मीरा लागो रंग हरी भजन
यह भजन मीरा बाई पदावली से सबंधित है जिसमे मीरा बाई वर्णन करती हैं की उसे तो हरि (ईश्वर) का रंग लग गया है, अन्य कोई रंग अब उसे लगने वाला नहीं, अन्य रंगों से वह दूर हो चुकी है। इस भजन के शब्दार्थ को निचे दिया गया है।
मीरा लागो रंग हरी,
मीरा लागो रंग हरी,
औरन रंग हटक परी,
मीरां लागो रंग हरी,
छापा तिलक मनोहर बाणी,
सील बरत सिंणगारो।
और कछु नहीं भावे मोहे,
ये गुरु ज्ञान हमारो,
मीरा लागो रंग हरी,
मीरा लागो रंग हरी,
कोई निन्दो कोई बिन्दो म्हें तो
गुण गोविन्द का गास्या,
जिण मारग मेरा साध बताए,
उण मारग म्हें जास्यां।
गिरधर कंस कुटुंब गिरधर,
मात पिता सूत भाई,
तू थारे म्हे म्हारे राणा,
यूँ कहे मीरा बाई,
मीरा लागो रंग हरी,
मीरा लागो रंग हरी,
औरन रंग हटक परी।
मीरा लागो रंग हरी,
मीरा लागो रंग हरी,
औरन रंग हटक परी,
मीरां लागो रंग हरी,
छापा तिलक मनोहर बाणी,
सील बरत सिंणगारो।
और कछु नहीं भावे मोहे,
ये गुरु ज्ञान हमारो,
मीरा लागो रंग हरी,
मीरा लागो रंग हरी,
कोई निन्दो कोई बिन्दो म्हें तो
गुण गोविन्द का गास्या,
जिण मारग मेरा साध बताए,
उण मारग म्हें जास्यां।
गिरधर कंस कटूमि,
गिरधर मात पिता सूत भाई,
तू थारे म्हे म्हारे राणा,
यूँ कहे मीरा बाई,
मीरा लागो रंग हरी,
मीरा लागो रंग हरी,
औरन रंग हटक परी।
Juthika Roy Geet & Bhajan 11 Meera lago rang hari
मीरा बाई का यह पद इस प्रकार से भी प्राप्त होता है।
मीरां लागो रंग हरी औरन रंग अटक परी,
चूडो म्हारें तिलक उर माला, सील बरत सिंणगारो,
और सिंगार म्हारें दाय न आवे, यो गुर ग्यान हमारों,
कोई निन्दो कोई बिन्दो म्हें तो गुण गोविन्द का गास्या,
जिण मारग म्हांरा पधारै, उस मारग म्हे जास्या,
चोरी न करस्यां जिव न सतास्या, कांई करसी म्हांरो कोई,
गज से उतर के खर नहिं चढस्या, ये तो बात न होई।
मीरा बाई के पद का हिंदी मीनिंग :
मीरा बाई स्वंय के विषय में वर्णन करते हुए कहती है की उन्हें तो हरी का रंग लग चुका है, हरी भक्ति उसे अच्छी लगने लगी है। अन्य कोई रंग उसे अब अच्छा नहीं लगता है। अन्य रंगों पर वह अटक चुकी है, भटकाव हो चूका है। मेरे हाथों में चूड़ा (चुडिया जो सुहाग की प्रतीक होती हैं ) माथे पर तिलक और हृदय/सीने के ऊपर माला है। शीलव्रत को धारण कर लिया है, यही मेरा श्रृंगार है। अन्य कोई भी श्रृंगार मुझे पसंद नहीं आता है। यही हमारा गुरु ज्ञान ही, रहस्य की बात है। कोई भले ही मेरी निंदा करे, कोई मेरी प्रशंशा करे मुझे इससे कोई फर्क नहीं पड़ता है। मैं तो गोविन्द के गुण को गाया करुँगी, बखान करुँगी। जिस मार्ग पर मेरे गुरु/साधुजन आते हैं मैं उसी मार्ग को मैं भी जाउंगी।
मैं कोई चोरी नहीं करुँगी, किसी जीव को नहीं सताऊँगी, तो कोई भला मेरा क्या कर लेगा। हाथी से उतर कर मैं गधे की सवारी नहीं करने वाली, भला ये कैसी बात हुई।
मैं भक्ति रूपी मूलयवान वस्तु को छोड़कर तुच्छ सांसारिक विषय विकारों की तरफ नहीं जाऊंगी।
मीरा बाई के पद के शब्दों के अर्थ शब्दार्थ :
अटक = अटकना, रुकना बाधा, रूकावट।
म्हारें - मेरे।
उर माला- गले में माला।
सील बरत = शील व्रत, आचार और व्यवहार।
सिणगारो = श्रृगांर करना, सजना।
दाय = मन को भाना, पसंद आना।
निंदो -निंदा करना।
विन्दो = प्रशंशा करना।
गास्या- गाएंगे (हरी गुण )
म्हे जास्या-हम जाएंगे।
चोरी न करस्यां-चोरी नहीं करेंगे।
जिव न सतास्या- किसी जीव को सतायेंगे नहीं।
नहिं चढस्या- नहीं चढ़ेंगे।
गज = हाथी।
खर = गधा।
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