जाऊँ गुरु चरण कमल बलिहार लिरिक्स Jaau Guru Charanan Kamal Blihar Lyrics
विशेष : गुरु कौन है ? क्या गुरु महत्त्व रखता है ? क्या वर्तमान समय में गुरु श्रेष्ठता बची हुई है ? हम किसे गुरु बनाएं ? गुरु तो ठीक नहीं होते ! इन सभी विषयों को ज़रा बारीकी से समझने की जरुरत है। कबीर साहेब ने भी गुरु की श्रेष्ठता से पूर्व गुरु की पहचान पर बल दिया है। कल्पना कीजिये की यदि रावण अपने वास्तविक रूप में होता तो माता सीता लक्ष्मण को कभी भी पार नहीं करती। लेकिन रावण ने छल करके साधु का रूप धारण किया। भाव है की गुरु का महत्त्व सर्वोच्च है, आज भी गुरु की आवश्यकता है, लेकिन गुरु किसे बनाएं यह साधक के विवेक पर निर्भर करता है। वर्तमान समय में जो आप गुरु का रूप देख रहे हैं वह कोई नया नहीं है, रावण भी वैसा ही था। इसलिए गुरु के चयन पर यदि बल दिया जाय तो आज विश्व को आध्यात्मिक गुरुओं की महती आवश्यकता है, कमी है तो बस पहचान की -जय श्री राधे, जय श्री श्याम।
जाऊँ गुरु, चरण कमल बलिहार,
मैं अपने गुरुदेव के चरण कमलों पर अपना सर्वस्व अर्पण करता हूँ। सर्वश्व अर्पण से भाव है की जिससे कुछ छुप नहीं सकता है उससे क्या छुपाना। हे गुरु आप को मैं स्वंय को समर्पित करता हूँ। मैं जैसा भी हूँ, अच्छा या बुरा आपके समक्ष है। समर्पण की यही पूर्णता है।
I sacrifice my all upon my Gurudev's lotus feet.
जिन चरणन की शरण गहत मन, पावत युगल बिहार,
इन कमल रूप चरणों में अपना सब कुछ समर्पित करके मेरा मन श्री राधा जी और श्री कृष्ण के असीम अमृत को प्राप्त करता है। स्वंय को पूर्ण रूप से समर्पित कर देने के उपरान्त ही मालिक का आभास होता है।
By surrendering to these lotus feet, the mind drinks the supreme nectar of Radha and Krishna's sweet pastimes.
जिन चरणन को ध्यान धरत मन, मिटत जगत अँधियार,
हे गुरुदेव आपके चरणों का ध्यान करने मात्र से ही मेरे हृदय में जगत का अंधियार दूर हटने लग जाता है और मुझे सत्य का भान होने लग जाता है। आपके चरणों में आकर मुझे संसार के मायाजनित विकार परेशान नहीं कर सकते हैं। गुरु के अभाव में यह भी पता नहीं चल पाता है की जो दिखाई दे रहा है वह रौशनी है या अँधियारा ? गुरु ही इस उलझन को दूर करता है। By meditating on these lotus feet, the darkness of ignorance is destroyed from the mind.
जिन चरणन अनुकम्पा जग महँ , रहत न रह संसार,
प्रभु के इन चरणन की महिमा है की इसमें स्वंय को समर्पित कर देने वाले जीव भले ही इस संसार में रहता है लेकिन वह इस संसार का नहीं रहता है। भाव है की ईश्वर के चरणों में यदि स्थान मिल जाए तो भौतिक जगत के सभी फंदों से जीव आज़ाद हो जाता है और वह सदा अपने मालिक की ही भक्ति में लीन रहता है।
It is by the grace of these lotus feet that one, though living in the world, remains unaffected by it.
जिन चरणन रज आँजी चराचर, दिखत नंदकुमार,
श्री गुरुदेव के चरणों की धूल भी यदि मस्तक पर /आँखों पर लगा ली जाए तो हर स्थान पर श्री कृष्णा जी ही दिखाई देते हैं। हर स्थान पर सकारात्मक ऊर्जा का संचार होने लगता है।
By reverently applying the dust of these lotus feet to the eyes, one sees Shree Krishna everywhere.
यदपि "कृपालु ' भेद नहीं हरि गुरु , तदपि गुरुहिं आभार,
श्री 'कृपालु' कहते हैं, यद्यपि ईश्वर और गुरु में कोई अंतर नहीं है, फिर भी गुरु के हम सदा ऋणी हैं। देखिये मालिक बड़ा है लेकिन मालिक की पहचानत, उसकी महानता की पहचान भी जरुरी है। मालिक के विषय में कौन बताये ? बताये वह जिसे स्वंय ज्ञान हो और वह सद्गुरु ही हैं। इसीलिए कबीर साहेब ने भी कहा की गुरु गोविन्द दोउ खड़े काके लागूँ पाय ? गोविन्द का ज्ञान गुरु ने ही करवाया है इसलिए गुरु की श्रेष्ठता गोविन्द के तुल्य ही मानी गई है।
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