बम बम बोल के चलो रे दिल खोल के
भोले की कावड़ ल्यावे हरिद्वार से बुलावे भोला प्यार से
मस्त महीना सावन भोले का आया
भोले ने भगतो को दर पे भुलाया
ये भंगियाँ घुटाके के मूड बना के
भोले की कावड़ ल्यावे हरिद्वार से बुलावे भोला प्यार से
हर कावड़ियाँ बम बम बोल रहा से
भोले की मस्ती में दिल डोल रहा से
ख़ुशी की वेला से भगतो का रेला से
भोले की कावड़ ल्यावे हरिद्वार से बुलावे भोला प्यार से
सुमित कवर भी हो गया भोले का दीवाना
उमा शंकर गा गया जो गाना झूमे रहो
बम बोला भांग का खा गोला
भोले की कावड़ ल्यावे हरिद्वार से बुलावे भोला प्यार से
भोले की कावड़ ल्यावे हरिद्वार से बुलावे भोला प्यार से
मस्त महीना सावन भोले का आया
भोले ने भगतो को दर पे भुलाया
ये भंगियाँ घुटाके के मूड बना के
भोले की कावड़ ल्यावे हरिद्वार से बुलावे भोला प्यार से
हर कावड़ियाँ बम बम बोल रहा से
भोले की मस्ती में दिल डोल रहा से
ख़ुशी की वेला से भगतो का रेला से
भोले की कावड़ ल्यावे हरिद्वार से बुलावे भोला प्यार से
सुमित कवर भी हो गया भोले का दीवाना
उमा शंकर गा गया जो गाना झूमे रहो
बम बोला भांग का खा गोला
भोले की कावड़ ल्यावे हरिद्वार से बुलावे भोला प्यार से
श्री शिव को देवो के देव महादेव कहा जाता है। श्री शिव भोलेनाथ भी हैं जो बड़ी ही सहजता से अपने भक्तों को प्रशन्न होकर आशीर्वाद देते हैं। श्री शिव का स्मरण करते ही एक छवि बनती है अलमस्त, अपने हाथ में डमरू, त्रिशूल और गले में नाग देवता और मस्तक पर चन्द्रमा दिखाई देता है। श्री शिव जी के पास त्रिशूल, डमरू,गले में नाग और मस्तक पर चन्द्रमा कहा से आये, आइये जानते हैं।
श्री शिव और त्रिशूल : श्रष्टि की उत्पत्ति के समय रज तम और सत का भी जन्म हुआ था। श्री शिव उसी समय श्री शिव इन तीन शूल को त्रिशूल रूप में धारण करते हैं। भगवान् शिव धनुष भी धारण करते हैं जिसका नाम पिनाक था जिसका आविष्कार स्वंय श्री शिव ने किया था। पौराणिक मान्यता के अनुसार श्री शिव अस्त्र शस्त्र के परम ज्ञाता थे और हर प्रकार के अस्त्र शस्त्र चलाने में निपुणता हासिल थी। मान्यता है की त्रिशूल तीन देवों का भी प्रतीक है ब्रह्म, विष्णु और महेश। देवी शक्ति त्रिसूल से असुर शक्तियों का विनाश करती हैं इसलिए त्रिशूल को माता लक्ष्मी, माता पार्वती और माता सरस्वती जी के प्रतीकात्मक शक्ति के रूप में भी देखा जाता है।
श्री शिव और डमरू : श्रष्टि के जन्म पर सरस्वती जी ने वीणा बजाकर ध्वनि को पैदा किया। श्री शिव ने आनंदित होकर १४ बार डमरू बजाय और सुर, लय, व्याकरण और ताल का आविष्कार किया। तभी से सभी सुरों का जन्म हुआ बताया जाता है और यही कारन है की श्री शिव जी हाथों में डमरू धारण किये हुए दिखता है। डमरू को ब्रह्म का प्रतीक भी माना जाता है। हिन्दू धर्म का नृत्य और गायन से गहरा सम्बद्ध रहा है। श्रष्टि की रचना भी ध्वनि और दैवीय प्रकाश से हुयी है। ध्वनि के महत्त्व को शिव जी के डमरू से समझा जा सकता है।
आपको ये पोस्ट पसंद आ सकती हैं
श्री शिव और त्रिशूल : श्रष्टि की उत्पत्ति के समय रज तम और सत का भी जन्म हुआ था। श्री शिव उसी समय श्री शिव इन तीन शूल को त्रिशूल रूप में धारण करते हैं। भगवान् शिव धनुष भी धारण करते हैं जिसका नाम पिनाक था जिसका आविष्कार स्वंय श्री शिव ने किया था। पौराणिक मान्यता के अनुसार श्री शिव अस्त्र शस्त्र के परम ज्ञाता थे और हर प्रकार के अस्त्र शस्त्र चलाने में निपुणता हासिल थी। मान्यता है की त्रिशूल तीन देवों का भी प्रतीक है ब्रह्म, विष्णु और महेश। देवी शक्ति त्रिसूल से असुर शक्तियों का विनाश करती हैं इसलिए त्रिशूल को माता लक्ष्मी, माता पार्वती और माता सरस्वती जी के प्रतीकात्मक शक्ति के रूप में भी देखा जाता है।
श्री शिव और डमरू : श्रष्टि के जन्म पर सरस्वती जी ने वीणा बजाकर ध्वनि को पैदा किया। श्री शिव ने आनंदित होकर १४ बार डमरू बजाय और सुर, लय, व्याकरण और ताल का आविष्कार किया। तभी से सभी सुरों का जन्म हुआ बताया जाता है और यही कारन है की श्री शिव जी हाथों में डमरू धारण किये हुए दिखता है। डमरू को ब्रह्म का प्रतीक भी माना जाता है। हिन्दू धर्म का नृत्य और गायन से गहरा सम्बद्ध रहा है। श्रष्टि की रचना भी ध्वनि और दैवीय प्रकाश से हुयी है। ध्वनि के महत्त्व को शिव जी के डमरू से समझा जा सकता है।
आपको ये पोस्ट पसंद आ सकती हैं
- Shambhu Sharane Padi Mangu Ghadi Aie Ghade Meaning Lyrics
- तेरा नाम लूं भोले भजन लिरिक्स Tera Nam Lu Bhole Lyrics
- भोले ऐसी कृपा बरसा दे लिरिक्स Bhole Aisi Kripa Barsa Lyrics
- चौपड़ खेलें भोले बाबा गजब भयो रे लिरिक्स Chopad Khele Bhole Lyrics
- मुझ को नंदी बना ले अपना संगी बना ले लिरिक्स Mujhko Nandi Bana Le Lyrics
- नीलकंठ तेरो नाम भजन लिरिक्स Neelkanth Tero Nam Lyrics