झूला झूलत राम पालने सोहैं, भूरि-भाग जननीजन जोहैं
तन मृदु मंजुल मे चकताई, झलकति बाल विभूषन झाँई
अधर – पानि – पद लोहित लोने, सर – सिंगार – भव सारस सोने
किलकत निरखि बिलोल खेलौना, मनहुँ विनोद लरत छबि छौना
रंजित – अंजन कंज – विलोचन, भ्रातज भाल तिलक गोरोचन
लस मसिबिंदु बदन – बिधुनीको, चितवत चित चकोर ‘तुलसी’ को
तन मृदु मंजुल मे चकताई, झलकति बाल विभूषन झाँई
अधर – पानि – पद लोहित लोने, सर – सिंगार – भव सारस सोने
किलकत निरखि बिलोल खेलौना, मनहुँ विनोद लरत छबि छौना
रंजित – अंजन कंज – विलोचन, भ्रातज भाल तिलक गोरोचन
लस मसिबिंदु बदन – बिधुनीको, चितवत चित चकोर ‘तुलसी’ को
Jhoola Jhoolat Raam Paalane Sohain, Bhoori-bhaag Jananeejan Johain
Tan Mrdu Manjul Me Chakataee, Jhalakati Baal Vibhooshan Jhaanee
Adhar – Paani – Pad Lohit Lone, Sar – Singaar – Bhav Saaras Sone
Kilakat Nirakhi Bilol Khelauna, Manahun Vinod Larat Chhabi Chhauna
Ranjit – Anjan Kanj – Vilochan, Bhraataj Bhaal Tilak Gorochan
Las Masibindu Badan – Bidhuneeko, Chitavat Chit Chakor ‘tulasee’ Ko
Shri Ram Bhajan by Alka Yagnik | Jhulat Ram Palne Sohe | Tulsidas Bhajan
jhoola jhoolat raam paalane sohain, bhoori-bhaag jananeejan johain
tan mrdu manjul me chakataee, jhalakati baal vibhooshan jhaanee
adhar – paani – pad lohit lone, sar – singaar – bhav saaras sone
kilakat nirakhi bilol khelauna, manahun vinod larat chhabi chhauna
ranjit – anjan kanj – vilochan, bhraataj bhaal tilak gorochan
las masibindu badan – bidhuneeko, chitavat chit chakor ‘tulasee’ ko
इस छंद में तुलसीदास जी भगवान राम के बाल स्वरूप का वर्णन कर रहे हैं। वे कहते हैं कि रामचंद्र जी पालने में झूला झूल रहे हैं और उनके इस दिव्य स्वरूप को देखकर माता कौशल्या के भाग्य की प्रशंसा हो रही है। उनके कोमल शरीर की सुंदरता और आभूषणों की झलक मन को मोह लेती है। उनके होठ, हाथ, और पैर लालिमा लिए हुए हैं, और उनका श्रृंगार ऐसा लगता है मानो संसार के सभी सौंदर्य उनके चरणों में समाहित हो गए हों। उनकी किलकारी और खेलते हुए स्वरूप को देखकर ऐसा प्रतीत होता है जैसे सौंदर्य स्वयं खेल रहा हो। उनके कमल जैसे नेत्र अंजन से सजाए गए हैं और माथे पर भाल तिलक के साथ उनका चेहरा चंद्रमा जैसा उज्ज्वल लग रहा है। उनके मुख पर बिंदी की शोभा ऐसी है मानो चकोर पक्षी चंद्रमा को निहार रहा हो। तुलसीदास जी इस दिव्य दृश्य को अपने हृदय में बसाने की कामना करते हैं।
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