निर्मोहिया सों नेहा लगाय हाय मैं लुटि गई

निर्मोहिया सों नेहा लगाय हाय मैं लुटि गई री


निर्मोहिया सों नेह लगाय, हाय! मैं लुटि गई री।
इक दिन अलि इकली जात रही,
बेचन बरसाने गाम दही,
मग निपट लकुटि लिए आ, हाय! मैं लुटि गई री।

बोल्यो, 'अलि लखु यह कुंज गली,
हौं हूँ इकलो, तू हूँ इकली,
मिलि इक-इक द्वै है जाय', हाय! मैं लुटि गई री।

हौं डाँटि कही, 'लंपट चल हट,
आवत पति पाछेहि लै लठ झट,
दउँ हेला, अबहिं फल पाय', हाय! मैं लुटि गई री।

बोल्यो, 'अब तोहिं अपनी कर ली,
पिटवाय चहै अपनाय अली!
सुख दैहौं तोहिं लठ खाय', हाय! मैं लुटि गई री।

यह सुनि गइ तन-मन-प्राण हार,
हौं तेहि निहार, सो मोहिं निहार,
गिरी भू पै 'कृपालु' कहि 'हाय', हाय! मैं लुटि गई री।।


भावार्थ- एक सखी कहती है-अरी सखि! निर्मोही श्यामसुन्दर से प्यार करके मैं तो बेमौत मर गयी। एक दिन मैं अकेली बरसाने गाँव दही बेचने जा रही थी कि अचानक वह मार्ग में लठिया लिये आ गया और बोला-अरी सखि! देख कुंज गली कितनी मनोहर है। मैं भी अकेला हूँ, तू भी अकेली है और यह तो तू जानती ही होगी कि एक-एक मिलकर दो हो जाता है। तब मैंने डाँट कर कहा-अरे लम्पट! चल दूर हट, मेरे पति लठ्ठ लेकर मेरे पीछे ही आ रहे हैं, अभी पुकारूँगी, और तुझे मेरे अकेलेपन का अच्छा फल मिल जायगा। इस पर उसने कहा-अरी सखि! अब तो तुझको मैंने अपनी बना ली, चाहे मुझे पिटवाये, चाहे अपनाये। अगर मुझे पिटवाने से ही सुख मिलता है तो मैं अवश्य लठ्ठ खाऊँगा। यह सुन कर मैंने अपना सर्वस्व न्यौछावर कर दिया। प्रेम-विभोर होकर मैंने उसकी ओर देखा और उसने भी मेरी ओर देखा। 'कृपालु' कहते हैं कि तत्पश्चात् सखी पृथ्वी पर मूर्च्छित होकर हाय! कह कर गिर पड़ी।
 
एक सखी अपनी मित्र से कहती है कि श्यामसुंदर के प्रेम में पड़कर वह बेमौत मर गई। एक दिन जब वह अकेली बरसाने दही बेचने जा रही थी, तब मार्ग में लठ लिए श्यामसुंदर आ गए और प्रेम भरे शब्दों में उसे रिझाने लगे। सखी ने कठोर शब्दों में उसे डाँटा और अपने पति के पास होने की बात कही, परंतु श्यामसुंदर ने प्रेमपूर्वक उत्तर दिया कि अब वह उसकी हो चुकी है, चाहे उसे पिटवाए या अपनाए। उसके इन प्रेमपूर्ण वचनों से सखी स्वयं को रोक न सकी और अपना सर्वस्व अर्पित कर दिया। दोनों ने प्रेमभरी दृष्टि से एक-दूसरे को देखा, और अंततः प्रेम-विह्वल होकर सखी मूर्छित होकर धरती पर गिर पड़ी।

ऐसे ही अन्य भजनों के लिए आप होम पेज / गायक कलाकार के अनुसार भजनों को ढूंढें.
 

पसंदीदा गायकों के भजन खोजने के लिए यहाँ क्लिक करें।

 
पुस्तक : प्रेम रस मदिरा, प्रकीर्ण माधुरी
पद संख्या : 12
पृष्ठ संख्या : 761
सर्वाधिकार सुरक्षित © जगद्गुरु कृपालु परिषत्
स्वर सुश्री अखिलेश्वरी देवी
कवि जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज
आपको ये पोस्ट पसंद आ सकती हैं
Saroj Jangir Author Author - Saroj Jangir

इस ब्लॉग पर आप पायेंगे मधुर और सुन्दर भजनों का संग्रह । इस ब्लॉग का उद्देश्य आपको सुन्दर भजनों के बोल उपलब्ध करवाना है। आप इस ब्लॉग पर अपने पसंद के गायक और भजन केटेगरी के भजन खोज सकते हैं....अधिक पढ़ें

Next Post Previous Post