मैंने भोग सजायो है थाल मईया कर लिजो स्वीकार
(मुखड़ा)
मैंने भोग सजायो है थाल,
मइया कर लिजो स्वीकार,
मइया कर लिजो,
माँ कर लिजो,
मैंने भोग सजायो है थाल,
मइया कर लिजो स्वीकार।।
(अंतरा)
शबरी के बेर समझ करके,
तुम पा लिजो यो चखकर के,
ये है मीठा की भरमार,
मइया कर लिजो स्वीकार।
मैंने भोग सजायो है थाल,
मइया कर लिजो स्वीकार।।
जिन भक्तों के घर जाकर के,
उन्हें धन्य किए माँ पा करके,
वैसा ही समझ सरकार,
मइया कर लिजो स्वीकार।
मैंने भोग सजायो है थाल,
मइया कर लिजो स्वीकार।।
उन भक्तों सा नहीं बन पाया,
ना वैसा भाव जगा पाया,
यही कमी रही हर बार,
मइया कर लिजो स्वीकार।
मैंने भोग सजायो है थाल,
मइया कर लिजो स्वीकार।।
जो तुम पाओ वह ज्ञात नहीं,
इतनी मेरी औकात नहीं,
मैं आँसू बहाऊँ धार,
मइया कर लिजो स्वीकार।
मैंने भोग सजायो है थाल,
मइया कर लिजो स्वीकार।।
(अंतिम पुनरावृत्ति)
मैंने भोग सजायो है थाल,
मइया कर लिजो स्वीकार,
मइया कर लिजो,
माँ कर लिजो,
मैंने भोग सजायो है थाल,
मइया कर लिजो स्वीकार।।
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