
भोले तेरी भक्ति का अपना ही
नुगरा कोई मत रहना जी,
नुगरा नर तो मति मिलो,
ने पापी मिलो रे हज़ार,
एजी नुगरा ले जावे नारकी,
थाने संत मिलावे जार।
ओजी, नर रे नारण री देह बणाई,
नुगरा कोई मत रेवणा जी,
नुगरा मिनख तो पशु बराबर,
उण रा संग नहीं करना जी,
राम भजन में हालो मेरा हंसा,
इण जग में जीवना थोड़ा, रे हाँ।
आडा रे वरण री गायों दुहायो,
इक बरतण में लेवणा जी,
मधि मधि ने माखण लेना,
बर्तन उजला रखणा जी,
राम भजन में हालो मेरा हंसा,
इण जग में जीवना थोड़ा, रे हाँ।
नुगरा कोई मत रहना जी : इस संसार में आकर कोई भी ग़ाफ़िल मत रहो, जीवन के उद्देश्य के प्रति सावचेत रहो। नुगरा-एहसान फ़रामोश, दुष्ट। भाव है की अनेकों जन्म लेने के उपरान्त यह मानव जीवन मिला है, इसे यूँ ही व्यर्थ में क्यों खोना है, ज्ञान प्राप्त करके सचेत रहो, नुगरा मत बनो।
नुगरा नर तो मति मिलो, ने पापी मिलो रे हज़ार : नुगरा इंसान की संगत मत करो, चाहे हजारों पापियों से मिल लो।
एजी नुगरा ले जावे नारकी, थाने संत मिलावे जार : नुगरा व्यक्ति तुमको नर्क में लेकर जाता है और संत तुमको ईश्वर से मिलाता है। नारकी-नर्क, थाने-तुमको, जार- साथ में जाकर, ले जाकर।
ओजी, नर रे नारण री देह बणाई : नर में ही नारायण है, यह देह बहुत ही मूल्यवान है, अनेकों योनियों के उपरान्त यह मिली है।
नुगरा कोई मत रेवणा जी : इसलिए कोई भी नुगरा मत रहो। सुगरा बनो, ईश्वर की भक्ति करो।
नुगरा मिनख तो पशु बराबर : नुगरा व्यक्ति तो पशु के तुल्य होता है। मिनख-मनुष्य।
उण रा संग नहीं करना जी : उनके साथ तुमको नहीं रहना है। उन -उनके (नुगरा व्यक्ति के साथ), संग- उनका साथ नहीं करना है।
राम भजन में हालो मेरा हंसा : जीवात्मा को हंसा कहकर सन्देश है की तुम राम के भजन में चलो। हालो-चलो, हंसा-मनुष्य/जीवात्मा। जैसे हंस धवल होता है वह निष्पाप का प्रतीक होता है और अमूल्य मुक्ताफल ग्रहण करता है ऐसे ही वह मानसरोवर जैसे पवित्र स्थान पर रहता है। जीवात्मा को भी इसी भाँती पवित्र माना गया है क्योंकि उसके हृदय में ईश्वर का वास होता है।
इण जग में जीवना थोड़ा, रे हाँ : इस जगत में बहुत थोड़े समय के लिए ही रहना है।
आडा रे वरण री गायों दुहायो : अच्छे वर्ण (देसी गाय) का दूध ही दुहना है। अच्छे ही कर्म करने हैं।
इक बरतण में लेवणा जी, मधि मधि ने माखण लेना इस दूध को मथ करके मक्खन को प्राप्त करो। अच्छे कार्यों को ग्रहण करो।
बर्तन उजला रखणा जी : तुम अपने बर्तन को स्वच्छ रखो। हृदय ही यहाँ पर बर्तन है।
अगलो रे आवे अगन सरूपी : यदि तुमसे कोई क्रोधित होकर अग्नि स्वरुप में मिलता है।
जल स्वरूपी रेवणा जी : तुमको उससे जल स्वरुप में मिलना है। भाव है की तुमको शांत स्वभाव में रहना है। क्रोधी के सामने क्रोध करने से हानि ही होती है।
जाणे आगे, अजुणो रहणा : जो ज्ञानी है, जानकार है उसके सामने अनजान बनने से फायदा होता है क्योंकि उससे कुछ सीखने को मिलता है। यदि हम स्वंय ज्ञानी होने का स्वांग रचाते हैं तो कुछ भी हासिल नहीं कर पाएंगे।
सुण सुण वचन लेवणा जी : उसके वचन को सुनकर कुछ ज्ञान प्राप्त करो। लेवणा-ज्ञानीजन से ज्ञान के शब्द लेने हैं।
Prakash Mali Bhajan। प्रकाश माली का पसंदिता भजन । नुगरा कोई मत रेवणा । Rajasthani Bhajan HD