कबीर मंदिर ढहि पड़ा इंट भई सैबार मीनिंग

कबीर मंदिर ढहि पड़ा इंट भई सैबार मीनिंग

कबीर मंदिर ढहि पड़ा, इंट भई सैबार।
कोई चेजारा चिणि गया, मिल्या न दूजी बार॥
Kabir Mandir Dhahi Pada, Ent Bhai Saibaar,
Koi Mandir Chini Gaya, Milya Na Duji Bhaar.

मंदिर ढहि पड़ा: मंदिर (घर) ढह गया है, मानव देह समाप्त होने को है.
इंट भई :  इंट भई : ईंट हो चुकी हैं.
सैबार : शैवाल ईंट जीर्ण होकर उनपर शैवाल उग आए हैं.
चेजारा : राजमिस्त्री, मकान बनाने का काम करने वाला व्यक्ति, कारीगर.
चिणि गया : मकान बना गया, मकान की चुनाई कर गया.
मिल्या न दूजी बार : वह पुनः नहीं मिला, दुबारा उससे मुलाकात नहीं हुई.

साहेब ने जीवात्मा के घर जो मानव देह है उसे ही मंदिर कहकर सन्देश दिया है की इसका कारीगर (इश्वर) ने इस मंदिर का निर्माण किया है लेकिन वह सत्कर्मों के अभाव में दुबारा कभी नहीं मिला है. साहेब ने वाणी में आगे कहा है की यह काफी जीर्ण हो चुकी है और इसकी इन्टे जर्जर होकर ढह चुकी है जिनपर शैवाल (काई/घास) उग चुकी है. प्रस्तुत दोहे का भाव है की यह जीवन नश्वर है, एक रोज अवश्य ही इसको समाप्त हो जाना है. सत्कर्मों के अभाव में जीवात्मा पुनः इश्वर से मिल नहीं पाती है. हरी का सुमिरण करके जीवन के अंतिम पड़ाव पर पहुचना ही विवेक का कार्य है. इसलिए सतत हरी के नाम का सुमिरण ही मुक्ति का आधार है. प्रस्तुत साखी में रुप्कातिश्योक्ति अलंकार की व्यंजना हुई है. 
Saroj Jangir Author Author - Saroj Jangir

दैनिक रोचक विषयों पर में 20 वर्षों के अनुभव के साथ, मैं कबीर के दोहों को अर्थ सहित, कबीर भजन, आदि को सांझा करती हूँ, मेरे इस ब्लॉग पर। मेरे लेखों का उद्देश्य सामान्य जानकारियों को पाठकों तक पहुंचाना है। मैंने अपने करियर में कई विषयों पर गहन शोध और लेखन किया है, जिनमें जीवन शैली और सकारात्मक सोच के साथ वास्तु भी शामिल है....अधिक पढ़ें

Next Post Previous Post