लेकिन जो भीख मांगकर खाते हैं, उनके लिए धन का बढ़ना या घटना कोई मायने नहीं रखता।
बसि कुसंग चाहत कुसल, यह रहीम जिय सोस।
महिमा घटी समुद्र की, रावन बस्यो परोस॥रहीम कहते हैं कि बुरी संगति में रहकर सुख की इच्छा करना आत्मा को कष्ट देना है। जैसे समुद्र की महिमा घट गई जब रावण उसके किनारे बसा।
बाँकी चितवन चित चढ़ी, सूधी तौ कछु धीम।
गाँसी ते बढ़ि होत दुख, काढ़ि न कढ़त रहीम॥रहीम कहते हैं कि तीखी नजरें मन को प्रभावित करती हैं, जबकि सीधी नजरें कम प्रभाव डालती हैं। जैसे गाँठ लगी हुई चीज़ को निकालना कठिन होता है, वैसे ही तीखी नजरों का प्रभाव गहरा होता है।
बिगरी बात बनै नहीं, लाख करौ किन कोय।
रहिमन फाटे दूध को, मथे न माखन होय॥रहीम कहते हैं कि एक बार बिगड़ी हुई बात लाख प्रयास करने पर भी नहीं बनती, जैसे फटे हुए दूध को मथने से मक्खन नहीं निकलता। इसलिए, हमें सोच-समझकर कार्य करना चाहिए ताकि बात बिगड़े ही नहीं।
पूरा नाम – अब्दुर्रहीम ख़ानख़ाना, (रहीम दास)
जन्म – 17 दिसम्बर 1556 ई.
मृत्यु – 1627 ई. (उम्र- 70)
उपलब्धि – कवि,
मुख्य रचनाए – रहीम रत्नावली, रहीम विलास, रहिमन विनोद, रहीम ‘कवितावली, रहिमन चंद्रिका, रहिमन शतक,
रहीम का पूरा नाम अब्दुल रहीम खानखाना था। रहीम मध्यकालीन कवि, सेनापति, प्रशासक, आश्रय दाता, दानवीर कूटनीतिज्ञ, बहु भाषा विद, कला प्रेमी सेनापति एवं विद्वान थे। रहीम के पिता का नाम बैरम खान और माता का नाम सुल्ताना बेगम था। ऐसा कहते हैं कि उनके जन्म के समय उनके पिता की आयु लगभग 60 वर्ष हो चुकी थी और रहीम के जन्म के बाद उनका नामकरण अकबर के द्वारा किया गया था । रहीम को वीरता, राजनीति, राज्य-संचालन, दानशीलता तथा काव्य जैसे अदभुत गुण अपने माता-पिता से विरासत में मिले थे।