Hindi Meaning Of "Bulla Ki Jana Main Koun" Lyrics Hindi
अलफ अल्ला नाल रता दिल मेरा, मैंनु ”बे“ दी खबर ना कोई
बे पढ़दियां मैंनु समझ ना आवे, लज्जत अलफ दी आई
अैन ते गैन नु समझ ना जाणा, गल अलफ समझाई
बुल्लिया कौल अलफ दे पूरे, जिहढ़े दिल दी करन सफाई।
बे पढ़दियां मैंनु समझ ना आवे, लज्जत अलफ दी आई
अैन ते गैन नु समझ ना जाणा, गल अलफ समझाई
बुल्लिया कौल अलफ दे पूरे, जिहढ़े दिल दी करन सफाई।
जो 'अ' से शुरू होता है, अलाह, मेरा दिल उसमे रम गया है। अब 'अ' के अलावा मुझे किसी भी दुसरे अक्षर से कुछ लेना देना नहीं है। 'अ' के आलावा 'ब' में मेरा मन नहीं लगता है। मुझे अन्य अक्षरों जैसे ब, स, द की कोई खबर नहीं है और नाही जब मैं अन्य अक्षर पढ़ता भी हूं तो वो मेरी समझ में आते हैं। बस ”अ“ से अल्लाह में ही लज्जत या स्वाद या आनन्द आता है। यह ”अ“ से अल्लाह ही मुझे समझाता है कि अन्य सारी वर्णमाला (या दुनियांदारी) में कुछ नहीं रखा है, बस 'अ' को समझने में ही फायदा है और किसी में कुछ नहीं रखा है । बुल्लेशाह कहते हैं ”अ“ से अल्लाह में ही सारे सद्-सत् वचन समायें हैं, जिन्हें वे लोग ही समझ सकते हैं, जो नित्य ही मन की सफाई करते रहते हैं, दिल की सफाई करो।
की जाणा मैं कौण वे बुल्लिया ....की जाणा मैं कोण
की जाणा मैं कौण वे बुल्लिया ....की जाणा मैं कोण
ना मैं मोमन विच मसीतां
ना मैं विच कुफ़र दीआं रीतां
ना मैं पाकां विच पलीतां
ना मैं पाकां विच पलीतां
ना मैं मूसा ना फरऔन
की जाणा मैं कौण वे बुल्लिया ....की जाणा मैं कोण
की जाणा मैं कौण वे बुल्लिया ....की जाणा मैं कोण
ना मैं मोमन विच मसीतां
ना मैं विच कुफ़र दीआं रीतां
ना मैं पाकां विच पलीतां
ना मैं पाकां विच पलीतां
ना मैं मूसा ना फरऔन
की जाणा मैं कौण वे बुल्लिया ....की जाणा मैं कोण
मोमन : मुस्लिम, मसीता-मस्जिद, कुफ़र दियां रीतां -विधर्मी गतिविधियां, पाका -शुद्ध, पालीता-अशुद्ध, मूसा/फरोंन -धार्मिक ज्ञाता
बुल्ले शाह.... मैं कौन हूँ मैं नहीं जानता हूँ, न तो मैं मुस्लिम हूँ और ना ही विधर्मी हूँ, ना मैं शुद्ध हूँ और नाही मैं अशुद्ध हूँ, मुझे नहीं पता मैं कौन हूँ।
बुल्हे नूं समझावण आइयां,भैणा ते भरजाइयाँ
आल नबी औलादि अली नूं,
तूं क्यों लीकां लाइयां
सैय्यद होके बल्लिया तू तां
फड़ियाँ पल्ला राइयां
जेह्ड़ा सानूं, सैयद आखे,
दोज़ख मिलण सज़ाइयां,
जो कोई सानूं राईं आखे
भिश्तीं पींघां पाइयां
की जाणा मैं कौण वे बुल्लिया ....की जाणा मैं कोण
बुल्ले को उसकी बहन और भाभियाँ समझने आती है और कहती है की तुम क्यों काफिर हो रहे हो ? हमारा कहना मान लो और उस मार्ग का अनुसरण छोड़ दो। तुम सैय्यद हो और तुमने राइयाँ का पल्ला पकड़ रखा है। बुल्लेशाह की जाति सैयद थी और उनके गुरु (इनायत शाह ) की जाति अराई थी। अराई जाती (सब्जी उगाने वाले लोग ) को निम्न समझा जाता था इसलिए बुल्ले शाह के घर परिवार और कुल के लोग इससे नाराज थे की बुल्ले शाह उच्च जाती के होते हुए भी निम्न जाती के व्यक्ति के संपर्क में थे। सभी लोग मिलकर बुल्ले शाह को समझाते हुए कहते हैं की तुम तो नबी की औलाद हो, तुम क्यों लोक निंदा का पात्र बन रहे हो ? तुम ऐसी लीकां पाइयाँ (काम करना ) . इस पर बुल्ले शाह कहते हैं की जो भी हमें सैय्यद कहता है वह दोजख (नरक ) का भागी होगा और वह बहिश्त में झूला (पींगा पाइया ) झूलेगा।
ना मैं विच कुफ़र दीआं रीतां
ना मैं पाकां विच पलीतां
ना मैं मूसा ना फिरोंन (फरऔन )
की जाणा मैं कौण वे बुल्लिया ....की जाणा मैं कोण
की जाणा मैं कौण वे बुल्लिया ....की जाणा मैं कोण
ना मैं पाकी विच पलीती
न मैं शादी न गमनाकी,
न मैं शादी न गमनाकी
न मैं विच पलीती पाकी
न मैं आबी न मैं खाकी,
न मैं आबी न मैं खाकी,
न मैं आतिश न मैं पौण
की जाणा मैं कौण
की जाणा मैं कौण
वे बुल्लिया ....
की जाणा मैं कोण
ना तो मैं शुद्ध रूप में हूँ और ना ही अपवित्र ही ना मैं शादी (उत्सव की ख़ुशी ) और ना मैं किसी गम /दुःख में शरीक हूँ। ना तो मैं पानी हूँ (आबी ) और ना ही मैं खाकी (जमीन ) हूँ। मैं ना तो आतिश (आग ) हूँ और नाहीं मैं हवा (पौण -पवन ) हूँ। मुझे क्या पता की मैं कौन हूँ।
नक्क विच नथली
कन विच डंडियां,
मत्थे तिलक लगावण दे,
कंजरी बनेया मेरी जात (इज्जत) ना घटदी
नच के यार मनावण दे
की जाणा मैं कौण वे बुल्लिया ....की जाणा मैं कोण
मुझे अपने मुर्शिद को मनाने के लिए नाक मैं नथ (नथली ) और कानों में डंडियां (कड़े )-फ़कीर बनना - पहन कर माथे पर तिलक लगाकर नाच नाच कर मेरे मुर्शिद (यार -रब्ब ) को मनाने दो और अगर मैं ऐसा करता हूँ तो मैं कंजरी (वेश्या ) बन कर, नाच नाच कर अपने यार को मनाऊंगी।
ना मैं पाकी विच पलीती
न मैं शादी न गमनाकी,
न मैं शादी न गमनाकी
न मैं विच पलीती पाकी
न मैं आबी न मैं खाकी,
न मैं आबी न मैं खाकी,
न मैं आतिश न मैं पौण
की जाणा मैं कौण
की जाणा मैं कौण
वे बुल्लिया ....
की जाणा मैं कोण
न मैं भेद मजहब दा पाया
न मैं आदम हव्वा दा जाया
न मैं अपना नाम धराया
न मैं अपना नाम धराया
न विच बैठण न विच बवण
बुल्ला की जाना मैं कौन
बुल्ला की जाना मैं कौन
मुझे किसी भी मजहब के गूढ़ रहस्य का पता नहीं है, मैंने इसका भेद नहीं जाना है और ना ही मैं कोई आदम और हव्वा हूँ (प्रथम संतान ) ना मैं स्थायी रूप से बैठने में शरीक हूँ और ना ही चलने (बवन ) में ही। मुझे क्या पता मैं कौन हूँ।
रब रब करदे बुढडे हो गए
मुल्ला पण्डत सारे
रब दा खोज खुरा नी लब्बिया
कर कर तरले हारे
बुल्ले शाह रब ओनु मिलदा,
जेडा अपने तनमन (नफस) नूं मारे
की जाणा मैं कौण वे बुल्लिया ....की जाणा मैं कोण
खुदा /ईश्वर को याद करते /सुमिरन करते हुए मुल्ला और पंडित बूढ़े हो गए हैं, लेकिन रब्ब के पद चिन्ह तक का पता नहीं लगा पाए हैं। बुल्ले शाह रब्ब उसी को मिलता है जिसने अपने तन मन को मार दिया है। अहंकार और शरीर का नाश करने वाले को ही खुदा मिलता है।
अव्वल आखर आप नू जाणां,
न कोई दूजा होर पछाणां
मैंथों होर न कोई स्याना,
मैंथों होर न कोई स्याना,
बुल्ला शौह खड़ा है कौन
बुल्ला की जाना मैं कौन
बुल्ला की जाना मैं कौन
की जाणा मैं कौण वे बुल्लिया ....की जाणा मैं कोण
आखिरकार जाना तो खुद को है, इसमें दूसरा कोई क्या करेगा, पहचानो की कौन खड़ा है।
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