निरमल बूँद अकास की पड़ि गइ भोमि बिकार हिंदी मीनिंग Nirmal Bund Akas Ki Padi Gai Bhomi Vikar Hindi Meaning

निरमल बूँद अकास की पड़ि गइ भोमि बिकार हिंदी मीनिंग Nirmal Bund Akas Ki Padi Gai Bhomi Vikar Hindi Meaning

निरमल बूँद अकास की, पड़ि गइ भोमि बिकार।
मूल विनंठा माँनबी, बिन संगति भठछार॥ 

Niramal Boond Akaas Kee, Padi Gai Bhomi Bikaar.
Mool Vinantha Maannabee, Bin Sangati Bhathachhaar. 
 
निरमल बूँद अकास की पड़ि गइ भोमि बिकार हिंदी मीनिंग Nirmal Bund Akas Ki Padi Gai Bhomi Vikar Hindi Meaning

कुसंगती में पड़कर पवित्र आत्मा भी दूषित हो जाती है। जैसे निर्मल जल की एक बूंद आकाश से धरती पे पड़कर विकृत हो जाती है, दूषित हो जाती है ऐसे ही मानव की जीवात्मा भी पहले पवित्र होती है लेकिन इस जगत में आकर वह भी दूषित हो जाती है और कुसंगति के कारण राख के समान होकर रह जाती है। भाव है की हमें ऐसे लोगों की संगत में रहना चाहिए जिनके विचार पवित्र और आध्यात्मिक हो, साधु संतों की शरण में रहना चाहिए जिससे सद्विचारों को संचार होता रहे।

मूरिष संग न कीजिए, लोहा जलि न तिराइ
कदली सीप भवंग मुषी, एक बूँद तिहुँ भाइ॥

Moorish Sang Na Keejie, Loha Jali Na Tirai
Kadalee Seep Bhavang Mushee, Ek Boond Tihun Bhai. 
 
मुर्ख व्यक्ति का संग नहीं करना चाहिए क्योंकि लोहा जल में तैर नहीं सकता है। वह स्वंय तो डूबता ही है और इसके सानिध्य में जो भी आता है उसे भी यह डुबो देता है। संगती का प्रभाव कुछ ऐसा होता है जैसे बरसात की एक बूंद केला, सीपी और सांप के सम्पर्क में आने पर तीनों ही स्थिति में इसके परिणाम प्रथक आते हैं, भिन्न आते हैं। इसलिए व्यक्ति को संगती का बहुत ही ध्यान रखना चाहिए और हमेशा बुद्धिमान व्यक्तियों, साधु संतो और सद्पुरुषों की संगती करके सद्मार्ग का अनुसरण करना चाहिए।


हरिजन सेती रूसणाँ, संसारी सूँ हेत।
ते नर कदे न नीपजै, ज्यूँ कालर का खेत॥
Harijan Setee Roosanaan, Sansaaree Soon Het.
Te Nar Kade Na Neepajai, Jyoon Kaalar Ka Khet.

ऐसे व्यक्ति जो हरिजन से रूठे रहते है, प्रेम नहीं करते हैं और संसारी व्यक्तियों से हेत रखते हैं, ऐसे व्यक्ति कभी भी विकसित नहीं हो सकते हैं, फल फूल नहीं सकते हैं, जैसे बंजर/उसर खेत में कोई पैदावार नहीं हो सकती है। भाव है की इस संसार में हमें संगती पर विशेष ध्यान रखना चाहिए, साधु, संतों और सद्जनों की संगती पर ही बल देना चाहिए, यही मुक्ति का द्वार है। सांसारिक व्यक्ति तो विषय वासनाओं और विकारों से भरे पड़े हैं उनसे दूर रहना चाहिए यदि हम आध्यात्मिक और व्यक्तिगत उत्थान चाहते हैं। संतजन से कभी भी रुष्ट नहीं होना चाहिए।

सब आया एक ही घाट से, उतरा एक ही बाट
बीच में दुविधा पड़ गयी, हो गये बारह बाट
घाटे पानी सब भरे, अवघट भरे न कोय
अवघट घाट कबीर का, भरे सो निर्मल होय
हिन्दु कहूं तो हूं नहीं, मुसलमान भी नाहीं
गैबी दोनों दीन में, खेलूं दोनों मांही
कहां से आया कहां जाओगे,
खबर करो अपने तन की
कोई सदगुरु मिले तो भेद बतावे
खुल जावे अंतर खिड़की
हिन्दु मुस्लिम दोनों भुलाने
खटपट मांय रहया अटकी
जोगी जंगम शेख सेवरा
लालच माँय रहया भटकी
कहां से आया कहां जाओगे,

काजी बैठा कुरान बांचे
जमीन जोर वो करी चटकी
हर दम साहेब नहीं पहचाना
पकड़ा मुर्गी ले पटकी
कहां से आया कहां जाओगे,

बाहर बैठा ध्यान लगावे
भीतर सुरता रही अटकी
बाहर बंदा, भीतर गंदा
मन मैल मछली गटकी
कहां से आया कहां जाओगे,

माला मुद्रा तिलक छापा
तीरथ बरत में रहया भटकी
गावे बजावे लोक रिझावे
खबर नहीं अपने तन की
कहां से आया कहां जाओगे,

बिना विवेक से गीता बांचे,
चेतन को लगी नहीं चटकी
कहें कबीर सुनो भाई साधो
आवागमन में रहया भटकी
कहां से आया कहां जाओगे,

मारी मरूँ कुसंग की, केला काँठै बेरि।
वो हालै वो चीरिये, साषित संग न बेरि॥
Nārī Marūm̐ Kusaṅga Kī, Kēlā Kām̐ṭhai Bēri.
Vō Hālai Vō Cīriyē, Sāṣita Saṅga Na Bēri. 
 
आत्मा कुसंगति के कारण मरने जैसी हो रही है, वह कुसंगति की मार से मर रही है। जैसे केले का वृक्ष यदि बेर के पेड़ के पास हो तो वह केले के पत्तों को चीर देती है ऐसे ही आत्मा की स्थिति भी केले के वृक्ष जैसी ही है जो बहुत ही कोमल है और बेर के कांटे सांसारिकता है जो उसे चीरती रहती है। भाव है की व्यक्ति को कुसंगति से दूर रहना चाहिए और सद्पुरुषों के साथ रहकर सद्मार्ग पर चलकर अपने जीवन को सार्थक बनाना चाहिए। 

मेर नसाँणी मीच की, कुसंगति ही काल।
कबीर कहै रे प्राँणिया, बाँणी ब्रह्म सँभाल॥
Mer Nasaannee Meech Kee, Kusangati Hee Kaal.
Kabeer Kahai Re Praanniya, Baannee Brahm Sanbhaal. 
 
मेरा अहंकार, मैं का होना मृत्यु की निशानी है, कुसंगति ही काल है, कुसंगति ही स्पष्ट रूप से काल है, इस पर साहेब की वाणी है की तुम अपनी वाणी को संभालो, और हरी का कीर्तन करो। कुसंगति को छोडकर हरी की भक्ति करना ही मुक्ति का द्वार है।

माषी गुड़ मैं गड़ि रही, पंष रही लपटाइ।
ताली पीटै सिरि धुनै, मीठै बोई माइ॥
Maashee Gud Main Gadi Rahee, Pansh Rahee Lapatai.
Taalee Peetai Siri Dhunai, Meethai Boee Mai. 
 
माया से दूर रहो क्योंकि माया में लिप्त व्यक्ति की स्थिति ऐसी ही होती है जैसे गुड़ में लिपटी मक्खी की होती है। यहाँ गुड़ माया है जिसमें व्यक्ति मक्खी की भाँती चिपक कर रह जाता है, मक्खी के पंख गुड़ में चिपक जाते हैं और उसका माथा भी चिपक जाता है। भाव है की जैसे गुड़ के चक्कर में पड़कर मक्खी लालच में आकर गुड़ के चिपक करके ही मर जाती है ऐसे ही व्यक्ति माया के भ्रम जाल में फँसकर अपने अमूल्य जीवन को समाप्त कर लेता है। जीवन के मूल उद्देश्य को भूल कर वह व्यर्थ के कार्यों में अपने जीवन को बर्बाद कर लेता है।

ऊँचे कुल क्या जनमियाँ, जे करणीं ऊँच न होइ।
सोवन कलस सुरे भर्या, साथूँ निंद्या सोइ ॥
Oonche Kul Kya Janamiyaan, Je Karaneen Oonch Na Hoi.
Sovan Kalas Sure Bharya, Saathoon Nindya Soi . 
 
ऊँचे कुल में जनम लेने भर से कोई महान नहीं बन जाता है, जैसे सोने के कलश में यदि शराब भर दी जाए तो कलश निंदा का ही पात्र होता है, उस कलश का कोई महत्त्व नहीं रह जाता है। भाव है की जाती, कुल धर्म या देश विशेष में जन्म लेने भर ले कोई उच्च नहीं बन जाता है, महान नहीं बन जाता है, उसके कर्म यदि ठीक नहीं हैं

देखा देखी पाकड़े, जाइ अपरचे छूटि।
बिरला कोई ठाहरे, सतगुर साँमी मूठि॥
Dekha Dekhee Paakade, Jai Aparache Chhooti.
Birala Koee Thaahare, Satagur Saanmee Moothi. 
 
यदि कोई देखा देखी करके चलता है, लोगों का अनुसरण करके चलता है तो उसके परिचय हरी से छूट जाता है कोई बिरला ही मूठ भर सकता है और सतगुरु की बताये मार्ग का अनुसरण कर सकता है। भाव है की हमें देखा देखी में भक्ति नहीं करनी चाहिए, 

देखा देखी भगति है, कदे न चढ़ई रंग।
बिपति पढ्या यूँ छाड़सी, ज्यूं कंचुली भवंग॥
Dekha Dekhee Bhagati Hai, Kade Na Chadhee Rang.
Bipati Padhya Yoon Chhaadasee, Jyoon Kanchulee Bhavang. 
 
देखा देखी की भक्ति, दूसरों को देख कर भक्ति मार्ग का अनुसरण करना बगैर इस बात का खयाल किये की वह स्वंय साधना के लिए समर्पित है यह कुछ ऐसा ही है जैसे सांप अपनी केंचुली को त्याग देता है। जब तक हृदय में पक्का विचार ना हो, पूर्ण रूप से भक्ति के लिए समर्पित ना हो तो दूसरों को देख कर भक्ति मार्ग में बढ़ने वाले व्यक्ति का कोई स्थायित्व नहीं होता है।

करिए तौ करि] जाँणिये सारीख सूँ संग।
लीर लीर लोइ थई, तऊ न छाड़ै रंग॥
Karie Tau Kari Jaanniye, Saareepa Soon Sang.
Leer Leer Loi Thee, Taoo Na Chhaadai Rang. 
 
हमें सत्पुरुषों की संगती करनी चाहिए, जिसका साथ स्थाई होता है, उनके भक्ति का रंग कुछ ऐसा होता है की जैसे कोई वस्त्र लीर लीर होकर फट जाए लेकिन रंग नहीं छोड़े। सद्गुरु की पहचान करके व्यक्ति को ऐसे लोगों का पक्का अनुसरण करना चाहिए। 
 
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