मैं वारी जाऊं रे बलिहारी जाऊं रे लिरिक्स Main Vaari Jau Re Balihari Jau Re Lyrics

मैं वारी जाऊं रे बलिहारी जाऊं रे गीत एक भक्ति गीत है जो एक भक्त की अपने गुरु के आगमन पर खुशी और आभार व्यक्त करता है। गीत में, भक्त कहती है कि वह अपने गुरु से मिलने के लिए बहुत उत्साहित है और वह उन्हें बलिहारी देती है। वह कहती है कि उसके गुरु ने उसके जीवन में गंगा और गोमती की तरह पवित्रता और शुद्धता लाई है। वह कहती है कि उसके गुरु के दर्शन से उसका भाग्य उदय हुआ है और उसने उसके सभी भ्रम और पापों को दूर कर दिया है। वह कहती है कि वह अब एक सत्संगी बन गई है और वह मंगला गाती है। अंत में, वह अपने गुरु के चरणों में अपना सिर झुकाकर उनकी प्रशंसा करती है।

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मैं वारी जाऊं रे बलिहारी जाऊं रे लिरिक्स Main Vaari Jau Re Balihari Jau Re Lyrics
 
मैं वारी जाऊं रे बलिहारी जाऊं रे,
मारे सतगुरु आंगड़ आया,
मैं वारी जाऊं रे।

सतगुरु आंगड़ आया,
हे गंगा गोमती लाया रे,
मारी निर्मल हो गयी काया,
मैं वारी जाऊं रे।

सब सखी मिलकर हालो,
केसर तिलक लगावो रे,
घड़ी हेत सूं लेवो बधाई,
मैं वारी जाऊं रे।

सतगुरु दर्शन दीन्हा,
भाग उदय कर दीन्हा रे,
मेरा भरम वरम सब छीना,
मैं वारी जाऊं रे।

सत्संगी बन गयी भारी,
मंगला गाऊं चारी रे,
मेरी खुली ह्रदय की ताली,
मैं वारी जाऊं रे

दास नारायण जस गायो,
चरणों में सीस नवायों रे,
मेरा सतगुरु पार उतारे,
मैं वारी जाऊं रे।


Prahlad Singh Tipaniya is a well-known folk singer from Madhya Pradesh, India. He is known for his rendition of traditional Rajasthani folk songs, known as "Kamawali" and "Phad". He has been performing for more than four decades and has been recognized for his contribution to the preservation of traditional Indian folk music. His songs are known for their simple yet profound lyrics and melodious tunes, and are deeply rooted in the cultural and social heritage of India.
मैं वारी जाऊं रे बलिहारी जाऊं रे,
मारे सतगुरु आंगड़ आया,
मैं वारी जाऊं रे।


Me Wari Jaaun Re Balihari Jaaun Re - में वारी जाउ रे बलिहारी जाउ रे - By Tarasingh Dodve(Dr. Sahab)

गुरु का महत्त्व अत्यंत ही महत्वपूर्ण है। गुरु वह व्यक्ति होता है जो किसी व्यक्ति को ज्ञान, विद्या, धर्म, अध्यात्म आदि का मार्ग दिखाता है। गुरु ही व्यक्ति को जीवन के सही रास्ते पर चलने के लिए प्रेरित करता है। गुरु के बिना कोई भी व्यक्ति अपने लक्ष्य को प्राप्त नहीं कर सकता है। भगवद गीता में गुरु को परम ब्रह्म के समान माना गया है। गीता के अनुसार, "गुरुः साक्षात परं ब्रह्म तस्मै श्री गुरवे नमः।" अर्थात्, गुरु परम ब्रह्म का साक्षात रूप है। गुरु ही व्यक्ति को अज्ञान के अंधकार से प्रकाश की ओर ले जाता है। गुरु का चुनाव करते समय बहुत सावधानी बरतनी चाहिए। एक सच्चे गुरु की पहचान उसकी ज्ञान, चरित्र और आध्यात्मिक उन्नति से होती है। एक सच्चे गुरु का शिष्य हमेशा अपने गुरु का सम्मान करता है और उनके निर्देशों का पालन करता है।

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