जाके प्रिय न राम वैदेही। सो छॉँड़िये कोटि बैरी सम, जद्यपि परम सनेही।। तज्यो पिता प्रहलाद, बिभीषण बन्धु, भरत महतारी। बलि गुरु तज्यो, कंत व्रजबनितनि, भये मुद-मंगलकारी।। नाते नेह राम के मनियत सुह्रद सुसेव्य जहां लौं। अंजन कहा आखि जेहि फूटै, बहुतक कहौं कहां लौं।। तुलसी सो सब भांति परमहित पूज्य प्रान ते प्यारो। जासों होय सनेह रामपद, एतो मतो हमारो।।
गोस्वामी तुलसीदास द्वारा रचित यह पद भक्ति मार्ग में ईश्वर-प्रेम की सर्वोच्चता को दर्शाता है। इसमें बताया गया है कि यदि कोई व्यक्ति श्रीराम और माता सीता (वैदेही) से प्रेम नहीं करता, तो चाहे वह कितना भी प्रिय क्यों न हो, उसे करोड़ों शत्रुओं के समान त्याग देना चाहिए। उदाहरणस्वरूप, प्रह्लाद ने अपने पिता हिरण्यकशिपु, विभीषण ने अपने भाई रावण, भरत ने अपनी माता कैकेयी, राजा बलि ने अपने गुरु शुक्राचार्य, और ब्रज की गोपियों ने अपने पतियों का त्याग किया, क्योंकि ये सभी भगवान के विरोधी थे। इन त्यागों के बावजूद, उन्होंने आनंद और कल्याण प्राप्त किया।
तुलसीदास जी यह संदेश देते हैं कि जो व्यक्ति भगवान श्रीराम के चरणों में प्रेम उत्पन्न करता है, वही सच्चा हितैषी, पूजनीय और प्राणों से भी अधिक प्रिय है। इस प्रकार, भक्तों को ऐसे संबंधों से बचना चाहिए जो उनकी भक्ति में बाधा डालते हैं, चाहे वे संबंध कितने भी निकट क्यों न हों।
जानिये अर्थ
जाके प्रिय न राम बैदेही। तजिये ताहि कोटि बैरी सम, जद्यपि परम सनेही।।
जिसे श्रीराम और माता सीता प्रिय नहीं हैं, उसे करोड़ों शत्रुओं के समान त्याग देना चाहिए, चाहे वह कितना भी स्नेही क्यों न हो।
Ram Bhajan Lyrics in Hindi RaamBhajanLyrics
तज्यो पिता प्रहलाद, बिभीषण बंधु, भरत महतारी। बलि गुरु तज्यो, कंत व्रजबनितनि, भये मुद-मंगलकारी।।
प्रह्लाद ने अपने पिता (हिरण्यकशिपु) को, विभीषण ने अपने भाई (रावण) को, भरत ने अपनी माता (कैकेयी) को, राजा बलि ने अपने गुरु (शुक्राचार्य) को, और ब्रज की गोपियों ने अपने पतियों को त्याग दिया, और इसके परिणामस्वरूप वे आनंद और कल्याण को प्राप्त हुए।
नाते नेह राम के मनियत सुह्रद सुसेव्य जहां लौं। अंजन कहा आँखि जेहि फूटै, बहुतक कहौं कहां लौं।।
संबंध और स्नेह केवल वहीं तक मान्य हैं जहाँ तक वे श्रीराम के प्रति प्रेम में सहायक हों। जिस अंजन (काजल) को लगाने से आँखें फूट जाएँ, उसका क्या उपयोग? अधिक क्या कहूँ।
तुलसी सो सब भांति परमहित पूज्य प्रान ते प्यारो। जासों होय सनेह रामपद, एतो मतो हमारो।।
तुलसीदास कहते हैं कि जो श्रीराम के चरणों में स्नेह रखता है, वही सभी प्रकार से परम हितकारी, पूजनीय और प्राणों से भी अधिक प्रिय है। यही मेरा मत है।
इस प्रकार, तुलसीदास जी ने इस पद में भगवान श्रीराम के प्रति अनन्य भक्ति और प्रेम की महत्ता को प्रतिपादित किया है, और बताया है कि सांसारिक संबंधों से अधिक महत्वपूर्ण ईश्वर-प्रेम है।