कबीर माया मोहनी जैसी मीठी खाँड़ कबीर के दोहे

कबीर माया मोहनी जैसी मीठी खाँड़ Kabir Maaya Mohini Meaning Kabir Dohe, Kabir Ke Dohe Hindi Meaning (Hindi Arth/Hindi Bhavarth)

कबीर माया मोहनी, जैसी मीठी खाँड़।
सतगुर की कृपा भई, नहीं तो करती भाँड़॥
Kabir Maya Mohani, Jaisi Mithi Khand,
Satgur Ki Kripa Bhai, Nahi To Karati Bhand.

कबीर माया मोहनी : कबीर माया मोहनी है, अपने वश में करने वाली है.
मोहनी : मोहित करने वाली है, अपने पाश में फंसाने वाली है.
जैसी मीठी खाँड़ : वह मीठी खांड की तरह मोहित करने वाली है.
खाँड़ : चीनी, अपनी माया में फंसाने वाली.
सतगुर की कृपा भई : सतगुरु की कृपा हो गई है.
नहीं तो करती भाँड़ : अन्यथा वह स्वांग करती, मान सम्मान को कम करती.
भाँड़ : स्वांग रचना, इज्जत कम करना, अवमुल्यन करना.

कबीर साहेब की वाणी है की माया जीव को अपने जाल में फांसने के लिए आकर्षण का उपयोग करती है. माया जीव को सम्मोहित करके स्वंय के जाल में फंसा लेती है. यह ऊपर से दिखने में तो मीठी खांड की भाँती होती है. लेकिन वास्तव में यह व्यक्ति की मान मर्यादा को कम कर देती है. सतगुरु की कृपा हो जाने पर ही जीव माया के पाश को जान पाता है. अन्यथा वह माया के भ्रम जाल में ही फंस कर रह जाता है.यह तो गुरु की कृपा हो गई, गुरु से ज्ञान प्राप्त हो गया, नहीं तो माया जीव को नष्ट करके ही छोडती. प्रस्तुत साखी में उपमा अलंकार की सफल व्यंजना हुई है. भांड से आशय है बेइज्जती करवाना, यथा माया के प्रभाव में जो भी आता है वह इस जीवन को बर्बाद कर देता है, यही इस साखी का मूल भाव है.
उपमा अलंकार : उपमा से आशय है तुलना, किसी व्यक्ति या कार्य की अन्य से तुलना. अतः जब किसी व्यक्ति या वस्तु की तुलना किसी अन्य से गुणों के आधार पर की जाती है वहां पर उपमा अलंकार होता है. जिस वस्तु या व्यक्ति से तुलना की जाए वहां पर जिससे तुलना की गई है वह उपमेय कहलाता है और जिसकी तुलना हुई है वह उपमान.
सीता का मुख चंद्रमा के समान सुंदर है-यहाँ पर माता सीता जी के मुख की तुलना चंद्रमा से की गई है. माता सीता उपमेय हैं और चंद्रमा उपमान हैं. इन दोनों में ही जो गुण या विशेषता समान होती है उसे समान धर्म कहते हैं. प्रस्तुत में सुंदर समान धर्म हैं.
उपमा अलंकार के अन्य उदाहरण.
मुख चन्द्रमा-सा सुन्दर है।
नील गगन-सा शांत हृदय था रो रहा।
हाय फूल-सी कोमल बच्ची, हुई राख की थी ढेरी।
मखमल के झूले पड़े, हाथी सा टीला
प्रात नभ था बहुत नीला शंख जैसे
काम-सा रूप, प्रताप दिनेश-सा
सोम सा सील है राम महीप का।
हरि पद कोमल कमल-से।

हाय फूल सी कोमल बच्ची,
हुई राख की थी ढेरी।
पीपर पात सरिस मन डोला
कोटी कुलिस-सम वचन तुम्हारा।
व्यर्थ धरहु धनु बान कुठारा।।
मुख बाल-रवि-सम लाल होकर,
ज्वाल-सा बोधित हुआ।
नील गगन-सा शांत हृदय था हो रहा।
मुख बाल-रवि सम लाल होकर ज्वाल-सा बोधित हुआ।
मखमल के झूल पड़े हाथी-सा टीला।
तब तो बहता समय शिला-सा जम जाएगा।
कोटि-कुलिस-सम वचन तुम्हारा।
सिंधु-सा विस्तृत और अथाह एक निर्वासित का उत्साह।
तारा-सी तरुनि तामें ठाढ़ी झिलमिल होति।
आरसी-से अम्बर में आभा-सी उज्यारी लागै।
मोती से उजले जल कण से
छाये मेरे विस्मित लोचन,
लाये कौन संदेश नये घन,
नीलिमा चंद्रमा जैसी सुंदर है।
अतः किसी दी गई वस्तु की उसके किसी विशेष गुण, क्रिया, स्वभाव आदि की समानता के आधार पर अन्य अप्रस्तुत से समानता
स्थापित की जाती है तो वहां उपमा अलंकार होता है.
हरि पद कोमल कमल से -इसका अर्थ है की हरी के पैरों को कमल के समान कोमल हैं.
Saroj Jangir Author Author - Saroj Jangir

दैनिक रोचक विषयों पर में 20 वर्षों के अनुभव के साथ, मैं कबीर के दोहों को अर्थ सहित, कबीर भजन, आदि को सांझा करती हूँ, मेरे इस ब्लॉग पर। मेरे लेखों का उद्देश्य सामान्य जानकारियों को पाठकों तक पहुंचाना है। मैंने अपने करियर में कई विषयों पर गहन शोध और लेखन किया है, जिनमें जीवन शैली और सकारात्मक सोच के साथ वास्तु भी शामिल है....अधिक पढ़ें

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