रहीम के दोहे हिंदी में Raheem Dohe (Couplets) in Hindi
रहीम के दोहे हिंदी में Raheem Dohe (Couplets) in Hindi
फरजी सह न ह्य सकै, गति टेढ़ी तासीर ।
रहिमन सीधे चालसों, प्यादो होत वजीर ॥
बड़ माया को दोष यह, जो कबहूँ घटि जाय ।
तो रहीम मरिबो भलो, दुख सहि जिय बलाय ॥
बड़े दीन को दुख सुनो, लेत दया उर आनि ।
हरि हाथी सो कब हुतो, कहु रहीम पहिचानि ॥
बड़े पेट के भरन को, है रहीम दुख बाढ़ि ।
यातें हाथी हहरि कै, दयो दाँत द्वै काढ़ि ॥
बड़े बड़ाई नहिं तजैं, लघु रहीम इतराइ ।
राइ करौंदा होत है, कटहर होत न राइ ॥
बड़े बड़ाई ना करैं, बड़ो न बोलैं बोल ।
रहिमन हीरा कब कहै, लाख टका मेरो मोल ॥
बढ़त रहीम धनाढ्य धन, धनौ धनी को जाइ ।
घटै बढ़ै बाको कहा, भीख माँगि जो खाइ ॥
बसि कुसंग चाहत कुसल, यह रहीम जिय सोस ।
महिमा घटी समुद्र की, रावन बस्यो परोस ॥
बाँकी चितवन चित चढ़ी, सूधी तौ कछु धीम ।
गाँसी ते बढ़ि होत दुख, काढ़ि न कढ़त रहीम ॥
बिगरी बात बनै नहीं, लाख करौ किन कोय ।
रहिमन फाटे दूध को, मथे न माखन होय ॥
रहिमन सीधे चालसों, प्यादो होत वजीर ॥
बड़ माया को दोष यह, जो कबहूँ घटि जाय ।
तो रहीम मरिबो भलो, दुख सहि जिय बलाय ॥
बड़े दीन को दुख सुनो, लेत दया उर आनि ।
हरि हाथी सो कब हुतो, कहु रहीम पहिचानि ॥
बड़े पेट के भरन को, है रहीम दुख बाढ़ि ।
यातें हाथी हहरि कै, दयो दाँत द्वै काढ़ि ॥
बड़े बड़ाई नहिं तजैं, लघु रहीम इतराइ ।
राइ करौंदा होत है, कटहर होत न राइ ॥
बड़े बड़ाई ना करैं, बड़ो न बोलैं बोल ।
रहिमन हीरा कब कहै, लाख टका मेरो मोल ॥
बढ़त रहीम धनाढ्य धन, धनौ धनी को जाइ ।
घटै बढ़ै बाको कहा, भीख माँगि जो खाइ ॥
बसि कुसंग चाहत कुसल, यह रहीम जिय सोस ।
महिमा घटी समुद्र की, रावन बस्यो परोस ॥
बाँकी चितवन चित चढ़ी, सूधी तौ कछु धीम ।
गाँसी ते बढ़ि होत दुख, काढ़ि न कढ़त रहीम ॥
बिगरी बात बनै नहीं, लाख करौ किन कोय ।
रहिमन फाटे दूध को, मथे न माखन होय ॥
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पूरा नाम – अब्दुर्रहीम ख़ानख़ाना, (रहीम दास)
जन्म – 17 दिसम्बर 1556 ई.
मृत्यु – 1627 ई. (उम्र- 70)
उपलब्धि – कवि,
मुख्य रचनाए – रहीम रत्नावली, रहीम विलास, रहिमन विनोद, रहीम ‘कवितावली, रहिमन चंद्रिका, रहिमन शतक,
रहीम का पूरा नाम अब्दुल रहीम खानखाना था। रहीम मध्यकालीन कवि, सेनापति, प्रशासक, आश्रय दाता, दानवीर कूटनीतिज्ञ, बहु भाषा विद, कला प्रेमी सेनापति एवं विद्वान थे। रहीम के पिता का नाम बैरम खान और माता का नाम सुल्ताना बेगम था। ऐसा कहते हैं कि उनके जन्म के समय उनके पिता की आयु लगभग 60 वर्ष हो चुकी थी और रहीम के जन्म के बाद उनका नामकरण अकबर के द्वारा किया गया था । रहीम को वीरता, राजनीति, राज्य-संचालन, दानशीलता तथा काव्य जैसे अदभुत गुण अपने माता-पिता से विरासत में मिले थे।