राहु कवच लिरिक्स Rahu Kavacha Lyrics

राहु कवच लिरिक्स Rahu Kavacha Lyrics

अथ राहुकवचम्
अस्य श्रीराहुकवचस्तोत्रमंत्रस्य चंद्रमा ऋषिः I
अनुष्टुप छन्दः I रां बीजं I नमः शक्तिः I
स्वाहा कीलकम् I राहुप्रीत्यर्थं जपे विनियोगः II
प्रणमामि सदा राहुं शूर्पाकारं किरीटिन् II
सैन्हिकेयं करालास्यं लोकानाम भयप्रदम् II १ II
निलांबरः शिरः पातु ललाटं लोकवन्दितः I
चक्षुषी पातु मे राहुः श्रोत्रे त्वर्धशरीरवान् II २ II
नासिकां मे धूम्रवर्णः शूलपाणिर्मुखं मम I
जिव्हां मे सिंहिकासूनुः कंठं मे कठिनांघ्रीकः II ३ II
भुजङ्गेशो भुजौ पातु निलमाल्याम्बरः करौ I
पातु वक्षःस्थलं मंत्री पातु कुक्षिं विधुंतुदः II ४ II
कटिं मे विकटः पातु ऊरु मे सुरपूजितः I
स्वर्भानुर्जानुनी पातु जंघे मे पातु जाड्यहा II ५ II
गुल्फ़ौ ग्रहपतिः पातु पादौ मे भीषणाकृतिः I
सर्वाणि अंगानि मे पातु निलश्चंदनभूषण: II ६ II
राहोरिदं कवचमृद्धिदवस्तुदं यो I
भक्ता पठत्यनुदिनं नियतः शुचिः सन् I
प्राप्नोति कीर्तिमतुलां श्रियमृद्धिमायु
रारोग्यमात्मविजयं च हि तत्प्रसादात् II ७ II
II इति श्रीमहाभारते धृतराष्ट्रसंजयसंवादे द्रोणपर्वणि राहुकवचं संपूर्णं II 


कवच क्या होता है ?
देव पूजा, मन्त्र साधना और उपासना से पहले कवच बना लेना चाहिए जो हमें समस्त प्रकार की बाधाओं से दूर रखता हैं। कवच बनाने से यह लाभ होता है की जब हम किसी देव विशेष की पूजा और मन्त्र का जाप करते हैं तो मन में उसी देव का विचार होना चाहिए, मन विचलित नहीं होना चाहिए। ऐसा बुरी शक्तियों के द्वारा किया जाता है जो की नहीं चाहती की देवों की स्थापना हो और उनके अनुष्ठान हो सके। जब अनुष्ठान के दौरान हमारा मन विचलित होता है तो पूजा में व्यवधान उत्पन्न होता है और वह खंडित हो जाती हैं। बुरी शक्तियों के द्वारा हमारा मन विचलित कर दिया जाता है क्योंकि वे नहीं चाहती की हम ईश्वर का सुमिरन करे। उनके प्रभाव के कारन ही मन में ईर्ष्या, द्वेष, क्रोध, विषय विकार उत्पन्न हो जाते हैं जिससे हमारी साधना पूर्ण नहीं होती और जब हमें उचित फल नहीं मिलता है तो हमारा विश्वास डगमगाने लगता है और हम पूजा पाठ से विरक्त हो जाते हैं। इसलिए हमें गुरु के सानिध्य में रक्षा कवच का अभ्यास करना चाहिए। हर देव के कवच हैं जिन्हे अभ्यास और गुरु के मार्गदर्शन से अपनाया जा सकता है।


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