बुढ़ापा बैरी किस विध होसी थारो छुटबो Budhapa Bairi Kis Vidh Hosi Meaning

बुढ़ापा बैरी किस विध होसी थारो छुटबो भजन लिरिक्स Budhapa Bairi Kis Vidh Hosi Meaning

 
Budhapa Bairi Kis Vidh Hosi Lyrics Meaning

मन मरा ना ममता मरी,
मर गया रे शरीर,
आशा तृष्णा ना मरी,
कह गया संत कबीर,
(कबीर कहा गरबियो,
काल गहे कर केस,
ना जाने कहाँ मारिसी,
कै घर कै परदेस, )
किस विध होसी थारो छुटबो,
बुढ़ापा बैरी,
किस विध होसी थारो छुटबो।


नैन थक्या अब सूझत नाहीं,
दांत गया सब खोला,
भाई रे, दाँत गया सब खोळा,
नाक झूरे सुणबारो घाटो,
कान हो गया बोळा रै,
बुढ़ापा बैरी,
किस विध होसी थारो छुटबो।


डगमग ड़गमग गर्दन हाले,
हाथ में लेनी गेटी,
भाई रै, हाथ में लेनी गेटी,
पाँव थक्या अब चल्यो नहीं जावै,
उमर हो गई डेढ़ी रै,
बुढ़ापा बैरी,
किस विध होसी थारो छुटबो।

खारो खाटो भावै नाहीं,
नरम खिंचड़ी भावे,
भाई रै, नरम खिंचड़ी भावै,
लुखो सुखो दाय नहीं आवे,
मन मीठा पर जावे रै,
बुढ़ापा बैरी,
किस विध होसी थारो छुटबो।

बेटा पोता कह्यो नहीं मानों,
बहु रा भरमाया,
भाई रै, बहुआ रा भरमायां,
लूखा सूखी जैड़ी खाइलयो,
काई रै कमा ने ल्याया रै,
बुढ़ापा बैरी,
किस विध होसी थारो छुटबो।

बेटा पोता कह्यो नहीं मानों,
कद मरसी ओ डाकी,
भाई रै,कद मरसी ओ डाकी,
खाय सका नहीं, पहर सका नहीं,
हिण्डो कर कर थाकि रै,
बुढ़ापा बैरी,
किस विध होसी थारो छुटबो।

कहत कबीर सुणो भाई साधो,
जग सपने री माया,
भाई रै, जग सपने री माया,
करणा हो तो कर लो प्राणी,
अंत समय पछताया,
बुढ़ापा बैरी,
किस विध होसी थारो छुटबो। 

बुढ़ापा बैरी किस विध होसी थारो छुटबो भजन मीनिंग

मन मरा ना ममता मरी,  मर गया रे शरीर आशा तृष्णा ना मरी,  कह गया संत कबीर,: आशा और तृष्णा नश्वर हैं, यह श्रष्टि की रचना के समय से ही अमर हैं। यह कभी समाप्त नहीं होती हैं। जीव जन्म लेता है और मर जाता है। इसी पर कबीर साहेब की वाणी है की ना तो जीव का मन मरता है और नाहीं माया के प्रति उसका आकर्षण ही। यह शरीर अवश्य ही एक रोज समाप्त हो जाता है।   
किस विध होसी थारो छुटबो,  बुढ़ापा बैरी : बुढ़ापे की अवस्था से मानसिक संवाद है की यह कैसे समाप्त होगा, इससे पीछा कैसे छूटेगा (छुटबा), बुढ़ापा को बैरी इसलिए कहा है क्योंकि इस अवस्था में समस्त इन्द्रिय शिथिल होकर नियंत्रण से बाहर और कमजोर हो जाती हैं।
नैन थक्या अब सूझत नाहीं,  दांत गया सब खोला : बुढ़ापे की अवस्था में आँखे कमजोर हो जाती हैं और आखों से दिखना (सूझना) कमजोर हो जाता  है, कुछ दिखाई नहीं देता है। दांत अंदर से खोखले हो जाते हैं (खोला) .
नाक झूरे सुणबारो घाटो, कान हो गया बोळा रै : नाक से पानी बहने लग जाता है और कानों से सुनाई भी कम देता है। कान बहरे (बोला ) हो जाते हैं।  
डगमग ड़गमग गर्दन हाले, हाथ में लेनी गेटी : इस अवस्था में व्यक्ति की गर्दन डोलने लग पड़ती है, नियंत्रण से बाहर हो जाती है। शरीर का संतुलन बिगड़ने लगता है और सीधा चला भी नहीं जाता है इसलिए हाथों में लकड़ी (गेड़ी) पकड़नी पड़ती है।
पाँव थक्या अब चल्यो नहीं जावै, उमर हो गई डेढ़ी रै : पाँव थक जाते हैं, कमजोर हो जाते हैं और जीव से चला नहीं जाता है। उम्र भी सवाई हो जाती है।
खारो खाटो भावै नाहीं,  नरम खिंचड़ी भावे : बुढ़ापे में व्यक्ति का मन बच्चे की तरह से चंचल हो जाता है और उसे खारा, खट्टा अच्छा नहीं लगता है। शरीर को खिचड़ी ही अच्छी लगती है जो सुपाच्य होती है।
लुखो सुखो दाय नहीं आवे, मन मीठा पर जावे रै : रुखा सूखा उसे अच्छा नहीं लगता है और उसका मन मीठा ही पसंद करता है।
बेटा पोता कह्यो नहीं मानों, बहु रा भरमाया : उसके बेटे और पोते उसका कहना नहीं मानते हैं, वे घर पर आई बहुओं के द्वारा भ्रमित होते हैं।
लूखा सूखी जैड़ी खाइलयो, काई रै कमा ने ल्याया रै : वे कहते हैं की जो भी रुखा सूखा मिलता है उसे खा लो, कौनसा तुम कमाकर लाए हो।
बेटा पोता कह्यो नहीं मानों, कद मरसी ओ डाकी : बेटा और पोता कहते हैं की ये दैत्य (डाकी ) कब मरेगा।
खाय सका नहीं, पहर सका नहीं, हिण्डो कर कर थाकि रै : इसके रहते हम अच्छे से ना तो खा सकते हैं और नाहीं पहन सकते हैं। यह खाट में पड़ा है, इसकी चाकरी करके हम थक गए हैं। वैसे हिण्डो हाथों से झुलाना को कहते हैं।
कहत कबीर सुणो भाई साधो, जग सपने री माया : कबीर साहेब कहते हैं की यह जगत एक सपना है, सपने की ही माया है।
करणा हो तो कर लो प्राणी,  अंत समय पछताया : ईश्वर का सुमिरन, ध्यान और भक्ति जो भी तुमको करनी हो, अभी कर लो अंत समय में तुमको पछताना ही पड़ेगा। 

Anil Nagori बुढापा बैरी किण विध होसी थारो छुटवो अनिल नागौरी पोराणिक भजन

Man Mara Na Mamata Mari,
Mar Gaya Re Sharir,
Aasha Trshna Na Mari,
Kah Gaya Sant Kabir,
(Kabir Kaha Garabiyo,
Kaal Gahe Kar Kes,
Na Jaane Kahaan Maarisi,
Kai Ghar Kai Parades, )
Kis Vidh Hosi Thaaro Chhutabo,
Budhaapa Bairi,
Kis Vidh Hosi Thaaro Chhutabo.

Nain Thakya Ab Sujhat Naahin,
Daant Gaya Sab Khola,
Bhai Re, Daant Gaya Sab Khola,
Naak Jhure Sunabaaro Ghaato,
Kaan Ho Gaya Bola Rai,
Budhaapa Bairi,
Kis Vidh Hosi Thaaro Chhutabo.

Dagamag Dagamag Gardan Haale,
Haath Mein Leni Geti,
Bhai Rai, Haath Mein Leni Geti,
Paanv Thakya Ab Chalyo Nahin Jaavai,
Umar Ho Gai Dedhi Rai,
Budhaapa Bairi,
Kis Vidh Hosi Thaaro Chhutabo.

Khaaro Khaato Bhaavai Naahin,
Naram Khinchadi Bhaave,
Bhai Rai, Naram Khinchadi Bhaavai,
Lukho Sukho Daay Nahin Aave,
Man Mitha Par Jaave Rai,
Budhaapa Bairi,
Kis Vidh Hosi Thaaro Chhutabo.

Beta Pota Kahyo Nahin Maanon,
Bahu Ra Bharamaaya,
Bhai Rai, Bahua Ra Bharamaayaan,
Lukha Sukhi Jaidi Khailayo,
Kai Rai Kama Ne Lyaaya Rai,
Budhaapa Bairi,
Kis Vidh Hosi Thaaro Chhutabo.

Beta Pota Kahyo Nahin Maanon,
Kad Marasi O Daaki,
Bhai Rai,kad Marasi O Daaki,
Khaay Saka Nahin, Pahar Saka Nahin,
Hindo Kar Kar Thaaki Rai,
Budhaapa Bairi,
Kis Vidh Hosi Thaaro Chhutabo.

Kahat Kabir Suno Bhai Saadho,
Jag Sapane Ri Maaya,
Bhai Rai, Jag Sapane Ri Maaya,
Karana Ho To Kar Lo Praani,
Ant Samay Pachhataaya,
Budhaapa Bairi,
Kis Vidh Hosi Thaaro Chhutabo.
Saroj Jangir Author Author - Saroj Jangir

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