हरि संगति सीतल भया मिटी मोह की ताप मीनिंग
हरि संगति सीतल भया, मिटी मोह की ताप।
निस बाँसुरी सुख निधि लह्या, जब अंतरि प्रकट्या आप।।
Hari Sangati Seetal Bhaya, Mitee Moh Kee Taap.
Nis Baansuree Sukh Nidhi Lahya, Jab Antari Prakatya Aap.
दोहे के शब्दार्थ :
ताप - जलन, सुखनिध्य सुख की निधि, अंतरि = हृदय में। शीतल-शांत, ठहराव और सांसारिक कार्यों में भटकाव का समाप्त हो जाना। मिटी-समाप्त हो जाना। निस बासुरी- रात और दिन। अंतरि-हृदय में, चित्त में, प्रकट्या-प्रकट होना, दर्शन देना। आप-ईश्वर।
दोहे का हिंदी अर्थ /भावार्थ कबीर दोहे का हिंदी अर्थ
जब हरी संगती का सुख मिला तो तन और मन शीतल हो गया, मोह और माया जनित ताप, संताप और जलन मिट गयी। रात और दिन हरी के सानिध्य का सुख प्राप्त हो रहा है। जब अंदर, आत्मा में, हरी का दर्शन हुआ तो सभी पीड़ाएँ स्वतः ही समाप्त हो गयीं। भाव है की जब अहम नष्ट होता है तो ईश्वर का आभाष स्वंय के अंदर ही होने लगता है, बाहर की यात्रा समाप्त हो जाती है। मंदिर मस्जिद और तीर्थ कर्मकांडों में ईश्वर को ढूंढने की जुगत समाप्त हो जाती है और घर बैठे ही स्वंय के विश्वास और आत्मा में हरी के दर्शन होने लगते हैं। हरी के सानिध्य से प्राप्त होने वाला सुख ऐसा है जिससे माया और मोह जनित सभी संताप दूर हो जाते हैं और कभी समाप्त ना होने वाली शांति की प्राप्ति होती है।