भोले की कावड़ शिव भजन लिरिक्स Bhole Ki Kavad Shiv Bhajan Lyrics

भोले की कावड़ शिव भजन लिरिक्स Bhole Ki Kavad Shiv Bhajan Lyrics Hindi

 
भोले की कावड़ शिव भजन लिरिक्स Bhole Ki Kavad Shiv Bhajan Lyrics

बम बम बोल के चलो रे दिल खोल के
भोले की कावड़ ल्यावे हरिद्वार से बुलावे भोला प्यार से

मस्त महीना सावन भोले का आया
भोले ने भगतो को दर पे भुलाया

ये भंगियाँ घुटाके के मूड बना के
भोले की कावड़ ल्यावे हरिद्वार से बुलावे भोला प्यार से

हर कावड़ियाँ बम बम बोल रहा से
भोले की मस्ती में दिल डोल रहा से
ख़ुशी की वेला से भगतो का रेला से
भोले की कावड़ ल्यावे हरिद्वार से बुलावे भोला प्यार से

सुमित कवर भी हो गया भोले का दीवाना
उमा शंकर गा गया जो गाना झूमे रहो
बम बोला भांग का खा गोला
भोले की कावड़ ल्यावे हरिद्वार से बुलावे भोला प्यार से 
 

श्री शिव को देवो के देव महादेव कहा जाता है। श्री शिव भोलेनाथ भी हैं जो बड़ी ही सहजता से अपने भक्तों को प्रशन्न होकर आशीर्वाद देते हैं। श्री शिव का स्मरण करते ही एक छवि बनती है अलमस्त, अपने हाथ में डमरू, त्रिशूल और गले में नाग देवता और मस्तक पर चन्द्रमा दिखाई देता है। श्री शिव जी के पास त्रिशूल, डमरू,गले में नाग और मस्तक पर चन्द्रमा कहा से आये, आइये जानते हैं।

श्री शिव और त्रिशूल : श्रष्टि की उत्पत्ति के समय रज तम और सत का भी जन्म हुआ था। श्री शिव उसी समय श्री शिव इन तीन शूल को त्रिशूल रूप में धारण करते हैं। भगवान् शिव धनुष भी धारण करते हैं जिसका नाम पिनाक था जिसका आविष्कार स्वंय श्री शिव ने किया था। पौराणिक मान्यता के अनुसार श्री शिव अस्त्र शस्त्र के परम ज्ञाता थे और हर प्रकार के अस्त्र शस्त्र चलाने में निपुणता हासिल थी। मान्यता है की त्रिशूल तीन देवों का भी प्रतीक है ब्रह्म, विष्णु और महेश। देवी शक्ति त्रिसूल से असुर शक्तियों का विनाश करती हैं इसलिए त्रिशूल को माता लक्ष्मी, माता पार्वती और माता सरस्वती जी के प्रतीकात्मक शक्ति के रूप में भी देखा जाता है।

श्री शिव और डमरू : श्रष्टि के जन्म पर सरस्वती जी ने वीणा बजाकर ध्वनि को पैदा किया। श्री शिव ने आनंदित होकर १४ बार डमरू बजाय और सुर, लय, व्याकरण और ताल का आविष्कार किया। तभी से सभी सुरों का जन्म हुआ बताया जाता है और यही कारन है की श्री शिव जी हाथों में डमरू धारण किये हुए दिखता है। डमरू को ब्रह्म का प्रतीक भी माना जाता है। हिन्दू धर्म का नृत्य और गायन से गहरा सम्बद्ध रहा है। श्रष्टि की रचना भी ध्वनि और दैवीय प्रकाश से हुयी है। ध्वनि के महत्त्व को शिव जी के डमरू से समझा जा सकता है।

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