हिन्दू कहें मोहि राम पियारा तुर्क कहें रहमाना हिंदी मीनिंग Hindu Kahe Mohi Raam Pyara Hindi Meaning

हिन्दू कहें मोहि राम पियारा तुर्क कहें रहमाना हिंदी मीनिंग Hindu Kahe Mohi Raam Pyara Hindi Meaning

हिन्दू कहें मोहि राम पियारा, तुर्क कहें रहमाना।
आपस में दोउ लड़ी-लड़ी मुए, मरम न कोऊ जाना।।

Hindu Kahe Mohi Ram Piyara, Turak Kahe Rahmana
Aapas Me Dou Ladi Ladi Muye, Maram Na Kou Jana
 
हिन्दू कहें मोहि राम पियारा तुर्क कहें रहमाना हिंदी मीनिंग Hindu Kahe Mohi Raam Pyara Hindi Meaning

दोहे के शब्दार्थ :
  • हिन्दू कहें-हिन्दुओं का कहना है/मानना है
  • राम पियारा-राम प्रिय है
  • तुर्क कहें रहमाना-मुस्लिम कहते हैं की रहमान सबसे उच्च है
  • आपस में दोउ - दोनों आपस में,
  • लड़ी-लड़ी मुए-लड़ लड़ कर समाप्त हो रहे हैं
  • मरम न कोऊ जाना-किसी ने भेद/रहस्य को नहीं जाना है
दोहे का हिंदी मीनिंग/भावार्थ : हिन्दुओं को मानना है की राम सर्वोच्च है, वहीँ मुस्लिमों का मानना है की रहमान सर्वोच्च है। इस बात पर दोनों संघर्ष करते हैं और लड़ लड़ कर समाप्त हो जाते हैं। दोनों ने ही भेद/रहस्य को नहीं जाना है, नहीं समझा है। भाव है धर्म के नाम पर संघर्ष है, जबकि कोई भी धर्म संघर्ष को नहीं सीखाता है, कोई धर्म हिंशा को बढ़ावा नहीं देता है, कोई धर्म एक दुसरे के प्रति हिंशा, दमन, भेदभाव और उंच नीच को बढ़ावा नहीं देता है। लेकिन व्यक्ति अपने धर्म को सर्वोच्च बनाने के लिए अनैतिक कार्यों का सहारा लेता है और अपना जीवन व्यर्थ के कार्यों में समाप्त कर देता है। इससे ना तो उसके जीवन की कोई उन्नति होती है और नाही वह समाज के लिए कुछ उपयोगी करता है। ऐसे लोग ही कबीर साहेब की जाति ढूंढते हैं, उनका धर्म ढूंढते हैं। जबकि साहेब की वाणी है की समस्त ब्रह्माण्ड का स्वामी वह निराकार ब्रह्म है सभी जीव/वस्तु उसी के अधीन हैं। उसका कोई रूप आकार नहीं है। उसके नाम से संघर्ष करना व्यर्थ है।

उसे एक ही समझ कर उसके बनाए सभी कृतियों का सम्मान किया जाना चाहिए। साहेब ने कई स्थानों पर स्पष्ट किया है की यह एक तरह से धार्मिक षड्यंत्र है जिसके माध्यम से लोगों को आपस में ही संघर्ष करवाया जाता है। तात्कालिक सामाजिक व्यवस्था में सामंतवादी शक्तियां आम जन का शोषण करती थी और वे अपने गुनाहों को छिपाने के लिए धार्मिक शक्तियों/ठेकेदारों को अपने साथ मिला लेती थी जिससे आम जन में आक्रोश उत्पन्न नहीं हो। सभी धर्मों में कर्मकांडों का बोलबाला था और तरह तरह से ईश्वर के नाम पर भी उगाही की जाती थी जिसे देखकर साहेब बहुत अधिक व्यथित थे और अपनी वाणी के माध्यम से लोगों को जाग्रत किया की समस्त श्रष्टि ब्रम्हांड का एक ही मालिक है उसे हम अपनी सुविधा के मुताबिक़ मुख्तलिफ नामों से जानते हैं, इसलिए इस नामकरण को लेकर कोई झगड़ा फसाद करना उचित नहीं है।

English Meaning/Translation-Hindus believe that God Rama is supreme, while Muslims believe that Rahman is supreme. Both fight over it and. Hindus and Muslims have not recognized the mystery. No religion teaches conflict, no religion promotes violence. A person ends a life in such a struggle. It does not make any progress in his life and neither does he have anything for the society Does useful. Only such people find the caste of Kabir Sahib, find their religion. Whereas Sahib declares that the entire universe is of formless Brahman. All beings / objects are subject to the Brahma. It has no form shape. Fighting in the name of god is futile. All human beings and things created by God must be respected, without any distinction.
 
पोथी पढ़ि पढ़ि जग मुआ, पंडित भया न कोय।
ढाई आखर प्रेम का, पढ़े सो पंडित होय।।
Pothee Padhi Padhi Jag Mua, Pandit Bhaya Na Koy.
Dhaee Aakhar Prem Ka, Padhe So Pandit Hoy.


दोहे का हिंदी मीनिंग/भावार्थ पोथी पढ़ पढ़ करके कोई पंडित नहीं बन सकता है। किताबी ज्ञान और व्यवहारिक ज्ञान में अंतर है और यदि ज्ञान किताबी भी हो और उसे व्यवहार में ही ना उतारा जाय तो उस ज्ञान का कोई लाभ नहीं मिलने वाला है। ढाई अक्षर हैं "प्रेम" के, इसको अपने जीवन में उतारने वाला ही सच्चा पंडित है। प्रेम ही सबको बांधता है इसलिए साहेब ने प्रेम की महिमा का वर्णन किया है। ग्यानी व्यक्ति प्रेमी को समझता है।

कंकड़ पत्थर जोड़कर मस्जिद लायी बनाय।
ता चढ़ मुल्ला बांक दे क्या बहरा हुआ खुदाय।।
Kankad Patthar Jodakar Masjid Laayee Banaay.
Ta Chadh Mulla Baank De Kya Bahara Hua Khudaay.

दोहे का भावार्थ : मुस्लिम धर्म के विषय में कथन है की कंकड़ पत्थर से एक मस्जिद का निर्माण कर लिया और इसके ऊपर चढ़ कर मौलवी जोर जोर से आवाज लगाता है, क्या खुदा बहरा हो गया है। भाव है किस ईश्वर तो हमारे हृदय में ही बसता है उसे यदि कोई सन्देश देना है तो उसके लिए जोर जोर से आवाज लगाने की आवश्यकता नहीं है। भाव है की प्रतीकात्मक भक्ति/दिखावे की भक्ति से कोई लाभ नहीं होने वाला है। सदाचरण के साथ सद्मार्ग का अनुसरण करने पर ही ईश्वर की प्राप्ति संभव है।

हिन्दू मुआ राम कहि, मुसलमान खुदाय।
कहैं कबीर सो जीवता, दोउ के संग न जाय ।।
Hindoo Mua Raam Kahi, Musalamaan Khudaay.

दोहे का भावार्थ : प्रतीकात्मक और दिखावे की भक्ति पर व्यंग्य है।

बड़ा हुआ तो क्या हुआ, जैसे पेड़ खजूर।
पंथी को छाया नहीं, फल लागे अति दूर।।
Bada Hua To Kya Hua, Jaise Ped Khajoor.
Panthee Ko Chhaaya Nahin, Phal Laage Ati Door.

दोहे का हिंदी मीनिंग/भावार्थ यदि कोई भौतिक रूप से या काल्पनिक रूप से स्वंय को उच्च मानता है लेकिन ऐसी बड़ाई/महानता किस काम की जो दूसरों के लिए उपयोगी ही ना हो ? जैसे खजूर का पेड़ उंचाई में बड़ा होता है लेकिन उसके फल भी दूर लगते हैं और इसकी छांया भी अधिक उंचाई पर होने के कारण पथिक को नहीं मिल पाती है। भाव है की व्यक्ति को दूसरों के लिए उपयोगी बनना चाहिए। समाज में ऐसे कई व्यक्ति होते हैं जो स्वंय को ग्यानी मान बैठते हैं कुछ धनवान होते हैं लेकिन यदि वे दूसरों के लिए उपयोगी नहीं है तो उनके ज्ञान का कोई लाभ नहीं होता है।

भक्ति बिगाडी कामिया, इन्द्रीन केरे स्वाद।
हीरा खोया हाथ सों, जन्म गंवाया बाद।।
Bhakti Bigaadee Kaamiya, Indreen Kere Svaad.
Heera Khoya Haath Son, Janm Ganvaaya Baad.

दोहे का हिंदी भावार्थ : कामी व्यक्ति के विषय में कथन है की वह इन्द्रियों के चक्कर में पड़कर भक्ति मार्ग से विमुख हो जाता है और यह ऐसे ही है जैसे हाथ में आये हीरे को गंवा देना। भाव है की कामी और इन्द्रियों के वशीभूत व्यक्ति अपने जीवन को व्यर्थ के कार्यों में समाप्त कर लेता है इसलिए हमें मानव जीवन की महत्ता को समझ कर ईश्वर सुमिरण करना चाहिए।

बुरा जो देखन मैं चला, बुरा न मिलिया कोय।
जो दिल खोजा आपना, मुझसे बुरा न कोय।।
Bura Jo Dekhan Main Chala, Bura Na Miliya Koy.
Jo Dil Khoja Aapana, Mujhase Bura Na Koy.

दोहे का हिंदी भावार्थ : यदि व्यक्ति स्वंय का विश्लेषण करे, आत्मावलोकन करे तो उसे ज्ञान होगा की तमाम तरह की बुराइयां तो उसी के अंदर भरी पड़ी हैं और वह दूसरों की बुराइयों को ढूँढने में ही व्यस्त रहता है। आत्मावलोकन करने पर स्वंय से बड़ा बुरा व्यक्ति कोई दुसरा नहीं मिलता है।

ऊजल पाहिनै कपडा, पान सुपारी खाय।
कबीर गुरु की भक्ति बिन, बांधा जमपूर जाय।।
Oojal Paahinai Kapada, Paan Supaaree Khaay.
Kabeer Guru Kee Bhakti Bin, Baandha Jamapoor Jaay.

दोहे का हिंदी भावार्थ : माया के चक्कर में पड़ा हुआ व्यक्ति उजले कपडे पहनता है, पान और सुपारी का सेवन करता है लेकिन ईश्वर से विमुख रहता है, ऐसा व्यक्ति जो माया में लिप्त रहता है और भक्ति मार्ग से दूर रहता है उसे यम बांधकर यमपुर/जमपुर लेकर जाते हैं। भाव है की मानव जीवन अनमोल है, बड़े जतन के उपरान्त मिला है इसे ईश्वर के सुमिरण में व्यतीत करना चाहिए।

क्यूँ नृप नारी नींदये, क्यूँ पनिहारी कौं माँन।
वामाँग सँवारै पीव कौ, वा नित उठि सुमिरै राँम॥
Kyoon Nrp Naaree Neendaye, Kyoon Panihaaree Kaun Maann.
Vaamaang Sanvaarai Peev Kau, Va Nit Uthi Sumirai Raanm


दोहे का हिंदी भावार्थ : राजा की स्त्री की निंदा क्यों होती है और दूसरी तरफ भक्तिन की प्रशंशा क्यों होती है। एक तरफ भक्तिन ईश्वर के प्रति समर्पित है वहीँ दूसरी तरफ राजा की स्त्री राजा के लिए समर्पित रहती है।

माला फेरत जुग भया, फिरा न मन का फेर।
कर का मनका डार दे, मन का मनका फेर।।
Maala Pherat Jug Bhaya, Phira Na Man Ka Pher.
Kar Ka Manaka Daar De, Man Ka Manaka Pher.

दोहे का हिंदी भावार्थ : आचरण में जब तक भक्ति नहीं है, हृदय से ईश्वर को स्वीकार करने के स्थान पर यदि दिखावटी भक्ति की जाती हैतो इससे कुछ भी लाभ मिलने वाला नहीं है। व्यक्ति दूसरों के समक्ष उच्च बनने के लिए भक्ति का आडम्बर करते हैं लेकिन माया के जाल से निकल पाना आसान नहीं होता है। यह तो मुंह में राम बगल में छुरी जैसी स्थिति है। जब वह हृदय से वैराग्य धारण कर लेता है तो यह दोहरा व्यवहार समाप्त होने लगता है। यह एक क्रम है जिसमे उतरोत्तर वृद्धि होती है, ऐसा नहीं है की एक रोज ईश्वर को याद कर लेने मात्र से सब कार्य सध जाते हों। हृदय से वैराग्य धारण करो, रोज मर्रा के जीवन से इसकी शुरुआत की जा सकती है। त्याग आवश्यक है जब तक मोह माया का त्याग नहीं किया जाएगा तब तक भक्ति का कोई अर्थ नहीं है क्योंकि मोह माया ही अनैतिक कार्यों की और अग्रसर करती है।

जाति न पूछो साधु की, पूछ लीजिये ज्ञान।
मोल करो तरवार का, पड़ा रहन दो म्यान।।
Jaati Na Poochho Saadhu Kee, Poochh Leejiye Gyaan.
Mol Karo Taravaar Ka, Pada Rahan Do Myaan.

दोहे का हिंदी भावार्थ : जाति और धर्म कुल आदि में जन्म लेने से कोई बड़ा और गुणवान नहीं बन सकता है, व्यक्ति अपने गुणों से ही ऊपर उठता है कुल जाती और धर्म से नहीं। ग्यानी कोई विशेष जाती का नहीं बल्कि कोई भी हो सकता है। हमें गुणों का मोल करना चाहिए, गुणों के आधार पर व्यक्ति की पहचान करनी चाहिए। साधू से उसकी जाती नहीं बल्कि उसके ज्ञान को पूछकर उसकी पहचान करनी चाहिए। जैसे तलवार का मोल किया जा सकता है, म्यान का नहीं। तात्कालिक सामाजिक व्यवस्था को जाति और धर्म की दीमक लगी हुई थी और आम जन का शोषण होता रहा, इसी से व्यथित होकर साहेब ने व्यक्ति को प्रधान बताया और जाती धर्म के आधार पर मानव से भेदभाव को सरासर अनुचित बताया और व्यक्त किया की ईश्वर की सभी संतान हैं और एक समान महत्वपूर्ण हैं।

जिन खोजा तिन पाइया, गहरे पानी पैठ।
मैं बपुरा बूडन डरा, रहा किनारे बैठ।।
Jin Khoja Tin Paiya, Gahare Paanee Paith.
Main Bapura Boodan Dara, Raha Kinaare Baith.

दोहे का हिंदी भावार्थ : जिसने खोजा उसने पाया है, यह गहरे पानी पैठ है, गहराई में जाना पड़ता है और जो डूबने से डरता है उसे कुछ भी हाथ नहीं लगता है वह किनारे पर ही बैठा रह जाता है। इस दोहे का भाव है की यह जरा मेहनत की बात है । भक्ति भी कुछ ऐसे ही है, भक्ति में भी गहराई में जाना पड़ता है, यह कोई खाला का घर नहीं है। भक्ति के लिए भी सम्पूर्ण समर्पण और मेहतन की आवश्यकता है। शाब्दिक अर्थ है की जो गोता लगाने वाला ऊपर ऊपर ढूंढता है उसे कुछ भी हाथ नहीं लगता है और जो गहराई में ढूंढता है उसे अमूल्य रत्न आदि हाथ लगते हैं।

तिनका कबहुँ ना निन्दिये, जो पाँवन तर होय।
कबहुँ उड़ी आँखिन पड़े, तो पीर घनेरी होय।।
Tinaka Kabahun Na Nindiye, Jo Paanvan Tar Hoy.
Kabahun Udee Aankhin Pade, To Peer Ghaneree Hoy.

दोहे का हिंदी भावार्थ : शाब्दिक अर्थ है की किसी को छोटा नहीं समझना चाहिए जैसे एक तिनका पांवों के निचे होता है लेकिन यदि वह उड़ कर आँख में गिर जाए तो बहुत अधिक पीड़ा पैदा करता है। भाव है की ईश्वर की किसी भी कृति को तुच्छ और महत्वहीन नहीं समझना चाहिए, सभी का आदर होना चाहिए क्योंकि वे सभी उस महान ईश्वर के द्वारा ही निर्मित हैं भले ही कोई गोरा हो काला हो, छोटा हो बड़ा हो या किसी धर्म संस्कृति देस का क्यों ना हो। साहेब ने सामजिक और आर्थिक आधार पर होने वाले भेदभाव का विरोध किया है।

धीरे धीरे रे मना, धीरे सब कुछ होय,
माली सींचे सौ घड़ा, ॠतु आए फल होय।
Dheere Dheere Re Mana, Dheere Sab Kuchh Hoy,
Maalee Seenche Sau Ghada, Rtu Aae Phal Hoy.

दोहे का हिंदी भावार्थ : यह नीति की बात है की व्यक्ति को धीरज को धारण करना चाहिए। माली सौ घड़े सींचता है लेकिन पौधे/वृक्ष के बड़े होने पर ही उसमे फल लगते हैं। भाव है की विधि के विधान के मुताबिक़ ही किसी कार्य का परिणाम मिलता है, कर्म करना हमारे हाथ है लेकिन उसका फल विधि के विधान के मुताबिक ही मिलता है। 

माँगन मरण समान है, मति माँगो कोई भीख।
माँगन ते मारना भला, यह सतगुरु की सीख॥
Maangan Maran Samaan Hai, Mati Maango Koee Bheekh.
Maangan Te Maarana Bhala, Yah Sataguru Kee Seekh.

दोहे का हिंदी भावार्थ : माँगना मरण के समान है, मांगने से अच्छा तो मर जाना होता है यही सतगुरु की सीख है। भाव है की व्यक्ति को अपने कर्मों पर विश्वाश रखना चाहिए, किसी से माँगना नहीं चाहिए।

मन हीं मनोरथ छांड़ी दे, तेरा किया न होई।
पानी में घिव निकसे, तो रूखा खाए न कोई।।
Man Heen Manorath Chhaandee De, Tera Kiya Na Hoee.
Paanee Mein Ghiv Nikase, To Rookha Khae Na Koee.

दोहे का हिंदी भावार्थ : मन को स्वंय के बनाए मनोरोथ (इच्छा) का त्याग कर देना चाहिए क्योंकि यदि पानी को मथने से ही घी निकलता होता तो कोई भी व्यक्ति रूखा नहीं खाता। भाव है की व्यर्थ के कार्यों को छोडकर असल ईश्वर की भक्ति का धारण करना चाहिए, खयाली पुलाव पकाने से कोई लाभ नहीं होने वाला है। घी तो दूध दही से ही निकलेगा पानी से नहीं।

ऐसा कोई ना मिले, हमको दे उपदेस।
भौ सागर में डूबता, कर गहि काढै केस।।
Aisa Koee Na Mile, Hamako De Upades.
Bhau Saagar Mein Doobata, Kar Gahi Kaadhai Kes.

दोहे का हिंदी भावार्थ : संसार में कोई सच्ची सलाह और मार्ग को दिखाने वाला नहीं मिला और ऐसा कोई नहीं मिला जो डूबते के बालों को पकड़ कर भव सागर से बाहर निकाल लेता। भाव है की जीव को स्वंय की मुक्ति के लिए खुद ही प्रयत्न करने होते हैं दूसरा कोई उसकी मदद नहीं कर पाता है।

झूठे सुख को सुख कहे, मानत है मन मोद।
खलक चबैना काल का, कुछ मुंह में कुछ गोद।।
Jhoothe Sukh Ko Sukh Kahe, Maanat Hai Man Mod.
Khalak Chabaina Kaal Ka, Kuchh Munh Mein Kuchh God.

दोहे का हिंदी भावार्थ : व्यक्ति झूठे सुख को सच्चा सुख समझ कर भ्रमित है और मन ही मन प्रशन्न होता है जैसे उसने यह कमा लिया, इतनी माया जोड़ ली, आदि आदि लेकिन यह सभी क्षणिक हैं इनका कोई लाभ नहीं होने वाला है।

जो उग्या सो अन्तबै, फूल्या सो कुमलाही।
जो चिनिया सो ढही पड़े, जो आया सो जाही।
Jo Ugya So Antabai, Phoolya So Kumalaahee.
Jo Chiniya So Dhahee Pade, Jo Aaya So Jaahee.

दोहे का हिंदी भावार्थ : यह श्रृष्टि का विधान है की जिसका उदय हुआ है वह अस्त होगा, जो फुला है वह कुम्हला जाएगा, जिसका निर्माण हुआ है (चुना) हुआ है वह एक रोज ध्वस्त हो जाएगा। भाव है की कोई भी सदा के लिए नहीं है, आने जाने का क्रम यूँ ही चलता रहता है और यह व्यक्ति का भ्रम ही की वह सदा रहेगा।

हाड़ जलै ज्यूं लाकड़ी, केस जलै ज्यूं घास।
सब तन जलता देखि करि, भया कबीर उदास।।
Haad Jalai Jyoon Laakadee, Kes Jalai Jyoon Ghaas.
Sab Tan Jalata Dekhi Kari, Bhaya Kabeer Udaas.

दोहे का हिंदी भावार्थ : जीवन की क्षण भंगुरता के सबंध में साहीब का कथन है की जब व्यक्ति मृत्यु को प्राप्त हो जाता है तो यह शरीर किसी कार्य का नहीं रहता है और हड्डियां ऐसे जलती हैं जैसे लकड़ी और बाल ऐसे मानों की घास जल रही हो, इस तन को जलता देखकर साहेब उदास हो उठते हैं।

पानी केरा बुदबुदा, अस मानुस की जात।
एक दिना छिप जाएगा,ज्यों तारा परभात।।
Paanee Kera Budabuda, As Maanus Kee Jaat.
Ek Dina Chhip Jaega,jyon Taara Parabhaat.

दोहे का हिंदी भावार्थ : मावन जीवन पानी के बुलबुले के समान है, जैसे बुलबुला बहुत ही अल्प समय के लिए अपने आकार को कायम रख सकता है वैसे ही मनुष्य का जीवन भी अल्पकालिक होता है। सूर्योदय होने पर जैसे तारों को छिपने में देर नहीं लगती है वैसे ही इस जीवन को समाप्त होने में वक़्त नहीं लगता है। भाव है की कम समय के लिए जीवित रहना है तो सम्पूर्ण समय को हरी के नाम सुमिरण में बिताना चाहिए।

दुर्लभ मानुष जन्म है, देह न बारम्बार।
तरुवर ज्यों पत्ता झड़े, बहुरि न लागे डार।।
Durlabh Maanush Janm Hai, Deh Na Baarambaar.
Taruvar Jyon Patta Jhade, Bahuri Na Laage Daar.

दोहे का हिंदी भावार्थ : मानव देह अति दुर्लभ है इसे प्राप्त करना बहुत ही मुश्किल है वहीँ इसको समाप्त होने में भी वक़्त नहीं लगता है। जैसे वृक्ष से पत्ते झड़ जाते हैं वैसे ही एक रोज मानव देह समाप्त हो जानी है। जैसे तरुवर से पत्ते झड जाते हैं वैसे ही मानव जीवन समाप्त हो जाना है। भाव है की यह मानव जीवन बहुत जतन के उपरान्त मिला है, इसे यूँ ही समाप्त कर देना कोई समझदारी का कार्य नहीं है। हरी सुमिरण ही इस जीवन का आधार है।


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