दोहे का हिंदी मीनिंग: यहाँ पर कनक से अभिप्राय स्वर्ण और भांग से है और भाव है की भांग (धतूरा) के नशे से भी अधिक नशा माया का होता है। माया का नशा होता है जिससे व्यक्ति नशे का शिकार हो कर अपने हित और अहित पर विचार नहीं कर सकता है। यह व्यक्ति को बावरा कर देता है और जीव अपने मूल उद्देश्य हरी सुमिरण को बिसार देता है। माया भ्रम पैदा करती है जिससे जीव हरी सुमिरण से विमुख हो जाता है।
पहले अर्थ में 'कनक' सोना को दर्शाता है, जो एक चमकदार, मूल्यवान धातु होती है। दूसरे अर्थ में 'कनक' धतूरा को दर्शाता है, जो एक जहरीला और मादकता पैदा करने वाला फल है। यहां पर "कनक कनक ते सौ गुनी" का अर्थ है कि सोना धतूरे से अधिक मूल्यवान होता है, और इसका नशा भी धतूरे से कहीं अधिक होता है। यह माया का ही प्रभाव है। इस दोहे के अनुसार, 'कनक' दो अर्थों में प्रयोग होने से दर्शाया गया है -सोना और धतूरा। 'सोना' या धन का (माया ) नशा धतूरे से भी अधिक होता है जिससे व्यक्ति अभिमानी और घमंडी बन जाता है। इस दोहे का सन्देश है की व्यक्ति को माया के प्रति सचेत रहना चाहिए ताकि उसका घमंड न बढ़े और वह किसी विकृति में न पड़े।
यह दोहा एक गंभीर अर्थ प्रस्तुत करता है और यह सिखाता है कि हमें अपने सम्पत्ति और सफलता के साथ संतुष्ट रहना चाहिए और घमंड को दूर रखना चाहिए। इससे बिना आगे बढ़ें, हमारी विकास की प्रक्रिया ठहर सकती है और हम विनाश को प्राप्त होते हैं। इस दोहे में 'कनक' शब्द को दो अलग-अलग अर्थों में प्रयोग किया गया है, जिससे दोनों के बीच तुलना होती है। एक ओर 'कनक' धतूरा के लिए है, जिसे खाने पर नशा (उन्माद) होता है और व्यक्ति बौरा (पागल) हो जाता है। दूसरी ओर, 'कनक' सोने (धन) के लिए है, जिसको प्राप्त करके व्यक्ति कहीं अधिक पागल (विवेकहीन) बन जाता है। इस दोहा मे यमक अलंकार है ।
यमक अलंकार वह अलंकार है जिसमें किसी शब्द की आवृत्ति दो या दो से अधिक बार होती है, लेकिन प्रत्येक बार में उस शब्द का अर्थ अलग होता है। आपने दोहे में प्रयुक्त 'कनक' शब्द के दो अलग-अलग अर्थ दिए हैं, जो यमक अलंकार का उदाहरण हैं।
कनक : सोना
कनक : धतूरा या भांग
इस वाक्य का अर्थ है कि कनक (सोना या धन-संपत्ति) में, अर्थात सोने में, धतूरे से कहीं ज्यादा उन्माद होता है। धतूरा या भांग को खाने से जो मादकता या उन्माद होता है, उससे कहीं ज्यादा घमण्ड या उन्माद सोने को सिर्फ पाने से होता है।
यहां "कनक" शब्द सोने को संकेत करता है और "धतूरा" या "भांग" के माध्यम से उत्पन्न होने वाले उन्माद के अनुपात को बताता है। इस तरह से, वाक्य का अर्थ है कि सोने में उत्पन्न होने वाला उन्माद धतूरे या भांग के उत्पन्न होने वाले उन्माद से अधिक होता है।
"कनक-कनक ते सौगुनी मादकता अधिकाय यह खाए बौराइ नर, वा पाये बौराए।" यह पंक्तियां भारतीय संस्कृति के प्रसिद्ध रीति कवि बिहारी लाल द्वारा रचित हैं। उन्होंने अपनी कविताओं में प्रेम, प्राकृतिक सौंदर्य, और भक्ति के भावों को सुंदरता से बयां किया। बिहारी लाल का गीत संगीत, सुंदर अलंकार, और शब्दकोश का उपयोग उनके काव्य को अनूठा बनाता है। उनकी कविताएँ आज भी लोगों के दिलों में बसी हुई हैं और उन्हें एक महान कवि के रूप में स्मरण किया जाता है।
कनक कनक ते सौ गुनी मादकता अधिकार में कौन सी शब्द शक्ति है? यहाँ पर यमक अलंकार का उपयोग हुआ है क्योंकि "कनक" शब्द का उपयोग एक से अधिक हुआ है और दोनों अलग-अलग अर्थ है। एक कनक का अर्थ स्वर्ण(सोना) और दूसरे कनक का अर्थ धतूरा है। यमक अलंकार में किसी शब्द की आवृत्ति दो या दो से अधिक बार होती है लेकिन हर बार उसका अर्थ भिन्न होता है।
कनक कनक ते सौ गुनी के लेखक कौन है? "कनक-कनक ते सौगुनी मादकता अधिकाय यह खाए बौराइ नर, वा पाये बौराए।" यह पंक्तियां वादी कवि बिहारी लाल द्वारा लिखी गई हैं और ये "बिहारी सतसई" से हैं।
"बिहारी सतसई" उनकी प्रसिद्ध कविता संग्रह है जिसमें उन्होंने 700 से अधिक पद लिखे हैं। इस संग्रह में प्रेम, प्राकृतिक सौंदर्य, भक्ति और मनोरंजन के विविध विषयों पर चित्रण किया गया है। इस कविता संग्रह में रीति अलंकार का विशेष उपयोग हुआ है, जिससे उसके काव्य को विशेषता मिली है।
माया मरी ना मन मरा, मर-मर गए शरीर।
आशा तृष्णा ना मरी, कह गए दास कबीर।
Maaya Maree Na Man Mara, Mar-mar Gae Shareer.
Aasha Trshna Na Maree, Kah Gae Daas Kabeer.
दोहे का भावार्थ : काल सभी को अपना ग्रास बना लेता है कोई आज तो कोई कल उसका निवाला होता है, जीवन में हरी सुमिरण करना ही जीवन का मूल उद्देश्य है। जो उगा है उसका अंत होना है और जो आज जवानी पर है वह कुमल्हा जायेगा। जिसका निर्माण हुआ है वह ढह जाना है, आया है जो जाएगा और यही इस जीवन का सत्य है इसलिए जीव को ईश्वर का सुमिरण करके जीवन को सफल बनाना चाहिए। यह हमारा घर है और हम सदा रहेंगे यह भ्रम है जो सदा रहेगा। इस भ्रम को तोड़ करके जो आगे बढ़ जाता है वाही जीवन का उद्देश्य पूर्ण कर पाता है।
आइये बिहारी जी के अन्य दोहे और उनका अर्थ जानते हैं :-
सुनी पथिक मुँह माह निसि लुवैं चलैं वहि ग्राम।
बिनु पूँछे, बिनु ही कहे, जरति बिचारी बाम।।हिंदी अर्थ : इस पद्य में, "सुनी पथिक मुँह माह निसि लुवैं चलैं वहि ग्राम।" का अर्थ है कि प्रेमिका विरह की अग्नि में जल रही है, और माघ के माह (फरवरी के महीने ) में में भी लू सी तपन को प्राप्त कर रही है।
दृग उरझत, टूटत कुटुम, जुरत चतुर-चित्त प्रीति।
परिति गांठि दुरजन-हियै, दई नई यह रीति।।हिंदी अर्थ : प्रेम की रीति भी सबसे अलग ही है, अनूठी है। प्रेम में उलझते तो नयन (आँखें) हैं लेकिन इससे परिवार टूट जाते हैं कुटुम से आशय परिवार, खानदान से है। प्रेम में चतुर प्रेमियों के हृदय जुड़ जाते हैं। इसे देखकर दुर्जन व्यक्तियों के हृदय में गाँठ पड़ जाती है/वे प्रेमियों को देखकर इर्ष्या करने लग जाते हैं। प्रेम की रीति कुछ इसी तरह की नविन है।
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