श्री गणेश चालीसा महत्त्व अर्थ फायदे

श्री गणेश चालीसा

 
श्री गणेश चालीसा लिरिक्स हिंदी में गणेश चालीसा Ganesh Chalisa Lyrics

श्री गणेश चालीसा
।। दोहा ।।
जय गणपति सदगुण सदन, कविवर बदन कृपाल ।
विघ्न हरण मंगल करण, जय जय गिरिजालाल ।।
।। चौपाई ।।
जय जय जय गणपति गणराजू । मंगल भरण करण शुभः काजू ।।
जै गजबदन सदन सुखदाता । विश्व विनायका बुद्धि विधाता ।।
वक्र तुण्ड शुची शुण्ड सुहावना । तिलक त्रिपुण्ड भाल मन भावन ।।
राजत मणि मुक्तन उर माला । स्वर्ण मुकुट शिर नयन विशाला ।।
पुस्तक पाणि कुठार त्रिशूलं । मोदक भोग सुगन्धित फूलं ।।
सुन्दर पीताम्बर तन साजित । चरण पादुका मुनि मन राजित ।।
धनि शिव सुवन षडानन भ्राता । गौरी लालन विश्व-विख्याता ।।
ऋद्धि-सिद्धि तव चंवर सुधारे । मुषक वाहन सोहत द्वारे ।।
कहौ जन्म शुभ कथा तुम्हारी । अति शुची पावन मंगलकारी ।।
एक समय गिरिराज कुमारी । पुत्र हेतु तप कीन्हा भारी ।।
भयो यज्ञ जब पूर्ण अनूपा । तब पहुंच्यो तुम धरी द्विज रूपा ।।
अतिथि जानी के गौरी सुखारी । बहुविधि सेवा करी तुम्हारी ।।
अति प्रसन्न हवै तुम वर दीन्हा । मातु पुत्र हित जो तप कीन्हा ।।
मिलहि पुत्र तुहि, बुद्धि विशाला । बिना गर्भ धारण यहि काला ।।
गणनायक गुण ज्ञान निधाना । पूजित प्रथम रूप भगवाना ।।
अस कही अन्तर्धान रूप हवै । पालना पर बालक स्वरूप हवै ।।
बनि शिशु रुदन जबहिं तुम ठाना । लखि मुख सुख नहिं गौरी समाना ।।
सकल मगन, सुखमंगल गावहिं । नाभ ते सुरन, सुमन वर्षावहिं ।।
शम्भु, उमा, बहुदान लुटावहिं । सुर मुनिजन, सुत देखन आवहिं ।।
लखि अति आनन्द मंगल साजा । देखन भी आये शनि राजा ।।
निज अवगुण गुनि शनि मन माहीं । बालक, देखन चाहत नाहीं ।।
गिरिजा कछु मन भेद बढायो । उत्सव मोर, न शनि तुही भायो ।।
कहत लगे शनि, मन सकुचाई । का करिहौ, शिशु मोहि दिखाई ।।
नहिं विश्वास, उमा उर भयऊ । शनि सों बालक देखन कहयऊ ।।
पदतहिं शनि दृग कोण प्रकाशा । बालक सिर उड़ि गयो अकाशा ।।
गिरिजा गिरी विकल हवै धरणी । सो दुःख दशा गयो नहीं वरणी ।।
हाहाकार मच्यौ कैलाशा । शनि कीन्हों लखि सुत को नाशा ।।
तुरत गरुड़ चढ़ि विष्णु सिधायो । काटी चक्र सो गज सिर लाये ।।
बालक के धड़ ऊपर धारयो । प्राण मन्त्र पढ़ि शंकर डारयो ।।
नाम गणेश शम्भु तब कीन्हे । प्रथम पूज्य बुद्धि निधि, वर दीन्हे ।।
बुद्धि परीक्षा जब शिव कीन्हा । पृथ्वी कर प्रदक्षिणा लीन्हा ।।
चले षडानन, भरमि भुलाई । रचे बैठ तुम बुद्धि उपाई ।।
चरण मातु-पितु के धर लीन्हें । तिनके सात प्रदक्षिण कीन्हें ।।
धनि गणेश कही शिव हिये हरषे । नभ ते सुरन सुमन बहु बरसे ।।
तुम्हरी महिमा बुद्धि बड़ाई । शेष सहसमुख सके न गाई ।।
मैं मतिहीन मलीन दुखारी । करहूं कौन विधि विनय तुम्हारी ।।
भजत रामसुन्दर प्रभुदासा । जग प्रयाग, ककरा, दुर्वासा ।।
अब प्रभु दया दीना पर कीजै । अपनी शक्ति भक्ति कुछ दीजै ।।
।। दोहा ।।
श्री गणेशा यह चालीसा, पाठ करै कर ध्यान ।
नित नव मंगल गृह बसै, लहे जगत सन्मान ।।
सम्बन्ध अपने सहस्त्र दश, ऋषि पंचमी दिनेश ।
पूरण चालीसा भयो, मंगल मूर्ती गणेश ।।
 


Ganesh Chalisa By Suresh Wadkar [Full Song] I Ganesh Chalisa, Aarti & Bhajan, Chalisa Sangrah
 

श्री गणेश जी प्रमुख देवताओं में से एक हैं। वे ज्ञान, बुद्धि, और समृद्धि के देवता हैं। गणेश चतुर्थी एक हिंदू त्योहार है जो श्री गणेश जी के जन्मोत्सव के रूप में मनाया जाता है। यह त्योहार भारत, नेपाल, और अन्य हिंदू बहुल देशों में मनाया जाता है। गणेश चतुर्थी भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि को मनाई जाती है। इस दिन, लोग श्री गणेश जी की मूर्ति स्थापित करते हैं और उनकी पूजा-अर्चना करते हैं। गणेश चतुर्थी का त्योहार नौ दिनों तक चलता है, और नौवें दिन, गणेश जी की मूर्ति का विसर्जन किया जाता है।

॥दोहा॥
जय गणपति सदगुण सदन, कविवर बदन कृपाल।
विघ्न हरण मंगल करण, जय जय गिरिजालाल॥


हिंदी मीनिंग : हे सद्गुणों के स्वामी (सदन) श्री गनेश जी, आपकी जय हो, सभी कविगण आपको अत्यंत ही कृपालु बताते हैं। आप सभी कष्टों को हरने वाले हैं और सभी कार्य मंगल करने वाले हैं। आप कष्ट को दूर करके मंगल करने वाले हैं। 

॥चौपाई॥
जय जय जय गणपति गणराजू। मंगल भरण करण शुभः काजू॥
जै गजबदन सदन सुखदाता। विश्व विनायका बुद्धि विधाता॥
वक्र तुण्ड शुची शुण्ड सुहावना। तिलक त्रिपुण्ड भाल मन भावन॥
राजत मणि मुक्तन उर माला। स्वर्ण मुकुट शिर नयन विशाला॥
पुस्तक पाणि कुठार त्रिशूलं। मोदक भोग सुगन्धित फूलं॥
सुन्दर पीताम्बर तन साजित। चरण पादुका मुनि मन राजित॥
धनि शिव सुवन षडानन भ्राता। गौरी लालन विश्व-विख्याता॥
ऋद्धि-सिद्धि तव चंवर सुधारे। मुषक वाहन सोहत द्वारे॥


हिंदी अर्थ : आप देवताओं के स्वामी हैं, प्रमुख हैं। आप ही सभी मंगल करने वाले हैं। समस्त शुभ कार्य आप ही करते हैं। हे गणेश जी आप समस्त दुखों के दाता हैं। आप समस्त विश्व के विनायक और बुद्धि के प्रदाता हैं। आपकी सूंड कुछ वक्र आकर की है, मुड़ी हुई है। आपकी नाक बहुत सुन्दर है। आपके मस्तक पर तीन रेखाएं (त्रिपुंड) शोभित हैं जो मन को लुभाने वाली हैं। आपकी छाती पर मोतियों और मणियों की माला सुशोभित हो रही है। आपके मस्तक पर सोने का मुकुटसुशोभित है और आपके बड़े बड़े नयन हैं। आपके हाथों में पुस्तक, कुठार (अस्त्र) हैं जो बहुत अच्छे लग रहे हैं। आपको मोदक का भोग लगाया जाता है और साथ ही सुगंद्धित फूलों को आपके भेंट में अर्पित किया जाता है। सुन्दर पीले रंग के वस्त्र आपके तन पर शोभित हैं। ऋषि मुनि, ज्ञानी भी आपकी चरण पादुकाओं को देखकर प्रसन्न हो जाते हैं, आपकी चरण पादुकाएं अत्यंत सुन्दर हैं। हे गणेश जी आप, भगवान् शिव के पुत्र हैं और षडानन (कार्तिकेय) के भाई हैं, आप महान हैं। हे माता पार्वती के पुत्र, श्री गणेश जी, आपकी ख्याति समस्त जगत में व्याप्त है। रिद्धि सिद्धि आपके चंवर झुलाते हैं (आपकी सेवा में लीन रहती हैं) आपका वाहन चूहा (मूषक) है जो आप पर सोहता है।

कहौ जन्म शुभ कथा तुम्हारी। अति शुची पावन मंगलकारी॥
एक समय गिरिराज कुमारी। पुत्र हेतु तप कीन्हा भारी॥
भयो यज्ञ जब पूर्ण अनूपा। तब पहुंच्यो तुम धरी द्विज रूपा॥
अतिथि जानी के गौरी सुखारी। बहुविधि सेवा करी तुम्हारी॥
अति प्रसन्न हवै तुम वर दीन्हा। मातु पुत्र हित जो तप कीन्हा॥
मिलहि पुत्र तुहि, बुद्धि विशाला। बिना गर्भ धारण यहि काला॥
गणनायक गुण ज्ञान निधाना। पूजित प्रथम रूप भगवाना॥
अस कही अन्तर्धान रूप हवै। पालना पर बालक स्वरूप हवै॥


हिंदी अर्थ : हे ईश्वर हम सभी आपकी जन्म कथा को कहते हैं जो बहुत शुभ है। आपकी जन्म कथा से सबंधित है की एक समय की बात है की गिरिराज कुमारी (माता पार्वती) ने पुत्र प्राप्ति के लिए कठोर तप किया। जब माता पार्वती जी का तप पूर्ण हो गया तो आप वहां पर ब्राह्मण रूप धारण करके पहुंचे और माता पार्वती जी ने आपको अतिथि समझ कर आपकी बहुत सेवा की, अनेकों प्रकार से आपकी सेवा की और माता पार्वती जी की सेवा से प्रसन्न होकर आपने (गणेश जी ने ) उन्हें वर दिया की आपकी तपस्या के कारण आपको अत्यंत ही बुद्धिमान बालक की प्राप्ति होती और यह बालक आपको बगैर गर्भ धारण किये मिलने वाला है। आपको प्राप्त होने वाला पुत्र गणनायक होगा, सभी देवताओं का प्रमुख होगा और ज्ञानी होगा, गुणों का भण्डार होगा जिसे सबसे पहले पूजा जाएगा (इसीलिए भगवान् श्री गनेश जी की पूजा सर्वप्रथम की जाती है)। इतना कहने के उपरान्त आप (श्री गनेश जी) अंतर्ध्यान हो गए और पालने में बालक के रूप में अवतरित हो गए।

बनि शिशु रुदन जबहिं तुम ठाना। लखि मुख सुख नहिं गौरी समाना॥
सकल मगन, सुखमंगल गावहिं। नाभ ते सुरन, सुमन वर्षावहिं॥
शम्भु, उमा, बहुदान लुटावहिं। सुर मुनिजन, सुत देखन आवहिं॥
लखि अति आनन्द मंगल साजा। देखन भी आये शनि राजा॥
निज अवगुण गुनि शनि मन माहीं। बालक, देखन चाहत नाहीं॥


हिंदी अर्थ : आपने उठाते ही रोना शुरू कर दिया और माता पार्वती एक टक आपको देखती रहीं (आपके रूप को निहारती रहीं) और आपकी सूरत माता पार्वती जी से मेल नहीं खा रही है (क्योंकि आपने गर्भ धारण नहीं किया था) । आपके जन्म की अवसर पर सभी लोगों ने खुशियाँ मनाई और नाचने लगे। गगन से (आकाश से) फूलों की बरसात की गयी। सभी देवता गण आकाश से फूलों की बरसात करने लगे थे। शिव और शंकर जी ने सभी लोगों को खूब दान किया है। सभी देवता गण इस दिव्य दर्शन के लिए आयें हैं और स्वंय शनिदेव भी आपके दर्शन करने आये हैं, लेकिन वे मन ही मन थोड़े शंकित थे। 

गिरिजा कछु मन भेद बढायो। उत्सव मोर, न शनि तुही भायो॥
कहत लगे शनि, मन सकुचाई। का करिहौ, शिशु मोहि दिखाई॥
नहिं विश्वास, उमा उर भयऊ। शनि सों बालक देखन कहयऊ॥
पदतहिं शनि दृग कोण प्रकाशा। बालक सिर उड़ि गयो अकाशा॥


हिंदी अर्थ : मूलतः श्री शनि देव जी को श्राप मिला था की वे जिस भी बालक को देखेंगे उस बालक का सर धड से अलग हो जाएगा और आकाश में उड़ जाएगा। शनिदेव के बालक गणेश को नजरें चुरा कर देखने से माता पार्वती जी नाराज हो गई और कहने लगी की क्या आप (शनिदेव) बालक के जन्म के उत्सव से प्रसन्न नहीं हैं। बालक गणेश को देखने के विषय पर शनिदेव मन ही मन शंका करने लगे और बोले की मुझे शिशु को दिखाकर आप क्या करेंगे ? इस उमा जी को शनि देव के कथन पर विश्वास नहीं होता है और उन्होंने शनि देव को कहा की आप बालक को अवश्य ही देखें। श्री शनिदेव ने जब बालक को देखा तो उनका सर धड़ से अलग होकर आकाश में उड़ गया। 
 
गिरिजा गिरी विकल हवै धरणी। सो दुःख दशा गयो नहीं वरणी॥
हाहाकार मच्यौ कैलाशा। शनि कीन्हों लखि सुत को नाशा॥
तुरत गरुड़ चढ़ि विष्णु सिधायो। काटी चक्र सो गज सिर लाये॥
बालक के धड़ ऊपर धारयो। प्राण मन्त्र पढ़ि शंकर डारयो॥
नाम गणेश शम्भु तब कीन्हे। प्रथम पूज्य बुद्धि निधि, वर दीन्हे॥


हिंदी अर्थ : बालक गणेश जी को सर से विहीन देख कर माता गिरिजा बहुत ही व्याकुल हो गई और वे विलाप करती हुई धरती पर जा गिरी। उनके दुःख का वर्णन सम्भव नहीं है। सपूर्ण कैलाश में यह हाहाकार मच गया की शनि ने शिव के पुत्र को समाप्त कर दिया है। श्री विष्णु जी गरुड़ पर सवार होकर आते हैं और हाथी के बच्चे का सर सुदर्शन चक्र से काट कर लाते हैं और उसे बालक गणेश जी के धड़ पर पुनः लगा देते हैं और श्री शिव जी ने प्राण मन्त्र पढ़कर उसमे प्राणों का संचार किया। इसी समय भगवान् श्री शिव जी ने बालक का नाम गणेश रखा और उन्हें यह वरदान दिया की सभी देवों में सबसे पहले गणेश जी की पूजा की जायेगी और इसके साथ ही उन्हें सम्पन्नता और बुद्धि का भी वरदान दिया। 
 
बुद्धि परीक्षा जब शिव कीन्हा। पृथ्वी कर प्रदक्षिणा लीन्हा॥
चले षडानन, भरमि भुलाई। रचे बैठ तुम बुद्धि उपाई॥
चरण मातु-पितु के धर लीन्हें। तिनके सात प्रदक्षिण कीन्हें॥
धनि गणेश कही शिव हिये हरषे। नभ ते सुरन सुमन बहु बरसे॥


हिंदी अर्थ : शिव जी ने गणेश जी और कार्तिकेय की बुद्धि की परीक्षा लेने पर उन्हें कहा की इस पृथ्वी (जगत ) के जो भी पहले आएगा वह विजेता होगा। कार्तिकेय ने बगैर सोचे समझे पूरी पृथ्वी का चक्कर लगाने को निकल पड़े जबकि श्री गणेश जी ने अपने पिता के चरण छू कर उनके ही सात चक्कर लगाए और उन्हें ही सम्पूर्ण जगत माना। गणेश जी की इस बुद्धिमता के कारण शिव जी बहुत ही हर्षित हुए और सभी देव गण ने आसमान से फूलों की बरसात की।

तुम्हरी महिमा बुद्धि बड़ाई। शेष सहसमुख सके न गाई॥
मैं मतिहीन मलीन दुखारी। करहूं कौन विधि विनय तुम्हारी॥
भजत रामसुन्दर प्रभुदासा। जग प्रयाग, ककरा, दुर्वासा॥
अब प्रभु दया दीना पर कीजै। अपनी शक्ति भक्ति कुछ दीजै॥


हिंदी अर्थ : हे गणेश जी, आपके यश का वर्णन हजारों मुखों से भी नहीं किया जा सकता है, भाव है की आपके यश का वर्णन करना किसी के सामर्थ्य में नहीं है। हे प्रभु, मैं तो मुर्ख हूँ, मलिन हूँ, पापी हूँ मैं किस विधि से आपसे प्रार्थना करूँ, किस विधि से आपको मैं विनय करूँ ? हे ईश्वर, आपका दास रामसुंदर आपके नाम का सुमिरण करता है। इस जगत में ककरा गाँव में दुर्वाशा ऋषि प्रकट हुए हैं। हे ईश्वर अब आप मुझ पर दया करो और मुझे अपनी भक्ति देने की कृपा करें। 
 
॥दोहा॥
श्री गणेश यह चालीसा, पाठ करै कर ध्यान।
नित नव मंगल गृह बसै, लहे जगत सन्मान॥
सम्बन्ध अपने सहस्त्र दश, ऋषि पंचमी दिनेश।
पूरण चालीसा भयो, मंगल मूर्ती गणेश॥

हिंदी अर्थ : जो भी जन इस हनुमान चालीसा का पाठ करता है उसके जीवन में अत्यंत ही मंगल कार्य होते हैं। उनके घर परिवार में मंगल सदा निवास करता है और समाज में उसे मान सम्मान और प्रतिष्ठा मिलती है। सहस्त्र, हजारों संबंधों का निर्वाह ( निभाते हुए भी ) करते हुए भी ऋषि पंचमी, गणेश चतुर्थी से अगले दिन यानि भाद्रप्रद माह के शुक्ल पक्ष की पंचमी के दिन भगवान श्री गणेश की यह चालीसा पूर्ण हुई है

 

प्रथम पूज्य गणेश जी गणेश जी को प्रथम पूज्य भी कहा जाता है। इसके पीछे एक कहानी है। तो आइए जानते हैं कहानी एक बार सभी देवता अपने आप को श्रेष्ठ साबित करने की कोशिश कर रहे थे। और एक दूसरे से कह रहे थे कि मेरी पूजा पहले होनी चाहिए। सभी देवताओं में वाद विवाद हो रहा था कि किसकी पूजा सबसे पहले होनी चाहिए। सभी देवता अपने प्रश्न को लेकर ब्रह्मा जी के पास गए और उनसे कहा कि आप बताएं  
ब्रह्मदेव की सबसे पहले पूजा किसकी हो..?
इसका निर्णय करने से पहले ब्रह्मा जी ने एक प्रतियोगिता का आयोजन किया और उन्होंने कहा कि जो जो देवता पृथ्वी की सात प्रदक्षिणा करके सबसे पहले आएगा वही प्रथम पूज्य देव कहलाएगा। सभी देवता अपने वाहन पर विराजमान होकर पृथ्वी की प्रदक्षिणा करने लगे। गणेश जी का वाहन चूहा था। अब चूहे पर बैठकर पूरी पृथ्वी की सात प्रदक्षिणा करके सबसे पहले पहुंचना असंभव था। गणेश जी बुद्धिमान थे और उन्होंने अपने माता पिता शिवजी और पार्वती जी की सात प्रदक्षिणा कर ली और वही विराजमान हो गए। जब सभी देवता पृथ्वी की सात प्रदक्षिणा करके वहां पहुंचे तो गणेश जी पहले से ही वहां विराजमान थे। जब उनसे पूछा गया कि आपने पृथ्वी की प्रदक्षिणा क्यों नहीं की..? तो गणेश जी ने कहा मेरे लिए तो मेरे माता-पिता ही मेरी पृथ्वी है, मेरे माता-पिता ही मेरा ब्रह्मांड है, तो मैंने इन्हीं की प्रदक्षिणा कर ली। उनका जवाब सुनकर सभी आश्चर्यचकित हो गए और ब्रह्मदेव ने गणेश जी को ही प्रथम पूज्य देवता का वरदान दिया। इस प्रकार गणेश जी अपनी बुद्धिमानी के कारण प्रथम पूज्य देवता कहलाए। किसी भी शुभ कार्य में गणेश जी की पूजा सर्वप्रथम होती है। शादी में भी सर्वप्रथम गणेश जी को ही निमंत्रण पत्र भेजा जाता है। 

पुराणों में भी श्री गणेश जी के बारे में कहा गया है...
"चरण मात-पितु के धर लिन्हे,
तिनके सात प्रदक्षिणा किन्हे'
धनि गणेश कही शिव हिय हर्ष्यो,
नभ ते सुरण-सुमन बहु बरस्यो।"

श्री गणेश जी के लिए उनका पूरी दुनिया, ब्रह्मांड उनके माता-पिता ही हैं। जब गणेश जी ने शिव और पार्वती जी की सात प्रदक्षिणा कि तब पुष्पों की बरसात हुई और उन्हें प्रथम पूज्य देवता होने का गौरव प्राप्त हुआ।

गणेश चालीसा का पाठ करने का महत्व/फायदे Benefits of Ganesh Chalisa

  • गणेश जी का चालीसा का पाठ करने से घर में आर्थिक समृद्धि आती है।
  • गणेश चालीसा का पाठ करने से व्यक्ति बुद्धिमान होता है।
  • गणेश जी का चालीसा का पाठ करने से व्यक्ति में आत्मविश्वास की वृद्धि होती है, एकाग्रता बढ़ती है।
    व्यापार में वृद्धि होती है। 
  • घर में संपन्नता होती है। 
  • गणेश जी विघ्नहर्ता है, इसलिए इनका पाठ करने से सभी विघ्न दूर होते हैं और कार्य सफल होता है। गणेश जी बुध ग्रह के स्वामी हैं, इसलिए इनकी पूजा करने से विवाह में होने वाली बाधाएं दूर होती हैं।
  • गणेश जी की पूजा करने से घर में सुख, शांति और समृद्धि आती है।
  • गणेश जी का पाठ करने से घर में सकारात्मक ऊर्जा की वृद्धि होती है।
  • गणेश जी का पाठ करने से शत्रुओं का नाश होता है।  

गणेश जी के मंत्र Shri Ganesh Mantra

गणेश जी विघ्नहर्ता हैं। इसलिए गणेश जी की पूजा करने से सारी बाधाएं दूर होती है। गणेश जी के कुछ मंत्र हैं, जिनका पाठ करने से सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती है और कार्य बिना किसी बाधा के सफल होता है।आइये जानते हैं गणेश जी के मंत्र...
तांत्रिक गणेश मंत्र:
ॐ ग्लौम गौरी पुत्र, वक्रतुंड, गणपति गुरू गणेश।
ग्लौम गणपति, ऋदि्ध पति, सिदि्ध पति, मेरे कर दूर क्लेश।।

इस मंत्र का 108 बार जाप करना चाहिए। सुबह स्नान आदि से निवृत होकर भगवान शिव, माता पार्वती और गणेश जी की पूजा करने के पश्चात इस पाठ का जाप करना चाहिए। इस मंत्र का जाप करने से जीवन के सभी दुख, दर्द और समस्याएं दूर हो जाती है।
गणेश गायत्री मंत्र:
ॐ एकदन्ताय विद्महे वक्रतुंडाय
 धीमहि तन्नो बुदि्ध प्रचोदयात।।

गणेश जी के इस मंत्र का पाठ बुधवार के दिन किया जाना चाहिए। इसका पाठ बुधवार के दिन से शुरू करना चाहिए। इस मंत्र का जाप 108 बार करना चाहिए। इस मंत्र का जाप करने से भाग्य का उदय होता है। जीवन के हर क्षेत्र में सफलता की प्राप्ति होती है।
गणेश कुबेर मंत्र:
ॐ नमो गणपतये कुबेर येकद्रिको फट् स्वाहा।:

गणेश कुबेर मंत्र का जाप करने से व्यक्ति को आर्थिक कष्टों से मुक्ति मिलती हैं। घर में इसका नियमित पाठ करने से व्यक्ति को कर्ज से मुक्ति मिलती है और आमदनी बढ़ती है। घर में पर्याप्त धन की प्राप्ति होती है। सभी सुख सुविधाओं का विस्तार होता है।
Saroj Jangir Author Author - Saroj Jangir

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